जब यूरोपियन यूनियन ने अपने दरवाजे खोले तो उसका सब से बड़ा लाभ मुस्लिम देशों ने लिया.
इससे यूरोप का नुकसान ही हुआ है, उन्हें कोई प्रॉडक्टिव लेबर नहीं मिला बल्कि खाये जाने वाला बोझ मिला है.
वहाँ मुसलमान सब से बड़ा सिरदर्द बने हैं, सभी तरह से और अब तो वे उन देशों पर काबिज होने की बातें कर रहे हैं.
काम करने नहीं जा रहे हैं, वहाँ वे मुफ़्तमांग ही बने रहना चाहते हैं और मुफ्तखोरी को अपना हक़ समझते हैं.
जाने दीजिये, वे तो वही करेंगे जो उनका चरित्र है, जो उनकी मूल सीख है. मेरा सवाल काँग्रेस से है.
क्या आप को पता नहीं था यूरोपियन यूनियन के दरवाजे खुलने का? तो वहाँ आप ने भारतीयों को भेजने के कोई यत्न किए?
वहाँ की कंपनियाँ भारत में अधिक कार्यरत हैं, क्या आप ने उन देशों को भारतीय मार्केट का और अपने लोगों को वहाँ ले जाने का महत्व समझाया?
क्यों नहीं आप ने वह सब किया जो आज दुनिया में मोदी जी कर रहे हैं?
क्या आप को पता नहीं कि विश्व भर में हिन्दू भारतीय का व्यवहार, बतौर immigrant सब से शांतिपूर्ण रहा है?
क्या लेबर को काम नहीं मिलता? स्किल की आवश्यकता तो थी नहीं, ये अरब और अफ्रीकन मुसलमान कौनसी स्किल लिए जा रहे हैं?
भाषा तो उन्हें भी नहीं आती. ऊपर से मुफ्त में सबकुछ मांग रहे हैं. भारतीय हिंदुओं के साथ यह समस्या नहीं होती, कमाकर खाते, उन देशों के लिए काम के होते, खुद भी दबाकर कमाते.
विदेश मंत्रालय तो आप के पास भी था, स्टाफ वहाँ तब भी था. कुछ किया भी आप ने?
दस साल आप को मिले थे 2004 से 2014 तक जब यह हो रहा था. आप ने क्या किया इस मौके का फायदा उठाने को? सिर्फ यहाँ से पैसे लूट कर वहाँ भरे?
आज मुसलमान ने यूरोप का माहौल सड़ा दिया है. आज वहाँ कोई हिन्दू जाने से पहले सोचेगा. मोदी जी चाहकर भी कुछ कर नहीं पाएंगे, हिन्दू खुद ही वहाँ जाएँगे ही नहीं क्योंकि उन देशों के लोग ही मुसलमानों से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
क्या बताएँगी माता रोम और उनके चिरशिशु कि उन्होंने भारत के हिंदुओं के लिए यह क्यों नहीं किया?