पढ़िए, क्योंकि पढ़ना ज़रूरी है

एक धार्मिक अभिरुचि रखने वाले युवा मित्र ने एक प्रश्न किया कि हम जो बचपन से ही सुनते आए थे कि हमारे 33 करोड़ देवता हैं, और जो आजकल सुन रहे हैं कि 33 करोड़ नहीं बल्कि 33 प्रकार के देवता हैं, इन दोनों में से सच क्या है? कोटि मतलब तो करोड़ होता है न?

मैंने उल्टा प्रश्न कर लिया कि अगर मैं किसी पुरुष या महिला को संदर्भित करते हुए कहूँ कि फलानी बहुत उच्च कोटि की महिला है और अलाने निम्न कोटि का पुरुष है, तो इसका मतलब क्या होगा? यह तो नहीं होगा न कि वो औरत उच्च करोड़ की और वह पुरूष निम्न करोड़ का है? किसी भी शब्द के एकाधिक अर्थ हो सकते हैं. अनुवादकर्ताओं ने शाब्दिक अनुवाद कर अर्थ का अनर्थ किया है. केवल ‘कोटि’ नहीं, बहुत सारे शब्द हैं ऐसे. जैसे लिंग, वर्ण. शब्दों को पूरे प्रसंग के साथ समझना चाहिए.

मैंने उन्हें यह सलाह भी दी कि ऐसे बहुतेरे प्रश्नों के सटीक उत्तरों के लिए मूल महाभारत पढ़ी जानी चाहिए. ‘कोटि’ वाली बात आदि पर्व के शुरुआती हिस्से में ही लिखी हुई है. जो चीज बाकायदा लिखी हुई है, उसके बाद भी 99 प्रतिशत लोग देवताओं की ‘कोटि’ को प्रकार (टाइप) न मान कर संख्या मान बैठे हैं तो इसमें दोष हमारा ही है. हर चीज का दोष हम वामपंथ पर नहीं डाल सकते.

मित्र वाकई जिज्ञासु प्रवृति का युवा है. उसने कहा कि भैया मैं तो पढ़ना चाहता हूँ पर घर में सब बोलते हैं कि महाभारत घर में रखने से झगड़े होते हैं.

ऐसी बातें सुनकर मुझे अफसोस भी होता है और क्रोध भी आता है (मित्र के प्रति नहीं, उसे ऐसी शिक्षा देने वालों के प्रति). किसने कह दिया ऐसा? बिना जांचे-परखे किसी भी बकवास बात को बिना पड़ताल के मानते जाना ही अंधविश्वास कहलाता है. महाभारत के विषय में ऐसा कहाँ लिखा है? अपनी बेवकूफी से हम खुद को इतने महान ग्रन्थ से अछूत बना बैठे हैं.

जरा सोचिए कि जिस ग्रन्थ का एक छोटा सा भाग श्रीमद्भागवत गीता हो वो किसी विघ्न का कारण बनेगा?

जिसकी रचना वेदों के संकलनकर्ता कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास ने की हो वो विघ्न का कारण बनेगा?

जिस ग्रन्थ को स्वयं महादेव पुत्र विघ्नहर्ता गणेश ने अपने हाथों से लिखा हो वो विघ्न का कारण बनेगा?

बी. आर. चोपड़ा जी ने महाभारत सीरियल बना कर दिखा दिया और हम उसी को पूरी महाभारत मान बैठे हैं. वैसे चोपड़ा साहब का धन्यवाद जो उन्होंने एक छोटा हिस्सा ही सही, हम मूढ़मतियों को महाभारत से परिचित तो करवाया. महाभारत सिर्फ कौरव-पांडव का पारिवारिक कलह और युद्ध ही नहीं है. इसमें पांडवों के अलावा भी सैकड़ों कथाएं हैं, जिनमें ढेरों प्रेम कहानियां हैं, नैतिकता और मर्यादा सिखाते प्रसंग हैं, नीति की सुस्पष्ट परिभाषाएं और उदाहरण हैं. युद्ध और शांति, दोनों की ही आवश्यकता और महिमा का बखान है. स्त्री-पुरुष की समानता, मनुष्य-मनुष्य की समानता, जीव-जीव की समानता को स्थापित करने में इस ग्रन्थ का कोई सानी नहीं.

इसमें लिखा है, और आप पढेंगे तो आप भी मानेंगे, कि यह सभी वेदों का सार है. यह पंचम वेद है. संसार में ऐसा कुछ नहीं जो इस ग्रन्थ में नहीं है, और जो इस ग्रन्थ में नहीं है वो संसार में नहीं हो सकता.

धार्मिक/आध्यात्मिक अभिरुचि रखने वालों को इसे पढ़ना चाहिए. उन लोगों को भी पढ़ना चाहिए जो धार्मिक कम (या नगण्य) और साहित्यिक अभिरुचि अधिक रखते हैं. इससे बेहतर साहित्य कोई नहीं. दर्शन और विज्ञान विषय प्रेमी भी अपने पूर्वाग्रह परे रखकर सूक्ष्म विश्लेषण करें तो उनके भी मुँह खुले रह जाएंगे. एक उदाहरण, बिग बैंग थ्योरी कहती है कि एक अत्यधिक घनत्व के, कुछ मिलीमीटर के एक पिंड में हुए विस्फोट से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ. महाभारत के शुरुआती पृष्ठ में इस ‘वेरी लिटिल बट डेन्स ऑब्जेक्ट’ को अंडा कहा गया है. बिगबैंग थ्योरी कब आई और महाभारत कब लिखी गई, तुलना कर देखिए.

धार्मिक किताबों के साथ एक दिक्कत यह आती है कि इन्हें पढ़ें कैसे? मतलब पढ़ने से पहले कोई कर्म, कोई क्रिया, कोई अनुष्ठान. यह एक बड़ी समस्या है कि हम हाथी न देखकर हाथी की पूंछ पर अटक जाते हैं. किताब है, उसके कुछ अच्छी बातें लिखी हैं, उन बातों का महत्व है. उन्हें पढ़कर आत्मसात करना है. किताब, उसके पन्ने, उसकी लिखावट का क्या महत्व? असली चीज ज्ञान है, माध्यम नहीं. किताब को भले ही आप भगवा कपड़े में लपेटकर रखें, खोलने से पहले उस पर फूल बरसाए, उसके चारों ओर कपूर और अगरबत्ती जलाएं पर अगर उसमें लिखी बातों को आत्मसात न करें तो क्या फायदा?

अपनी कहूँ तो जब महाभारत पढ़नी होती है तो नहा भर लेता हूँ. पर कई बार ऐसा भी हुआ कि कोई प्रसंग देखने के लिए बिस्तर पर लेटे-लेटे ही, चाय पीते-पीते ही महाभारत खोल ली. और हाँ! कोई कलह नहीं होता मेरे घर में. बल्कि, जिस दिन एक दो-घण्टा इसे पढ़ लो, मस्तिष्क शांत हो जाता है.

पढ़िए, क्योंकि पढ़ना ज़रूरी है.

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