मार्क्सवाद, वामपंथ, माओवाद, लेनिनवाद या कम्युनिज्म आदि में कोई फ़र्क़ है? ये सब एक ही विचारधारा के थान में से फाड़ कर बनाए गए गंजी, जाँघिए हैं. नदी एक ही है पर घाट अलग अलग हैं, ये सारे मामा बुआ के बच्चे ही है.
प्रणव रॉय हो या अरुंधती रॉय, बरखा दत्त हो या रविश कुमार जैसे एलिट क्लास, या चंदरपुर, बक्सर और बंगाल के जुनूनी शिकारी जैसे नक्सलवादी, सबकी रगों में एक जैसा वामी ख़ून बहता है, और सबका मक़सद एक ही है, अराजकता, समाज का बँटवारा.
कुछ दिन पहले ही एक समाचार आया है, पुणे की पुलिस के हाथ एक पत्र आया है. ये पत्र जिसके घर से मिला है वो और उसके साथ पकड़ाए गए दूसरे 4 वामपंथी भारत में प्रतिबंधित जैसे साम्यवादी पक्ष (माओवादी), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (माओवादी), के साथ जुड़े हुए हैं.
CPI-M ( M- मार्क्सवादी ) पर प्रतिबंध नहीं है, क्योंकि इसने एक राजनीतिक दल का चोला ओढ़ रखा है और चुनावी राजनीति में भाग लेते हुए हाल तक पश्चिम बंगाल में शासन किया है और वर्तमान में केरल में यही पार्टी सत्ता में है. हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की तरह ही कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पर भी प्रतिबन्ध होना चाहिए क्योंकि ये हिंदुओं, हिंदुत्व के कार्यकर्ताओं और RSS के लोगों की बेलगाम हत्याएँ कर रहे हैं. मार्क्सवादियों के केरल में चल रहे आतंक की एक डोक्यूमेंट्री 1-2 साल पहले माटुंग़ा की एक कॉलेज के कार्यक्रम में मैंने देखी थी, तब कंपकंपी छूट गयी थी.
CPIM (माओवादी) और CPIM (मार्क्सवादी) के बारे में जैसे पहले बताया है कि दोनो एक ही कपड़े के बनाए गंजी-जाँघिए है, जितना ही फ़र्क़ है. नरसिंह मेहता अगर आज जीवित होते तो दोहराते कि ઘાટ ઘડ્યા પછી નામ-રૂપ જૂ જવાં, અંતે તો હેમનું હેમ હોય…
पुलिस द्वारा पकड़ाए पत्र में राजीव गांधी के जैसे ही मोदी जी की हत्या करने के षड्यंत्र के बारे में बताया गया है, जो अभी पुलिस के क़ब्ज़े में है.
राजीव गांधी की कितनी निर्दयता से हत्या की गयी ये हम सबको पता ही है. वामपंथी जुनूनी आपके साथ बहस करने में, आपको पत्र लिखकर अपमानित करने में, और आपका सब प्रकार से अहित हो, आपका अस्थिपंजर निकल जाए, ऐसी मानसिकता रखते हैं.
इसमें एक भी मार्क्सवादी अपवाद स्वरूप नहीं होता, एक भी नहीं, आपके सामने जब तक किसी मार्क्सवादी की असलियत उजागर नहीं होती तब तक ये आपके भोले-भाले व्यक्तित्व को अपने सुनहरे मोहरों से भरमाने की कोशिश करता रहता है, पर जैसे ही उसका मुखौटा आप चीर देते हो, हटा देते हो, तब उसका असली ख़ूनी चेहरा सामने आता है, आप चाहें तो आज़मा कर देख सकते हैं.
बीते दिसम्बर में भीमा-कोरेगाँव के क़िस्से में जो हिंसात्मक घटनाएं हुईं, उनमें हिंदुओं को होली का नारियल बनाया गया. पर अब सबूत मिल रहे हैं कि ये किसका कारनामा था. पुणे पुलिस ने जिन पाँच लोगों को गिरफ़्तार किया है, उनमें से एक के पास मोदी जी की हत्या की साज़िश का ये पत्र मिला है.
पुलिस ने इन पाँचो को गिरफ़्तार कर के गुरुवार को कोर्ट में पेश किया. बुधवार को जिनकी धर पकड़ हुयी उनके नाम हैं – दलित ऐक्टिविस्ट सुधीर धवले, लॉयर सुरेन्द्र गाडलिंग, महेश रावत (मुम्बई), शोमा सेन (नागपुर) और रोमा विल्सन (दिल्ली).
पत्र रोमा विल्सन के दिल्ली के घर से मिला था जिसमें लिखा गया था कि M-4 राइफ़ल और 4 लाख गोलियों (इतनी गोलियाँ? शायद ट्रेनिंग के लिए या PM तक पहुँचने में जो रोड़ा बने उसके लिए), के लिए 8 करोड़ रुपयों की ज़रूरत है.
CPM के नेता सीताराम येचुरी से इस पत्र के बारे में पूछने पर क्या कहा पता है…. “No Comments”
मोदी जी को रोड शो के दौरान मारने की षड्यंत्र का ख़ुलासा होने के बाद कांग्रेस ने तो अपनी आदत के अनुसार “ये सब मोदी का ही नाटक है” कह कर बात को हल्के में लेने की कोशिश की है.
पर अगर हम भी वामपंथियों की इस ख़ूनी, विघटनकारी और देश विरोधी या हिंदू विरोधी विचारधारा को हल्के में लेंगे तो आगे चल कर भविष्य में रोने की बारी आएगी ये पक्का है.
मेरे इस लेख को पढ़ कर मार्क्सवादी कसमसाकर, बाहर आ कर सुलग रहे हैं कि उन लोगों के अजेंडे को जब तक चेलेंज करने वाला कोई नहीं था और वे कांग्रेस की मेहरबानियों से देश में जलसे कर रहे थे, पर मोदी जी के आने के बाद से उनके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है, तो तुरंत ही ये कसमसाने, छटपटाने लग गए. ये वामपंथी ऐसा कोई माओवादी कृत्य ना कर बैठे इसके लिए इनकी मानसिकता का पोस्ट्मॉर्टम हमें करना चाहिए.
पोस्ट्मॉर्टम ??
क्या इसका अर्थ ये है कि मार्क्सवादी विचारधारा मरणासन्न है?
पर अभी तो कहा कि मार्क्सवादी विचारधारा मोदी की बलि लेना चाहती है!!
बस, ऐसी ही दलीलें दे कर ये नपुंसक वामपंथी हमें ज़मीनी हक़ीक़त से दूर ले जाना चाहते हैं, एक एसी बनावटी दुनिया में जहाँ इनकी नपुंसकता नंगी ना हो जाए.
– लेखक गुजरात के प्रख्यात पत्रकार और लेखक ‘सौरभ शाह‘, जिन्होंने ‘एकत्रीस स्वर्ण मुद्राओं, संबंधों नुं मैनेजमेंट एवं अयोध्या थी गोधरा’ सहित 14 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें पांच नॉवेल भी सम्मिलित हैं.
(अनुवादक – ‘मेकिंग इंडिया’ टीम के अभिषेक अग्रवाल)
सौरभ-वाणी : कागज़ की एक नाव गर पार हो गई, उसमें समंदर की कहाँ हार हो गई!