भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनने के लिए अब यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा पास करना जरूरी नहीं होगा. दरअसल मोदी सरकार ने नौकरशाही में प्रवेश पाने का अब तक सबसे बड़ा बदलाव कर दिया है.
एक फैसले के बाद अब प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले सीनियर अधिकारी भी सरकार का हिस्सा बन सकते हैं. लैटरल एंट्री के जरिए सरकार ने इस योजना को नया रूप दिया है.
केंद्र सरकार ने निजी क्षेत्र के कुशल लोगों के लिए नौकरशाही के उच्च स्तर के पदों के द्वार खोलते हुए दस शीर्ष पदों पर आवेदन आमंत्रित किये हैं. राजस्व, वित्तीय सेवाएं, आर्थिक मामले, कृषि, वाणिज्य और नागरिक उड्डयन विभागों में संयुक्त सचिव पद के लिए आवेदन मांगे गए हैं.
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने एक अधिसूचना में कहा है कि ये नियुक्तियां अनुबंध के आधार पर तीन से पांच वर्ष के लिए की जाएगी. इन नियुक्तियों के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों, स्वायत्त संस्थाओं, वैधानिक संगठनों, विश्वविद्यालयों, परामर्श संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय या बहुराष्ट्रीय संगठनों में समकक्ष पदों पर कम से कम 15 वर्ष का कार्य अनुभव रखने वाले लोग योग्य हैं.
इसके अलावा किसी राज्य और केन्द्र शासित क्षेत्रों में समान पदों पर काम करने वाले तथा अनुभव रखने वाले अधिकारी भी इन पदों के लिए आवेदन कर सकते हैं. इन पदों के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया इस महीने की 15 तारीख से शुरू होगी और 30 जुलाई तक चलेगी.
संयुक्त सचिव का पद सरकार के उच्च स्तर के प्रबंधन में महत्वपूर्ण है और ये अधिकारी नीति निर्माण की प्रक्रिया तथा विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के कार्यान्वयन में केन्द्रीय भूमिका निभाते हैं. सामान्य तौर पर इन पदों को संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उत्तीर्ण करने के बाद नियुक्त किए गए अधिकारियों के जरिये भरा जाता है.
ब्यूरोक्रेसी में लैटरल ऐंट्री का पहला प्रस्ताव 2005 में ही आया था, जब प्रशासनिक सुधार पर पहली रिपोर्ट आई थी. लेकिन तब इसे सिरे से खारिज कर दिया गया. फिर 2010 में दूसरी प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की गई. लेकिन पहली गंभीर पहल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई. पीएम मोदी ने 2016 में इसकी संभावना तलाशने के लिए एक कमिटी बनाई, जिसने अपनी रिपोर्ट में इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की अनुशंसा की.