अचरज वाली बात कौन सी है!
हज़रत इब्राहिम ने भी तो तय किया था कि अपनी सबसे प्यारी और क़ीमती चीज़ को अल्लाह के लिए क़ुर्बान कर देंगे.
और औलाद से प्यारा और अज़ीज़ भला कौन होता है?
मक़्क़ा के क़रीब मीना पर्वत पर वह चमत्कार हुआ था. कि जब हज़रत इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांधकर बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो अल्लाह ने बेटे को एक दुम्बे से बदल दिया.
बेटे इस्माइल की जान की क़ीमत थी, दुम्बे की जान की भला क्या क़ीमत थी!
वो दिन ईद उल अजहा कहलाया! आज तलक मनाया जाता है! आज तलक, और यह इक्कीसवी सदी है!
जोधपुर में ऐसा कोई चमत्कार नहीं हुआ.
जोधपुर मुक़द्दस शहर थोड़े ना है!
बाप ने बेटी को जिबह कर दिया, मीठी ईद कड़वी हो गई!
इतना बड़ा ख़तरा है! आप लोग समझने की कोशिश क्यों नहीं करते!
इतना अंधापन है, इतना बहरापन है! कि मासूम बच्चे की चीख़ें सुनाई दिखाई नहीं देतीं!
अगर उस दिन मीना पर्वत पर इस्माइल के बजाए दुम्बा हलाक़ नहीं हुआ होता तो आज बकरा ईद के मौक़े पर पूरी दुनिया में मासूम बच्चों का क़त्ल किया जाता रहता, मुझे इसमें कोई शुब्हा नहीं.
देखिये, उनकी जहालत पर मुझे कितना भरोसा है!
क्योंकि किताब में लिखा है, पत्थर की लकीर है, दुनिया इधर की उधर हो जाए, लेकिन यह तो होना ही है!
इतना बड़ा ख़तरा है, लिबरलों और सेकुलरों, आप कौन सी नींद में हो?
दुनिया की एक चौथाई आबादी इस अंधकार में जी रही है!
जो अपने बच्चों को जिबह करने के लिए तैयार हैं, उनके लिए इस दुनिया का भला क्या मोल?
लेकिन दुनिया का बचना बहुत ज़रूरी है. दुनिया का बचना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है.
दुनिया को बचाने के लिए अब सबको एक साथ आना होगा, दुनिया की एक चौथाई मुस्लिम आबादी को भी.
इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं रह गया है!
- सुशोभित सिंह