पूरी दुनिया में, एलेक्ज़ेंडर पुश्किन में, लोग बहुत दिलचस्पी लेते हैं. इस का कारण सिर्फ़ यही नहीं है कि वे एक महान और शानदार कवि थे, बल्कि इस की वजह यह भी है कि वे विभिन्न जातियों के लोगों की आत्मा को समझते थे.
सभी लोग उनकी कविता को समझते हैं, सभी को वह दिलचस्प लगती है क्योंकि उन्होंने सच्चे मन से, पूरी आत्मीयता के साथ उनकी रचना की थी.
भारत में पिछली शताब्दी के पाँचवे दशक में पुश्किन में गहरी रूचि ली जाने लगी, जब भारत और रूस के बीच मैत्रीपूर्ण और आत्मीय सम्बन्धों की स्थापना हुई. रूसी जनता के मानसिक और आत्मिक धरा-तल तक पहुँचने के लिये भारतीय लेखकों और कवियों ने पुश्किन को माध्यम बनाया, वैसे ही जैसे रूसी लोगों ने भारत की आत्मा को जानने-पहचानने के लिये कवि रविन्द्रनाथ टैगोर की और विशेष ध्यान दिया था.
इस समय महान रूसी कवि एलेक्ज़ेंडर पुश्किन की अधिकांश रचनाओं का भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और वे भारतीय पाठकों के लिये उपलब्ध हैं.
रूसी कवि एलेक्ज़ेंडर पुश्किन की दो कविताएं
(1)
मैंने प्यार किया है तुमको
और बहुत संभव है अब भी
मेरे दिल में
इसी प्यार की
सुलग रही हो चिंगारी
किंतु प्यार मेरा तुमको
और न अब बेचैन करेगा
नहीं चाहता इस कारण ही
अब तुम पर गुज़रे भारी
मैंने प्यार किया है तुमको
मुक-मौन रह आस बिना
हिचक-झिझक तो कभी जलन भी
मेरे मन को दहकाए
जैसे प्यार किया है मैंने
सच्चे मन से डूब तुम्हें
हे भगवान, दूसरा कोई
प्यार तुम्हें यों कर पाए…
(2)
मुझे याद है अद्भुत क्षण
जब तुम मेरे सम्मुख आई
निर्मल, निश्छल रूप छटा सी
जैसे उड़ती सी परछाईं
घोर उदासी, गहन निराशा
जब जीवन में कुहरा छाया
मंद, मृदुल तेरा स्वर गूंजा
मधुर रूप सपनों में आया
बीते वर्ष बवंडर टूटे
हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने
किसी परी सा रूप तुम्हारा
भूला वाणी, स्वर पहचाने
सूनेपन एकान्त तिमिर में
बीते बोझिल दिन निस्सार
बिना आस्था, बिना प्रेरणा
रहे न आंसू, जीवन, प्यार
पलक आत्मा ने फिर खोली
फिर तुम मेरे सम्मुख आई
निर्मल, निश्छल रूप छटा सी
मानो उड़ती सी परछाई
हृदय हर्ष से स्पंदित
फिर से झंकृत अंतर-तार
उसे आस्था, मिली प्रेरणा
फिर से आंसू, जीवन, प्यार…