आपके मनोरंजन के लिए प्रस्तुत है काँग्रेस का आइटम सॉंग उर्फ़ किसान आंदोलन…
कुछ इस तरह से ही समाचार माध्यमों पर होना चाहिए था काँग्रेसी नौटंकी का कवरेज…
इस बार #presstitutes और फेसबुक ने मिलकर मुझे भी चक्कर में डाल दिया…
इस नौटंकी के शुरू होने वाले दिन से ही ये पीछे पड़ी थीं कि सब्जियां ख़त्म हो चली हैं, जाओ ले आओ.
अपना जवाब था कि भाव आसमान पर होंगे.
किसी तरह इन्होने दो-तीन दिन काम चलाया और कल फिर वही राग अलापा – चलो मंडी चलते हैं, वरना कल की तरह सिर्फ दाल-रोटी ही मिलेगी.
अपने कान पर जूं भी न रेंगी तो ये महामहिम अर्थात पापा की शरण में पहुंची और फिर पापा खुद चलके कम्प्युटर रूम में मेरे पास आए.
ये मेरे लिए बड़ी घटना होती है, अपन ने सकपकाते हुए झट से कुर्सी छोड़ी और प्रश्नवाचक स्वर में कहा – जी?
गहन-गंभीर स्वर गूंजा – “महंगी होंगी तो क्या सब्जियां खाना छोड़ देंगे… जाओ और जिस रेट पर मिले ले आओ.”
इसके बाद तो किसी ना-नुकुर, किसी टाला-मटोली की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती है.
पहुंचे सब्ज़ी मंडी, सब्जियां लीं और घर वापस.
कहानी ख़त्म…. पर क्लाइमेक्स अभी बाक़ी है दोस्त…
सब्ज़ियों के भाव तो सुन लीजिये… मेरा दावा है होश उड़ जाएंगे…
आलू – 15 रूपए किलो
प्याज़ – 10 रूपए किलो
टमाटर – 10 रूपए किलो
भिंडी – 10 रूपए किलो
गिलकी (नेनुआ) – 15 रूपए किलो
लौकी – 15 रूपए किलो
पत्ता गोभी – 5 रूपए का एक
कद्दू – 10 रूपए किलो
ककड़ी – 15 रूपए किलो
धनिया – 5 रूपए का 250 ग्राम
हरी मिर्च – 10 रूपए की 250 ग्राम
कमोबेश इसी भाव पर आंदोलन शुरू होने पहले लाया था… सब्ज़ी विक्रेताओं से पूछा कि किसान आंदोलन के बावजूद सब्ज़ियों के भाव सामान्य क्यों हैं?
जवाब था कि अपने यहाँ कहाँ है आंदोलन… और कहीं हो रहा हो तो पता नहीं…
मैंने कहा – क्या बात कर रहे हो यार… हर रोज़ अखबार में, टीवी पर, फेसबुक पर दूध बहाते, सब्जियां फेंकते, उन्हें पैरों से कुचलते किसानों की तस्वीरें आ रही है.
उसने ऊपर से नीचे तक मेरा मुआयना किया और फिर मेरी सफ़ेद मूंछों का लिहाज़ करके भरसक सभ्य तरीके से बोला – बाबूजी, क्या कभी आपने काँग्रेसियों द्वारा किया जाने वाला पुतला-दहन कार्यक्रम नहीं देखा? 15-20 लफंगे एक नेता की अगुआई में खड़े हो जाते हैं. पुतला फूंकते हैं, फ़ोटो खिंचवाते हैं, अपने आकाओं को ये फ़ोटो भेजकर लंबी तान के सो जाते हैं… तो आप जो देख रहे हो ये वही फ़ोटो-खिंचाऊ नौटंकी है… समझ गए?
अपन ने सहमति में सर हिलाया और सोचने लगा कि जब ये सब्ज़ी वाला इतना जानता-समझता है तो फिर काँग्रेस की फिलहाल तो कोई संभावना नहीं बनती.