सौरभ-वाणी : कागज़ की एक नाव गर पार हो गई, उसमें समंदर की कहाँ हार हो गई!

मार्क्सवादी माफियाओं की कुँए में मेंढक वाली संकुचित व मर्यादित विचारधारा कॉकरोच समान है. लाख उपाय करोगे तो भी ये हमेशा के लिए नष्ट नहीं होगी. इसलिये हर थोड़े समय में पेस्ट कंट्रोल वालों को बुलाते रहना चाहिए.

अपनी पेस्ट कंट्रोल सर्विस को आगे के लिए मुल्तवी कर आज ध्यान देने योग्य एकदम प्रेसिंग तीन-चार मुद्दे देख लेते हैं. मार्क्सवादियों को अगले लेख में लेंगे.

जो तीन-चार मुद्दे तत्काल, त्वरित गति से लेने हैं, वे ये रहे :

1. सोने के भाव आप रोज़ पढ़ते होंगे. रोज़ का उतार चढ़ाव लगा रहता है.

आपके शेयर बाज़ार में भी हर शेयर के भाव में न केवल रोज़, अपितु दिन में कितनी बार उतार चढ़ाव देखा जाता है.

रुपये के डॉलर के साथ भाव में या अन्य विदेशी मुद्राओं के साथ के भाव में भी इतना ही तीव्र उतार चढ़ाव रहने वाला है.

आपने मुम्बई से न्यू यॉर्क जाते समय जिस भाव से डॉलर लिए होंगे वो भाव दुबई पहुँचते, लंदन के फ्रेंकफर्ट पहुँचते और अंततः JFK (जॉन एफ़ कैनेडी एयरपोर्ट) पर उतरते समय बदला हुआ मिलता है.

अरे ये सब हाई फाई बातें तो ठीक है, एक ज़माने में शहरों में जब तबेले वाले डेयरी चलाते थे, दूध के बड़े बड़े केनों युक्त, वहाँ ‘आज के दूध का भाव’ लिखा हुआ बोर्ड होता था. दूध का भाव हर रोज़ बदला करता था.

तो फिर (अब मैं चिल्ला-चिल्ला के कह रहा हूँ, सुनाई दे रहा है?) पेट्रोल का भाव, रुपया घटे-बढ़े या एक पैसा बढ़े-घटे, इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की मूर्खता क्यों कर रहे हो?

डीज़ल-पेट्रोल का भाव बढ़ना एक नॉन इश्यू है, नॉन इश्यू है, नॉन इश्यू है.

मई, 2018 के महीने में अशोक लेलैंड के कमर्शियल वाहनों की बिक्री में 51% वृद्धि हुई, मारुति की बिक्री में 28%, एस्कॉर्ट ट्रेक्टर की बिक्री में 21%, बजाज ऑटो में 30%, महिंद्रा एंड महिंद्रा में 12% और आइशर में 23% वृद्धि हुई है.

ये आँकड़े कोटक जैसी ज़िम्मेदार फाइनेंशियल कम्पनी से जुड़े हुए अति जवाबदेह नीलेश शाह के ट्विटर हैंडल से लिये गए हैं. ये नए वाहन ख़रीददार टंकी में डीज़ल पेट्रोल के बदले क्या बिसलरी डालने वाले हैं? तुम भी कैसी बात करते हो, काँग्रेसियों!

2. उपचुनाव में भाजपा लोकसभा की तीन में से दो सीटें नहीं जीत सकी. ये दोनों सीटें 2014 के चुनाव में भाजपा ने जिनके पास से छीन ली थी उनके पास ही फिर से चली गई.

और जो मीडिया ने भोंपू बजाया है साहब, “भाजपा पतन की राह पे चल पड़ी है!, मोदीजी बोरिया बिस्तर बांध के पलायन की तैयारी करो!, विपक्ष एक साथ आ जाएगा तो भाजपा को बहुत भारी पड़ेगा! ”

इस शोरशराबे में कोई नहीं पूछ रहा कि कर्नाटक में कांग्रेस-जनता दल (एस) की सरकार को बने हुए पखवाड़ा गुज़रने को हुआ. कौन वित्त विभाग झपटे व कौन गृह मंत्रालय, इसका समझौता होते सात दिन लगे.

बाकी के विभाग तो अभी भी बाकी हैं. जो दो पार्टियां सत्ता में आने के बाद विभागों का बँटवारा भी शांति से नहीं कर सकतीं, हिल-मिल के प्रधानमण्डल की रचना करके कर्नाटक की जनता के कार्य करना शुरू नहीं कर सकतीं, वे ‘बिल्ला-बिल्ली’ 2019 में क्या खाक इकट्ठे रहने वाले हैं!

मायावती ने तो पहले ही कह दिया है कि हमें ठीकठाक सीटें नहीं मिलीं तो हम किसी के साथ नहीं जुड़ेंगे. एक-दो उपचुनावों में ठीक है, किसी के पास बहुत खो देने को कुछ नहीं होता और किसी के पास बहुत पा लेने को कुछ नहीं होता.

पुरानी कहानी है. एक बांझ स्त्री बाज़ार में से गुज़र रही थी, इतने में हवा चली और साड़ी में भर गई. लोगों को लगा कि वो पेट से है…

कहानी में तो पुत्रजन्म के पेड़े बंटे थे या नहीं उसका पता नहीं पर सपा/ बसपा/ जद/ कांग्रेस/ सेना/ आप/ सीपीआई वगैरह ने कैराना उपचुनाव नतीजों के बाद टनों पेड़े बेच-बाँट दिये हैं.

‘मुझे चिंता होती है कि 2019 में मोदी का क्या होगा’… ऐसी रोनी बातें बंद करो. बाँझ के यहाँ जो अगर संतान होनी होती तो कभी की जन्म चुकी होती.

3. स्वामी रामदेव प्रोग्रेसिव व्यक्ति हैं. कुछ हल्के लोग उन्हें बिज़नसमैन कहके उनका व्यक्तित्व नीचे गिराने का प्रयास करते हैं. भले करें.

रामदेव व्हाट्सएप जैसा नया एप बाज़ार में लाये- ‘किम्भो’ नाम से. इसे उपयोग करने की इतनी होड़ मची कि वेबसाइट क्रैश हो गई.

भविष्य में ये एप कैसा काम करेगा, देखा जाएगा. अभी इसके सिक्योरिटी फीचर्स को लेकर किसी विदेशी तकनीकी विशेषज्ञ ने बड़ा विवाद खड़ा किया है और अधिकृत गूगल प्ले स्टोर ने इस एप को अपने सिस्टम से हटा दिया है.

इस समाचार को गा-बजा कर आपको देने वाले अखबारों/ चैनलों ने क्या आपको ये बताया कि एक प्रख्यात टैक्सी कंपनी ने अपनी एप की प्राइवेसी पॉलिसी में ‘बदलाव’ किये हैं.

लीगल व टेक्निकल भाषा में अपने जैसों को ज़्यादा समझ नहीं है पर ‘बदलाव’ ये है कि आप उस टैक्सी वाली एप से टैक्सी बुलाओ तो ये आपकी फोनबुक के सभी कॉन्टेक्ट्स, बैंक डिटेल्स और अन्य कई जानकारियाँ तुरंत हासिल कर लेती है व अन्य लोगों के साथ शेयर कर सकती है.

मैं टैक्सी बुलवाऊँ, उसमें इसे सिर्फ मेरा नंबर चाहिए, मेरे पड़ोसी-डॉक्टर-मित्रों-गर्लफ्रेंड्स वगैरह के नंबर क्यों चाहिए?

बाबा रामदेव को बदनाम करने वाले मीडिया को इन टैक्सी वालों ने आपकी प्राइवेसी भंग करने के लिए जो ‘बदलाव’ किया है, उसकी किसी को कोई परवाह नहीं है.

क्या ये जवाबदेही मीडिया की नहीं? पर टैक्सी वाले अरबों डॉलर्स न्यौछावर कर बिज़नेस करते हैं इसलिए उनके सामने कोई चूँ या चाँ नहीं करता.

 

4. अंतिम बात. क्या आपको जानकारी है कि देश क्रमशः कितना समृद्ध हो रहा है? देश की जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) में नोटबन्दी व जीएसटी के पश्चात के पिछले 7 क्वॉर्टर्स में अर्थात गत पौने दो वर्षों के दरमियान सतत वृद्धि होती रही है.

एग्रीकल्चर, मैन्यूफैक्चरिंग व कंस्ट्रक्शन – तीनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. संक्षिप्त में आंकड़ेबाजी कर लें तो 2017-18 के वित्तीय वर्ष के पहले क्वार्टर में 5.6%, दूसरे में 6.3%, तीसरे में 7% और मार्च 2018 में पूरे हुए चौथे क्वार्टर में देश की जीडीपी का आंकड़ा 7.7% की दर से आगे बढ़ा.

कम शब्दों में कहें तो सरकार अच्छा काम कर रही है. व्यर्थ शोर ना मचाएं.

आज का विचार

किसी में कोई कमी दिखे तो उसके साथ बात करनी चाहिए.

पर हर एक में कोई कमी दिखे तो स्वयं से बात कर लेनी चाहिए.

– व्हाट्सएप से उद्धृत

एक मिनट!

संता: बंता, एक शायरी याद आ रही है.

बंता: क्यों?

संता: ये उपचुनाव के परिणाम देखे न इसलिए.

बंता: इरशाद

संता: कागज़ की एक नाव अगर पार हो गई…

बंता: वाह वाह, कागज़ की एक नाव अगर पार हो गई

संता: उसमें समंदर की कहाँ हार हो गई!

– लेखक गुजरात के प्रख्यात पत्रकार और लेखक ‘सौरभ शाह‘, जिन्होंने ‘एकत्रीस स्वर्ण मुद्राओं, संबंधों नुं मैनेजमेंट एवं अयोध्या थी गोधरा’ सहित 14 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें पांच नॉवेल भी सम्मिलित हैं.

(अनुवादक – ‘मेकिंग इंडिया’ टीम के अंकित चंद्रशेखर)

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