जीवन दीप : अंगदान सबसे बड़ा दान

सेजल नाम रखा है इनके मम्मी पापा ने इनका. पापा एक प्लेसमेंट कम्पनी में कार्यरत हैं. इस परिवार से अपना रिश्ता 4 महीने पुराना है. जब पता चला बच्ची के दिल में 3 छेद है. जब इस बच्ची की तस्वीर देखी तो बहुत सहम गया था मैं, लग रहा था गोद में उठाकर ढेर सारा प्यार करूं.

साथ ही यह चिंता हो रही थी कि इसके आगे का लाइन ऑफ़ ट्रीटमेंट क्या होगा. अपने सहयोगियों से बात की फिर पता चला कि इसकी परेशानी इतनी बड़ी है कि छत्तीसगढ़ के किसी बड़े हॉस्पिटल में इस बच्ची का इलाज संभव नहीं है.

अंततः बंगलौर के नारायणा हृदयालय ले जाने पर सहमती बनी. घर वाले बिलकुल भी सक्षम नहीं थे तो जीवनदीप के साथ अनेक लोगों ने सेजल के लिए आगे आ कर आर्थिक मदद की.

फ़रवरी से सेजल का इलाज चालू हुआ. डॉक्टर्स ने बताया कि परेशानी बड़ी है वक़्त लग सकता है. करीब 3 से 4 महीने सेजल हॉस्पिटल में आईसीयू के अंदर वेंटीलेटर पर रही. डॉक्टर्स भी हैरान थे बच्ची की क्षमता देखकर. दर्द सहने की अपार क्षमता थी सेजल में.

पर डॉक्टर्स यह भी बताते जा रहे थे सेजल की परेशानी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. दिल में छेद के साथ साथ उसका एक वाल्व भी सिकुड़ रहा था. कुछ प्रयास सफल हुए तो कुछ असफल, इन्हीं के बीच सेजल की बाईपास सर्जरी भी की गयी.

कल शाम मेरे सहयोगी चित्रसेन भाई की एक कॉल ने अंदर से हिला दिया, भैया अब सेजल नहीं रही. छ देर पहले ही उसने दम तोड़ दिया. उसे यहाँ लाना है कैसे करें. न से फ्लाइट से? शांत हो कर मैं सारी बातें सुन रहा था. मैंने हिम्मत जुटा कर सेजल के पापा से बात की. वह इंसान अपनी बच्ची को ना बचाने के दुःख में रो पड़ा. फोन पर शांत करा कर उसे कहा कि हम उन्हें वापस लाने का प्रयास करते हैं. ट्रैवेल एजेंट से चर्चा हुई. सब दोस्तों ने फिर से पैसे कलेक्ट किये. इस परिवार की टिकट स्पोंसर करने के लिए कई लोगो के कॉल आये. पर मेरे मन में कुछ और भी बातें चल रही थी, जिसे कहने की मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

किसी तरह खुद को मजबूत कर मैंने सेजल के पापा से बात की. चूँकि एक मृत शरीर को फ्लाइट से लाने में बहुत ही जद्दो जेहद करनी होती है. दुनिया भर की प्रक्रिया और क्लियरेंस की जरुरत होती है. ये सारी बातें उनके पिता को समझाई. उनके पिता अपने घर पर बात करते रहे. घर वालो ने सर्व सहमति से यह तक कह दिया कि आप चाहे तो बच्ची को बंगलौर में ही विधि विधान के साथ मिटटी दे सकते हैं.. यह बात सेजल के पिता ने मुझे बताई.

चूँकि सेजल के केस में मैंने काफी प्रयास किया था दोस्तों के साथ, इस हक़ से मैंने सेजल के पिता से कहा, हम चाहे जितनी बात कर लें, पर सच यह है कि सेजल हमारे बीच नहीं है. आप जैसा चाहे आगे भी आपकी मदद को हम तैयार हैं. पर मुझे लगता है कि सेजल आपको एक जिम्मेदारी दे कर गयी है. जिसे शायद आप नहीं समझ पा रहे हैं.

आपने अपनी प्यारी बच्ची के लिए हर वो बेहतर प्रयास किया जो एक जिम्मेदार पिता को करना चाहिए था. कही भी नहीं चुके आप. क्या आप चाहते हैं कि सेजल जैसी बीमारी और किसी नन्हे मुन्हे को हो? और वो परिवार भी आपकी तरह तड़पे? दर दर भटके!

उन्होंने कहा नहीं सर मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरे साथ जो हुआ वो और किसी के साथ ..मैं जो होगा वो करूँगा..

एक लम्बी सांस लेकर मैंने उनसे कहा .. कि चाहे बंगलौर में हो या अपने गृह नगर में आप सेजल को पूरी विधि विधान के साथ विदा कर देंगे. उसे मिटटी दे दी जायेगी. लेकिन उसके बाद क्या? उसके पिता मेरी बात समझ ना पाए…

मैंने उन्हें खुल कर समझाया कि आप एक कदम उठा सकते हैं. ताकि यह परेशानी किसी दूसरे बच्चे को ना हो.. लेकिन उसके लिए हमे सेजल की देह को किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज को डोनेट करना होगा, आप चाहे तो पूरी विधि विधान के साथ पूजा करके सेजल को डॉक्टर्स के सुपुर्द कर सकते हैं.

भविष्य में बनने वाले डॉक्टर्स इस पर पढ़ाई करेंगे, इस बीमारी और होने वाली पेचीदगियों को समझेंगे. हर वो कोशिश करेंगे कि यह बीमारी अगर किसी बच्चे को होती है तो उसके उपाय क्या हो, कैसे बेहतर इलाज हो और वह काल के मुंह में ना समाये.

और एक तय वक़्त के बाद वह डॉक्टर्स भी सेजल को ससम्मान नियत प्रक्रिया के तहत मिटटी के सुपुर्द कर देंगे. आपकी सेजल उस मेडिकल कालेज की नींव बन चुकी होगी. आप जब भी उस हॉस्पिटल के पास से गुजरेंगे आपको एहसास होगा कि यहाँ धड़कने वाली तमाम ज़िंदगियों के पीछे सेजल का हाथ है. उन डॉक्टर्स का हाथ है जिन्हें सेजल ने खुद पर पढ़ाई करने की अनुमति दी थी.

भगवान ने आपको सेजल दी थी, और आप उसे वापस समाज को समर्पित कर रहे होंगे.. हमारे इसी मानव समाज की बेहतरी के लिए. क्या आप इस कदम के लिए तैयार हैं, सेजल के पिता से मैंने पूछा?

उन्होंने थोडा असहज होते हुए अपने परिजनों से इस हेतु अनुमति लेने की बात कही.

परिवार वालों से काफी विचार विमर्श के बाद उन्होंने कहा कि सर आपकी सोच बहुत सही है और निश्चित ही इससे लोगों का भला होगा. पर मेरे परिवार के सदस्य इस बात के लिए नहीं मान रहे हैं. वो हमारी परंपरा के हिसाब से आगे के कार्यो करने की बात कर रहे हैं. सबने यह फैसला किया है कि हम सेजल का बंगलौर में ही विधि विधान से अंतिम संस्कार करेंगे.

उनके इस जवाब के आगे मैंने कुछ नहीं कहा.. बस यही कहा कि आपके परिवार का जो भी निर्णय है उसमें मेरी सहमति है. आगे जो भी हमारे लायक आदेश हो ज़रूर बताएं. हम सब साथ हैं. इन्ही शब्दों के साथ मैंने बात ख़त्म की.

सेजल के जाने का मुझे बहुत दुख है. पर अफ़सोस मैं रो नहीं सकता, मैं इस दुःख को लेकर बैठ नहीं सकता. मैं भी उसके ठीक होने पर उसे गोद में खिलाना चाहता था. नहीं मालूम था कि उसके चले जाने की पोस्ट लिखनी पड़ेगी.

पर एक बात आप सबसे पूछना चाहता हूँ… ये इतनी सारी परम्पराएँ किसने बनाई है? क्या सारे नियमों का पालन ज़रूरी है? क्या हमें आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचने की ज़रुरत नहीं है. हमारे देश में अंग दान/देह दान को लेकर क्या स्थिति है इन सबसे हम भली भांति वाकिफ है. उसके बाद भी हम नहीं जागे हैं.

इन हालत में किसी परिवार को यह सब कहना बड़ा मुश्किल होता है. पर यह कहना भी ज़रुरी है क्योंकि मुझे हर उस उम्मीद पर काम करना है जहाँ ज़िंदगियाँ बचाई जा सके. एक नए जीवन की सम्भावना दिखे..

जिस दिन से इन सब में कदम रखा था ..जानता था कि लड़ाई लम्बी चलेगी मेरी.. इतना आसान नहीं है ये सब कुछ..

सेजल हमेशा मेरे दिल में प्यार बनकर रहेगी, सेजल के परिवार ने जो फैसला लिया उसका दिल से सम्मान करता हूँ. वो अपनी जगह सही हैं तो मैं भी अपनी जगह सही हूँ. मैं हर बातो को उत्पत्ति की तरफ देखता हूँ, खात्मे की तरफ नहीं. पर हम सब को सोच बदलने की ज़रुरत है. कुछ मिथक तोड़ कर आगे आने की कोशिश होनी चाहिए. सेजल का मासूम चेहरा आँखों के सामने घूम रहा है..

चाह कर भी नहीं रो सकता, सेजल जैसे और कई मेरा इन्तजार कर रहे हैं. उनकी धड़कनों को आबाद रखने के लिए निकलना है मुझे.. मैंने अपने परिवार से कह रखा है. मेरे जिस दिन अंतिम समय आये मुझे इस समाज को ही समर्पित कर देना.

जलाना होगा तो मेरे बाल के टुकड़े काट कर जला देना. इन बेशकिमित अंगों को और उसे सहेजने वाले शरीर को नहीं. आखिरी दम तक खुशियां देकर ही जाना चाहता हूँ. ऊपर वाले का तिलिस्म ऐसा है जो हमें धरती पर इन बेशकीमती उपहारों के साथ भेजता है, जिसे आप यूं ही बर्बाद नहीं कर सकते.

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