
प्रणव मुखर्जी अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में जा रहे हैं तो काँग्रेसियों को इतनी हाय-तौबा नहीं करनी चाहिए.
अब वह काँग्रेस के ही नहीं, राष्ट्रीय धरोहर हैं. कहीं भी आ जा सकते हैं. सब को कैद में रखने और डिक्टेशन पर रखने की आदत छोड़ देनी चाहिए. प्रणव मुखर्जी के 48 साल के संसदीय अनुभव पर भरोसा किया जाना चाहिए.
किसी के कहीं आने-जाने से विचारधारा प्रभावित होती है, यह कहना नितांत बचपना है. हमारे भारत में वामपंथी साथियों की यही छुआछूत उन्हें ले डूबी है.
आखिर संसद में सभी विचारधारा के लोग एक साथ बैठते हैं. अपनी-अपनी बात कहते हैं. कहीं भी जा कर कोई बात कहे. वैचारिक आवाजाही तो हर जगह बनी रहनी चाहिए.
किसी भी बागीचे में हर तरह के पेड़, किसी भी पार्क में हर तरह के फूल रहें तो हर्ज क्या है. खतरा किस बात का है भला.
कहीं न आना-जाना, किसी की बात न सुनना ही फासिज्म है. हर दीवार में खिड़की रहनी चाहिए. ताज़ी हवा, ताज़ी रौशनी के लिए. वैचारिक आवाजाही के लिए भी.
नाना जी देशमुख और यशपाल के बीच की एक घटना याद आती है जो कभी कहीं पढ़ी थी.
नाना जी देशमुख एक बार लखनऊ आए तो यशपाल जी से मिलने उन के घर गए और कहा कि आप पांचजन्य के लिए लिखिए.
यशपाल ने कहा कि मेरा लिखा वहां कैसे छप सकता है भला?
नाना जी देशमुख ने यशपाल जी से कहा कि, आप जो भी लिखेंगे वही छपेगा. एक शब्द नहीं बदला जाएगा.
और यशपाल जी पांचजन्य के लिए लिखने लगे.
बता दें कि यशपाल जी बड़े लेखक तो थे ही, घोषित कम्युनिस्ट थे. जाति से ब्राह्मण ज़रूर थे यशपाल जी, पर जनेऊ वगैरह तोड़ कर फेंक चुके थे.
अब प्रणव मुखर्जी जा रहे हैं संघ के कार्यक्रम में. दिक्कत क्या है? संघ का कार्यक्रम कोई संसद में राष्ट्रपति का अभिभाषण तो है नहीं जो सरकार का लिखा ही पढ़ना होगा. प्रणव मुखर्जी जो चाहे बोल सकते हैं.
क्या पता इस बहाने नरेंद्र मोदी सरकार प्रणव मुखर्जी के लिए भारत रत्न की भूमिका बना रही हो. क्यों कि प्रणव मुखर्जी बतौर राष्ट्रपति मोदी सरकार के लिए कभी भी कोई बाधा ले कर नहीं खड़े हुए. सर्वदा सहयोगी भाव रखा. आधी रात जी एस टी सेशन तक वह सहयोगी ही रहे. अभी सिर्फ़ संघ के कार्यक्रम में जाने पर काँग्रेस भड़की हुई है.
क्या पता इस चुनावी साल में प्रणव मुखर्जी को भारत-रत्न दे कर मोदी सरकार काँग्रेस को और चिढ़ाए, और भड़काए. तो काँग्रेस को बात-बेबात भड़कना और चिढ़ना बंद कर शांत बैठना चाहिए.
काँग्रेस के एक गलत फैसले इमरजेंसी में समाजवादी जय प्रकाश नारायण संघ के साथ कदम से कदम मिला कर न सिर्फ चले थे बल्कि और तमाम लोगों को भी साथ चलने के लिए खड़ा कर दिया था. संघ के प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य बता ही रहे हैं कि महात्मा गांधी भी संघ के कर्यक्रमों में जा चुके हैं.
काँग्रेस को अपना घर फ़िलहाल ठीक करना चाहिए. अपनी हालिया विजय कर्नाटक संभालने पर ध्यान देना चाहिए. मुख्य मंत्री कुमारस्वामी के इस कहे में कि हम काँग्रेस की कृपा पर हैं, बगावत के बारूद की गंध है. इस की पड़ताल करनी चाहिए. प्रणव मुखर्जी के संघ के कार्यक्रम में जाने पर विधवा विलाप नहीं. यह बेमकसद और बेमानी है, काँग्रेस का बचपना परिलक्षित होता है.
भाजपा ने 2019 के चुनाव के लिए बिसात बिछानी शुरू कर दी है, काँग्रेस को इस बात को गंभीरता से सोचना चाहिए. बहुत हो गया, संघी-संघी का भेड़िया कहना. अब जनता संघी भेड़िए के डर के झांसे से निकल आई है. भाजपा के खिलाफ कोई और हथियार खोजना चाहिए काँग्रेस और समूचे प्रतिपक्ष को. संघी जुमला जंग खा चुका है.