अच्छा आप लोग बताये ‘फेमिनिज़्म’ का क्या मतलब होता है? आप के हिसाब से.
भारत में नारीवादी विचारधारा की, किस महिला का चेहरा सबसे पहले आपके आँखों के सामने आता है?
कंगना रानाउत?
स्वरा भास्कर?
सोनम कपूर?
फेमिनिस्ट सुनते ही ये नाम और चेहरे जरूर याद आ जाते हैं. फेसबुक पर कई महिला मित्र हैं जो खुद को ‘फेमिनिस्ट’ कहती हैं, ऊपर दिए गए नाम में किसी न किसी से ये प्रेरित होती हैं.
अभी कुछ समय बाद एक फिल्म आनी है “वीरे दी वेडिंग”; निःसंदेह वो फिल्म हिट जाएगी मैं इसे अभी बोलता हूँ, उसमें आपको सोनम कपूर के मुँह से महिला के भौगोलिक अंगों वाली मर्दानी गालियां सुनने को मिलेगी, जिन पर सीटियां भी खूब पड़ेगी. माँ-बहन की गालियां सहज देते हुए दिखेगी. महिला के मुँह से गाली सुनने की चाह और इन्हीं सब चीज़ों में एक महिला प्रधान मैसेज डाल दिया जाता है.
अब फिल्म का उद्देश्य ज़रूर महिला को नीचा दिखाना न हो, मगर इस तरह के खुलेपन का ढोंग कर, लोगों को गुमराह करके उसके अंदर एक ऐसा दोहरा चरित्र वाला व्यक्ति पैदा किया जा रहा है, जो वो दूर- दूर तक नहीं है.
सोशल मीडिया पर कई महिला मित्र हैं जो खुद को फेमिनिस्ट कहती हैं, फेसबुक पर लिख भी रखा है.
कुछ भी लिखती हैं, अंडरगारमेंट्स की फोटो डालकर कोई व्यंग करना, गाली देकर कुछ लिखना, पुरुष के निजी अंगो की चर्चा करना, बहुत ही निजी और पर्सनल बातों को लिखना. आपत्ति जताने पर यह कहना कि ये खुलापन है, तुम अपनी सोच का दायरा बढ़ाओ.
इनके लिए अंतरंग बातों को यहाँ रखना, गाली देना, उस पर बोलना ही ‘फेमिनिज़्म’ है.
अगर उन महिलाओं में से कोई मुझसे ये कहे कि “मंटो” भी लिखते थे ऐसा, तो ऐसा है कि वो एक दायरे में लिखते थे. समाज में होने बाली चीज़ों को ज्यों का त्यों उतार देते थे. वैश्याओं के बारे में, कई ऐसी बातों के बारे में लिखा जो आपत्तिजनक लगी. मगर वो सब हमारे समाज का हिस्सा है.
किन्नरों को देखने से हम अभी तक सहज नहीं हुए, निगाह ठहर ही जाती है. मगर उनके बारे में लिखना अलग बात है मगर यहाँ तो पूरा माहौल ही “अन्तर्वासनाओं” का बना रखा है.
किसी महिला ने लिखा “सुबह- सुबह का सेक्स सबसे अच्छा होता है.” नाम नहीं लूँगा भई’ फेमिनिस्ट’ हैं कब हमारी सोच के दायरे के बारे में लिख दे….
अब इस पर कमेंट करने वालों की संख्या जो थी वो पुरुषों की ही थी सामान्य सी बात है, जवाब भी वासनाओं से रहित आ रहे थे. लिख नहीं सकता…. मगर आप सब समझ सकते हैं.
हाँ! एक बात और इस अपडेट में 10-12 लोग 40 से 60 वर्ष के थे, वो सब वाह! बहुत खूब! बेबाक! आशीर्वाद दिए जा रहे थे कि ऐसे लिखते रहो. आशीर्वाद? मतलब गंद फैलाने के लिए आशीर्वाद दिया जा रहा था. ऐसा एक बार का नहीं, ये लोग हमेशा ही इस तरह से ही अपने खुले विचारों का परिचय देते हैं.
कई महिलायें शादी – शुदा हैं, पतियों को ब्लॉक करके रखा है. बिचारों का जन्मदिन आने पर उनका फोटो आ जाता है मगर टैग नहीं. आएगा भी कैसे? जब जुड़े हों तब तो.
“फेमिनिस्ट” कहलाना गलत नहीं, मगर उसकी परिभाषा तो मत बदलो. मेरे लिए तो हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी फेमिनिस्ट “मदर इंडिया” रही हैं. जिसने समर्पण की एक नई कहानी रची है.
आज का ‘फेमिनिज़्म’, आज के गानों की तरह ही है. बस उतना ही दिखेगा कुछ समय के लिए चमकता हुआ “चार बज गए लेकिन पार्टी अभी बाकी है”, अब नहीं सुनाई देता ये गाना , क्यों?
किशोर , लता, मुकेश अभी तक क्यों चल रहे हैं. वही पुराने गाने, नई पीढ़ी भी सुन रही है. कोई बात तो होगी?
पूरी तरह से परिभाषा बदल दी है. पुराने में नया जोड़ते तो भी चलता, आजकल गानों में भी यही चल रहा है. पुराने गाने को नए पैकेट में डाला जा रहा है. चलता भी है. लेकिन इस तरह से खुली विचारधारा बोलकर फूहड़ हो जाना कहाँ तक सही है?
“जितनी ज्यादा सोच नग्न होगी, उतने ही ज्यादा बड़े फेमिनिस्ट कहलाओगे.”
मेरी एक महिला मित्र हैं उनसे डिस्कस करता रहता हूँ मैं ये सब. उन्होंने एक बात बहुत अच्छी कही, कि इन सब को ‘मुद्दा’ न बनाकर ‘विषय’ बनाओ, वो घूम ही इसीलिए रहे हैं कि उनकी चर्चा हो.
‘फेमिनिज़्म’ का इतना ही शौक है तो इनको छोड़कर कभी कमला भासिन, अमृता प्रीतम, इंद्रा जयसिंह जैसे लोगों को पढ़े, ‘फेमिनिज़्म’ सही मायने में समझ आएगा.
सिर्फ ‘B%%%%hO’ कहना ही फेमिनिज़्म नहीं!!!