आज विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस : ये दाग़ अच्छे हैं

आज विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस है. वर्ष 2014 से 28 मई को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य समाज में फैली मासिक धर्म सम्बन्धी गलत अवधारणा को दूर करना और महिलाओं तथा किशोरियों को माहवारी प्रबंधन सम्बन्धी सही जानकारी देना है.

एक आंकड़े के अनुसार आज भी 50 प्रतिशत से ज्यादा किशोरियां मासिक धर्म के कारण स्कूल नहीं जाती हैं. महिलाओं को आज भी इस मुद्दे पर बात करने में झिझक होती है जबकि आधे से ज्यादा को तो ये लगता है कि मासिक धर्म कोई अपराध है.

आज भी देश के कई परिवारों में लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान परिवार से अलग थलग कर दिया जाता है, मंदिर जाने या पूजा करने की मनाही होती है, रसोई में प्रवेश वर्जित होता है. यहां तक कि उनका बिस्तर अलग कर दिया जाता है और परिवार के किसी भी पुरुष सदस्य से इस विषय में बातचीत न करने की हिदायत दी जाती है.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार देश में आज भी 62 प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. इस सर्वे में 15 से 24 आयु वर्ग की महिलाओं को शामिल किया गया था. कई राज्यों में तो 80 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं.

सर्वे में खुलासा हुआ कि देश में महिलाएं आज भी पीरियड्स के लिए कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. बिहार में 82 प्रतिशत महिलाएं जहां कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, वहीं उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं.

इन दोनों प्रदेशों में 81 प्रतिशत महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती हैं. सर्वे ने पाया कि 42 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, वहीं 16 प्रतिशत महिलाएं लोकल तौर पर बनाए गए नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं.

ग्रामीण भारत में केवल 48 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं. इस मामले में शहरी क्षेत्र की महिलाएं हाईजीन का खयाल रखते हुए पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन यूज करती हैं. सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करने वाली शहरी महिलाओं का प्रतिशत 78 प्रतिशत है.

सर्वे का कहना है कि इसमें महिलाओं का शिक्षित और और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होना भी एक बड़ा कारण है. शिक्षित महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं और हाईजीन का खयाल रखती हैं.

सर्वे के अनुसार मिजोरम, तमिलनाडु, गोवा, केरल और सिक्किम राज्यों में महिलाएं पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई का खास ध्यान रखती हैं. वहीं महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में महिलाएं इसका कम ध्यान रखती हैं.

डॉक्टर्स पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करना सभी नहीं मानते. इससे कई इंफेक्शन्स होने का खतरा रहता है लेकिन सैनिटरी नैपकिन को लेकर कम जागरुकता के चलते महिलाएं आज भी कपड़ा इस्तेमाल करने को मजबूर हैं. सैनिटरी नैपकीन, टैंपून और मेंस्ट्रुअल कप का महंगा होना भी एक कारण है कि महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती हैं.

बदलते समय के साथ स्त्रियों की सोच में भी परिवर्तन आया है. वो इस बात को समझने लगी हैं कि पीरियड्स एक नेचुरल प्रक्रिया है यह कोई बीमारी या समस्या नहीं है और ना ही छुआछूत है जिसे छुपाने की जरूरत हो.

व्यापक स्तर पर भले ही ना हो, लेकिन फिर भी आज आज की लड़कियां, अब उन मुश्किल दिनों के बारे में अपनों के बीच में खुलकर बातें करनी लगी हैं, जो कि एक सकारात्मक संकेत है.

विशेषज्ञों की राय में यह एक खूबसूरत और सराहनीय कदम है क्योंकि अब वक्त आ गया है कि इन बातों को लेकर इंसान अपनी चुप्पी तोड़े. आज के बदले परिवेश में लड़कियां बाहर निकल रही हैं, कभी पढ़ने के लिए तो कभी नौकरी के लिए, ऐसे में अगर वो मासिक धर्म को लेकर सकुचायी रहेंगी तो वक्त के साथ चल कैसे पाएंगी.

डाक्टरों का मानना है कि मासिक धर्म के बारे में बताने वाली सबसे अच्छी जगहें स्कूल हैं, जहां इस विषय को यौन शिक्षा और स्वच्छता से जोड़कर चर्चा की जा सकती है. इसके लिए जागरूक और उत्साही शिक्षकों की जरूरत है, जो विद्यार्थियों को मासिक धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के विषय में जानकारी दे सकें.

लड़कियों का मानना है कि पहले घर में बच्चियों की माएं ही इस बारे में अपनी सोच बदलें और इस बारे में अपनी बेटियों को ठीक से बतायें ताकि उनकी बेटी को किसी के सामने शर्मिंदा ना होना पड़े और वो हर बात से जागरूक रहे.

टीवी, इंटरनेट पर आज हर तरह की सामग्री मौजूद है जिसने लोगों की सोच मासिक धर्म के बारे में बदली है.

पिछले दिनों सोशल साइट्स पर एक कैम्पेन चलाया गया- सेल्फी विथ पैड. उस कैम्पेन की महत्वपूर्ण बात यह रही कि इसमें छोटे शहरों की लड़कियां शामिल हुई. फिल्म पैडमैन ने भी पीरियड्स पर शर्म करना नहीं बल्कि गर्व करना सिखाया.

लोगों को समझना होगा कि मासिक धर्म कोई अपराध नहीं है बल्कि प्रकृति की ओर से दिया गया महिलाओं को एक तोहफा है… और हाँ ये दाग़ अच्छे हैं क्योंकि ये तो महिलाओं को एहसास कराता है कि वो जगत जननी है उनसे ही आने वाला कल है उनसे ही समाज का अस्तित्व जुड़ा है.

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