वित्तीय वर्ष 2017-18 में गन्ने का समर्थन मूल्य (MSP) था 255 रूपये प्रति क्विंटल और बाजार में चीनी बिक रही है 32 रूपये प्रति किलोग्राम.
जबकि वित्तीय वर्ष 2009-10 में गन्ने का समर्थन मूल्य (MSP) था 107.76 रूपये प्रति क्विंटल, अर्थात आज से लगभग सवा दो गुना कम. लेकिन 2009-10 में चीनी बिक रही थी 42 रूपये प्रति किलोग्राम. अर्थात आज से लगभग 35% अधिक महंगी.
अब ध्यान यह दीजिये कि भारत में चीनी का उत्पादन लगभग 2.95 करोड़ टन होता है. अतः क्योंकि 2009-10 में आज की तुलना में चीनी लगभग 10 हज़ार रूपये प्रति टन महंगी बिक रही थी इसलिए आज की तुलना में 10 रूपए प्रतिकिलो महंगी चीनी बेचकर प्रतिवर्ष लगभग 29 हज़ार 500 करोड़ रूपये का मुनाफा शुगर मिलों और चीनी के बड़े व्यापारियों की निजी तिजोरियों में जा रहा था.
यहां विशेष उल्लेख यह करना चाहूंगा कि चीनी मिल मालिकों और चीनी के बड़े व्यापारियों को हुए 29 हज़ार 500 करोड़ के मुनाफे का यह आंकड़ा पूरी तरह सही नहीं है. क्योंकि 29 हज़ार 500 करोड़ के मुनाफे का उपरोक्त आंकड़ा तो गन्ने के आज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के आधार पर ही निकलता है. जबकि 2009-10 में गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) गन्ने के आज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से सवा दो गुना कम था.
अतः यदि गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में सवा दो गुने की कमी को भी शामिल कर के शुगर मिलों और बड़े चीनी व्यापारियों को होते रहे मुनाफे की गणना की जाए तो निश्चित रूप से उनको होते रहे 29 हज़ार 500 करोड़ रूपये के मुनाफे का आंकड़ा कम से कम दोगुना होकर लगभग 60 हज़ार करोड़ पर पहुंच जाएगा.
अतः उस कांग्रेस को आज देश को यह बताना चाहिए कि उसके शासनकाल में शुगर मिल मालिकों और बड़े चीनी व्यापारियों द्वारा केवल चीनी की बिक्री के बहाने गरीब गन्ना किसानों और जनता से की गई प्रतिवर्ष 60 हज़ार करोड़ रूपयों की लूट का जिम्मेदार कौन था?
उस लूट के जिम्मेदार क्या नरेन्द्र मोदी थे? या वो सोनिया गांधी जो उस यूपीए की चेयरपर्सन थीं जिनकी सरकार देश पर राज कर रही थी? या वो मनमोहन जिम्मेदार थे जो उस यूपीए सरकार के कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे?
आज डीज़ल पेट्रोल पर लिए जा रहे टैक्स को कांग्रेस लूट बता रही है. लेकिन कांग्रेस यह भूलने का ढोंग कर रही है कि…
आज डीज़ल पेट्रोल पर जो भी टैक्स वसूला जा रहा है वो देश के सरकारी कोष में जा रहा है. इस टैक्स के एक एक पैसे का हिसाब सरकार को देना होता है, सरकार दे भी रही है. क्योंकि इस हिसाब किताब का सबसे बड़ा दस्तावेज़ सरकार का बजट होता है.
लेकिन चीनी को सरकार नहीं बेचती. चीनी की बिक्री से होने वाला मुनाफा देश के सरकारी कोष में नहीं जाता. चीनी की बिक्री से होनेवाला मुनाफा शुगर मिलों के मालिकों तथा चीनी बेचने वाले बड़े व्यापारियों की निजी तिजोरियों में जाता है.
सभी तथ्यों की पुष्टि के लिए ये रहे न्यूज़ लिंक :
Govt hikes sugarcane FRP by Rs 25/quintal for 2017-18