डिजिटल क्रांति रुकी तो थम जाएगी भारत की प्रगति, बिखर जाएगा राष्ट्र

एक मित्र ने मुझे टैग करके मेरी फेसबुक वॉल पर कुछ प्रश्न पूछे हैं. उसके जवाब में यह लेख लिखना पड़ा.

उन्होंने यह नारे और स्लोगन के रूप में लिखा है. उसमें सारगर्भित कुछ भी नहीं है.

पहले सोचा जवाब ना दूं क्योकि आज ब्लॉक चेन पर लिखने का मन था. लेकिन नारों की काट ज़रुरी है.

अतः बिंदुवार जवाब :

(1) मुझे उस बाज़ारीकरण से दिक्कत है जिसको गांधी ने देश के लिए घातक बताया था और जिसे सुरसा का मूँह कहा था…

– गाँधी ने तो चरखा से बना कपड़ा पहनने को कहा था; फिर आप मिल का क्यों पहन रहे हैं. गाँधी ने अहिंसा के मार्ग पर चलने को कहा था, लेकिन हम आतंकियों को मार रहे है. क्यों? आप गाँधी की तरह आतंकवाद रोकने के लिए बिड़ला के घर के प्रांगण में आमरण अनशन कीजिये.

(2) मुझे बाज़ार के उस बदलते ट्रेंड से दिक्कत है जो खुद नहीं बदल रहा बल्कि देश दुनिया के चंद पूंजीपतियों की हवस और दुनिया पर अपने साम्राज्य की आकांक्षा बदल रही है…

– क्या मार्क जुकेरबर्ग (फेसबुक), जेफ बेज़ोस (अमेज़न), सेर्गेय ब्रिन और लैरी पेज (गूगल), जैक मा (अलीबाबा, एक चीनी कंपनी), सचिन और बिन्नी बंसल (फ्लिपकार्ट) आज से 15 वर्ष पूर्व पूंजीपति थे?

(3) मुझे उस बाज़ारीकरण से दिक्कत है जो केवल चंद पूँजीपतियों के पक्ष में केंद्रित हो रहा है…

– सोवियत यूनियन, ईस्ट जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया, वेनेज़ुएला इत्यादि देशों ने साम्यवाद के द्वारा एक-समान समाज बनाने का प्रयास किया; पूंजीपतियों की संपत्ति जब्त कर ली. सभी छिन्न-भिन्न हो गए और वेनेज़ुएला कंगाल और बर्बाद हो गया. इंदिरा गाँधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया. क्या हुआ?

(4) मुझे उस बाज़ारीकरण से दिक्कत है जो अमीर और गरीब के बीच की खाई को चौड़ा कर रहा है…

– आप क्यों नहीं एक नए बाज़ारीकरण का अन्वेषण करते? या फिर डेनमार्क, नॉर्वे, स्वीडन की तरह जम के मेहनत करें, पढ़ें, और उद्यम और इनोवेशन से एक-समान समाज बनाएं?

(5) मुझे उन व्यक्तियों से दिक्कत है जो केवल अपनी ज्ञानशीलता दिखाने और खुद के फायदे के लिए Ecommerce की वकालत करते हैं…

– आप ऐसे सारे व्यक्तियों को देश से निकाल दीजिये. लालू, ममता और मायावती को ले आइये. वे इंटरनेट बंद करवा के Ecommerce बंद करवा देंगे. बिलकुल वैसे ही जैसे ‘शोले’ के असरानी की जेल में परिंदा भी पर नहीं मार सकता.

(6) मुझे दिक्कत है उन ज्ञानियों से जो व्यापारियों को समय के साथ बदलने का ज्ञान बघारते हैं और उन्हें Ecommerce पर आने को कहते हैं, बिना ये समझे कि Ecommerce पर हर व्यापारी व्यापार नहीं कर सकता और जो अभी कर रहे हैं वो भी आने वाले कुछ समय मे बाहर होने वाले हैं…

– यही दिक्कत कपड़े के बुनकरों को हुई थी, जब मशीन से कपड़े बनाए जाने लगे; तांगेवालों को हुई थी जब मोटर कार सड़क पर आ गयी; रेल और बैंक कर्मचारियों को हुई थी जब कंप्यूटर का प्रयोग उनके काम में शुरू हुआ. जिनको नहीं बदलना है, उन्हें समय की आंधी उड़ा देगी.

(7) मुझे दिक्कत है उन लोगों से जो कहते हैं ‘सरकार ये नहीं कर सकती, सरकार इसे रोक नही सकती’…

– आप एक ऐसी सरकार ले आइये जो ‘इस’ डिजिटल क्रांति को रोक दे. मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि वह सरकार ऐसा करने में सफल भी हो जायेगी. लेकिन परिणाम यह होगा कि भारत की प्रगति रूक जायेगी, नवयुवाओँ को निजी क्षेत्र में नौकरी और उद्यम के अवसर नहीं मिलेंगे और भयंकर असंतोष के कारण देश की स्थिति वेनेज़ुएला जैसी हो जायेगी या फिर राष्ट्र बिखर जाएगा.

(8) मैं कहना चाहता हूँ कि जो सरकार/ राजा, जनता/ प्रजा के हित सुरक्षित नहीं कर सकता, जनता को उनके सुरक्षित भविष्य की गारंटी नहीं दे सकता, उस नकारा सरकार/ राजा को गद्दी पर रहने का कोई हक नहीं…

– सहमत. एक ऐसी सरकार ले कर आइये जो प्रजा का हित नयी तकनीकी को नकार के, पड़ोस के दस गुना समृद्ध देश (चीन) के साये में रहकर भारत की जनता के हित को सुरक्षित रख सके.

(9) एक सूत्र है ‘एक परिवार के लिए एक व्यक्ति, एक गांव के लिए एक परिवार और एक देश के लिए एक गांव की बलि दे देनी चाहिए’… लेकिन क्या इस वाक्यसूत्र में देश के लिए आधी जनता/ आधे देश की जनता की बलि देने के लिए कहा गया है?…

– आप अवश्य देश की आधी जनता का हित नयी तकनीकी की बलि देकर सुरक्षित रख सकते हैं. जैसे भारत ने 60 के दशक में अमेरिका से सड़ा गेंहूं आयात करके जनता का पेट भरा था, सॉरी, हित सुरक्षित रखा था. हरित क्रांति तो बकवास की तकनीकी से आयी थी. हमें उस तकनीकी को मना कर देना चाहिए था.

(10) खुदरा व्यापार का देश की GDP में 10% और एम्प्लॉयमेंट में 8% की भागीदारी है तो क्या देश इनको साथ लिए बिना आगे बढ़ सकता है? या इनको पीछे छोड़ आप देश को आगे ले जा सकते हैं?

– क्या देश डिजिटल क्रांति, नयी तकनीकी को इग्नोर करके, या नकार के, नवयुवाओं और नवयुवतियों को रोज़गार दिला सकता है? क्या देश विश्व के विकसित देशों से, पड़ोस के चीन से मुकाबला कर सकता है?

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