5-6 वर्ष पहले की बात है… कुछ NGO के लोग संपर्क में आए…
एक मित्र उनमें थे… पुराने जानकार… दो तीन बार घर आना जाना भी हुआ था… गाँव बगल वाले जिले में ही है… वो भी NGO से जुड़े थे…
हर समय समाज, गरीब, आदिवासी, दलित पिछड़े के बारे में बातें… हम उनसे बहुत प्रभावित थे, उनको एक ऐसा व्यक्ति मानते थे जिनकी समाज को जरूरत थी…
काफी मुलाकातें होती थीं… एक बार उन्होंने हमारे साथ अपना प्रोजेक्ट शेयर किया… इस गाँव, उस गाँव… फलाना जंगल जाएंगे… बच्चों को पढ़ाएँगे, कम्बल बांटेंगे… चूरा भूजा गुड़ बांटेंगे… anacin, iodex, मच्छर-मार अगरबत्ती बांटेंगे…
बहुत सारे फोटो थे पुराने किए हुए काम की… तो फाइल बना के उत्तरप्रदेश सरकार के किसी विभाग में जमा कराना था ग्रान्ट के लिए… हम भी द्रवित थे उनके काम से… हमने बड़ा दिल करके कहा हमारी तरफ से भी 5000 रूपए इस नेक काम को… खैर, उसके बाद आगे क्या हुआ पता नहीं…
फिर कुछ महीने बाद वो एक दूसरी फाइल लेकर आए और कहा कि इस काम के लिए दूसरे विभाग में देना है… ये शायद स्वास्थ्य पर था…
हमने फाइल खोली और देखने लगे… एक जगह आकर ठिठक गए… फोटो पहचानी हुई लगी… याद आया कि ये तो उनकी पत्नी है फटी साड़ी, मैल पोतकर… और अपना ही बच्चा फटी चड्डी में नाक से बलगम चुवाते हुए…
हमने कहा अबे ये क्या है… हँसते हुए उन्होंने बताया – उस विभाग का पूरा बाबू बिरादर पटा हुआ था, जल्दी से फाइल जमा करानी थी 20% पर बात तय थी… कोई फोटो नहीं थी तो अपने घर वालों को चीथड़ा लपेटवा कर और मैल पोतकर फोटो निकाल लिए…
अक्सर बाबू बिरादरी NGO वालों से 30% से कम नहीं लेती… मोटा मोटा पूरा मामला कुछ ऐसा था कि उनको 30 लाख विभाग से मिलने थे, 6 लाख कमीशन देते कैश… 2 लाख के आस पास CA लेता कागज़ में रकम एडजस्ट करने को…
बचे 22 लाख में से तीन पार्टनर लेते 5 लाख के हिसाब से… बचे में से 5 लाख कुछ अन्य जुड़े कामकाजी लोगों पर खर्च होता… 2 लाख नई चकाचक फाइल फोटो समेत बनाने में ख़त्म होते…
हमने कहा… फोटो कैसे पाते हो…? मुँह फाड़ के ठठा के बोले – किसी गाँव में एक पोस्टर या बैनर लेकर खड़े हो जाओ, एक घंटे में मनमुताबिक फोटो का अम्बार लग जाता है…
हमने कहा, फिर समाज सेवा? वो पूरे मजे लेकर बोले – हम लोग ही तो समाज हैं… अपनी सेवा माने समाज सेवा…
हमने चिढ़ते हुए कहा कि वो मेरे 5000 क्या किए…? उन्होंने तुरन्त 5000 वापस किये और बोले – दोस्त हो तो बता दिया और वापस किया… वरना तुम्हारे जैसे 5000 देने वाले लाइन से मिल जाते हैं… अपना रखो…
इसके पहले एक बिज़नेस प्लान और बताया था, खाली समय में करते थे… Action Aid नामक NGO इस प्लान को लेकर आई थी…
समाज सेवा, आदिवासी, जंगल, दलित के नाम पर एक कार्ड बेचकर आपको सिर्फ 499 रुपये लाने है… मान लो आपने एक दिन में 10 कार्ड ठिकाने लागे तो मिले 4990 रुपये… Action Aid उसमें से 20% या 30%, (ठीक से याद नहीं %, शायद 40% भी हो) वो आपको कमीशन दे देती थी… मतलब 1000 रुपये कम से कम…
ये प्रोफेशनल कार्ड सेलर अक्सर ऐसी जगह कार्ड ठिकाने लगाने जाते थे कि एक दिन में 50 से 100 ठिकाने लगा दे… हमने कहा कि ज्यादा पैसे कब मिलते हैं…? वो बोले – विदेशी देते हैं… गोरे… जब हम उनको गाँव के गाँव बेच देते हैं… मतलब कि उनके हवाले कर देते हैं और वो उनको ईसाई बना देते हैं…
मैंने कहाँ उन ईसाई बनने वालों को फायदा? वो बोले – उनको कुछ पैसे मिल जाते हैं और वो चुनाव के समय एक मुश्त वोट डालने वाली भीड़ यही होती है… कई इनमें से मनचाहा अपराध कराने के काम भी आते हैं…
सब कुछ समझने के बाद मैंने कहा यार बहुत हरामखोर और दुष्ट इंसान हो…! वो बोले – नहीं जी, ये बिज़नेस है समाज सेवा का… तुम जैसे BE/ME या फिर MBA को हम कुछ नहीं समझते… इमोशनल फूल हो… कार्ड ठिकाने लगाने वाली दुधारू जीव हो…
हमने उनसे विदा लेते हुए कहा अब हम आपसे कभी न मिलेंगे… अफ़सोस कि आप दोस्त थे… उन्होंने शान्ति से कहा – हमको भी क्या फर्क पड़ता है…
मिला तो नहीं हूँ कई वर्षों से लेकिन फेसबुक पोस्ट यदा कदा जाके देखता हूँ उनके वाल पर… वो मोदी विरोध का झंडा उठाए हैं, भयंकर रूप से उठाए हुए हैं…
कई NGO के धंधे बंद है और बेचारे बड़ी मुश्किल से इधर उधर से कुछ फण्ड जुगाड़ पा रहे है… उनको आलू – टमाटर – प्याज, पेट्रोल – डीजल सब महंगा दिख रहा है… उनको बहुत कष्ट है इस सरकार से… इतना कष्ट कि जिसका हिसाब नहीं…