डिजिटल क्रांति के कारण बदल रहा है उपभोक्ता का टेस्ट

भारत में ऑनलाइन बनाम रिटेल या किराना दुकानदारों की डिबेट में रिटेल के समर्थक सदैव एक पक्ष को इग्नोर कर देते हैं : उपभोक्ता या ग्राहक.

उपभोक्ताओं के बदलते टेस्ट, किसी वस्तु के स्वामित्व के बदले एक्सपीरियंस या अनुभव की चाहत, किच-किच और मोल-भाव से छुटकारा, साफ़-सुथरी जगह पर शॉपिंग करना, उस जगह पर उचित पार्किंग की सुविधा होना, यह सब रिटेल समर्थकों की डिबेट से गायब है.

अगर उपभोक्ता को घर बैठे सस्ता सामान मिल रहा है, बाजार जाने से बचे हुए समय में वह कुछ और कार्य कर पा रहा है, तो आप उसे कैसे किराना स्टोर खींच कर ले जाएंगे?

क्या ऑनलाइन विक्रेता पर टैक्स लगा देने से समस्या का हल हो जाएगा? क्या कोई अन्य ऑनलाइन विक्रेता उस टैक्स या सरकारी कानून का तोड़ नहीं निकाल लेगा?

क्या कोई भी देश ऑनलाइन विक्रेताओं पर टैक्स या कानून लगाकर उपभोक्ताओं को रिटेल से पुनः खरीदवाने में सफल हुआ है? क्या आप रेलवे का टिकट ऑनलाइन ना खरीद कर टिकट विंडो से खरीदना पसंद करते है?

[डिजिटल युग में पब्लिक पॉलिसी : कुछ प्रश्न]

अगर आपने नोट किया हो तो अब उपभोक्ता CD की जगह म्यूजिक स्ट्रीमिंग, डीवीडी की जगह यू ट्यूब या नेटफ्लिक्स, प्रिंट फोटो की जगह डिजिटल फोटो, टेलीफोन की जगह व्हाट्सएप, पत्र की जगह टेक्स्ट इत्यादि का प्रयोग करता है.

क्या भारत में लोग सरसो का तेल, एक किलो आटा, बेसन, टोमेटो सॉस, सौ ग्राम जीरा, 50 ग्राम इलायची, एक टूथपेस्ट, 100 ग्राम साबुत मिर्च, एक ब्रेड, अमूल मक्खन, दूध भी ऑनलाइन खरीद रहे है? फिर किराना बिक्री में क्यों असर आया?

[पाषाण युग इसलिए समाप्त नहीं हुआ क्योंकि उस युग में पत्थरों की कमी हो गई थी]

स्मार्ट फ़ोन के द्वारा उपभोक्ता को ग्लोबल परिप्रेक्ष्य मिल रहा है. वह नए भोजन, नए कपड़े, नए फैशन, और नए अनुभव को ढूंढता है. ऑनलाइन शॉपिंग उपभोक्ता को आधुनिक होने का, विश्व से जुड़े होने का अहसास दिलाती है.

हम उनकी इस फीलिंग की आलोचना तो कर सकते हैं, लेकिन क्या उनकी इस फीलिंग को इग्नोर कर सकते हैं?

Comments

comments

LEAVE A REPLY