एक थी दिव्या भारती. ड्रीमगर्ल सी खूबसूरत और चांदनी सी चमकती. गज़ब की सुंदर, सब का मन मोहने वाली, प्यारी दुलारी सी, छू भर देने से मैली हो जाये जैसे! खुद को तराशना हालांकि अभी बाकी ही था पर दीवाना से दीवाना बना लिया सबको. मासूम चेहरा और शायद दिल भी मासूम. तभी तो कमउम्र मौत के चंगुल में फंस गई.
मौत हादसा थी या लव जिहाद यह तो आज तक रहस्य ही रह गया. जी जाती तो हिंदी सिनेमा की सरताज नायिका होती. काजोल, करिश्मा, तब्बू सबका ही करियर ग्राफ कुछ और होता.
एक थी मनीषा राय. सुंदर, प्रतिभासंपन्न, लगनशील. एक दम गर्ल नेक्स्ट डोर. ब्यूटीफुल में देखा उनको. फिर कोहबर. जहाँ खड़ी थी वहीं के लिए बनी थी जैसे. उनका कोई विकल्प नहीं.
असम हो के आई हूँ अभी. सारे हिंदी गानों और नम्बरों के साथ असमियों, मारवाड़ियों के बीच मुझ बिहारन को लॉलीपॉप लागे लू सुनकर कितनी शर्मिंदगी हुई क्या बताऊँ! ऐसे में मनीषा और टीम मिलकर सभ्य, सुसंस्कृत अतीत को भविष्य के माथे पर टांक रहे थे.
धूप, गर्मी, अभाव के बीच दिनभर शूटिंग के बाद अपने साथियों के लिए रोटी बनाती ये आम नायिका कल तक तो थी. आज नहीं रही. कोहबर में घुसने से पहले ही रूठ गई बहुरिया.
मौत हादसे की शक्ल में आई और लील गई दो जानों को. संजीव मिश्र जी और मनीषा दोनों अपूरणीय क्षति हैं भोजपुरी समाज, साहित्य और सम्पूर्ण पूर्वांचल वासियों के लिए.
भोजपुरी का इतिहास बदल जायेगा इन दो मौतों से. क्योंकि एक सुंदर भविष्य आते आते द्वार पर ही ठिठक गया है. राजद्वार से लक्ष्मी रूठ गई है. सच है अभागों को सौभाग्य कब मिलता है!
– कल्याणी गौरी मंगला