लड़ें, और मिल कर लड़ें… आज जियेंगे तो कल फिर लड़ेंगे

दवाई फायदा करेगी या नुकसान, एक डॉक्टर को यह दुविधा रोज़ होती है.

अगर मरीज़ को दवाई के साथ जो लिटरेचर आता है वह पकड़ा दिया जाए और उसमें लिखे साइड इफ़ेक्ट पढ़ने को कहा जाए तो कोई आदमी कभी दवाई नहीं खायेगा.

साइड इफेक्ट्स खतरनाक हो सकते हैं, जानलेवा भी. फिर भी डॉक्टर दवाई लिखते हैं, मरीज़ दवाई खाते हैं और ठीक भी होते हैं.

कोई अगर आपको कहता है कि दवाई खाओ, कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है यह मेरी गारंटी है… वह झूठ बोल रहा है.

कोई कहे कि अंग्रेज़ी दवाई ज़हर है, दवाई बिल्कुल मत खाओ किसी भी हालत में… इसके साइड इफ़ेक्ट होते हैं… तो वह भी आपको खतरे में धकेल रहा है.

दवाई के फायदे और नुकसान कॉन्टेक्स्ट में लिए जाते हैं. अगर आप एक बड़ी बीमारी के लिए एक दवाई खाते हैं तो छोटे मोटे साइड इफ़ेक्ट मंज़ूर हैं.

निमोनिया जानलेवा हो सकता है, इसलिए एंटीबायोटिक खाकर डायरिया का खतरा उठाया जा सकता है. पर मामूली सर्दी जुकाम के लिए एंटीबायोटिक खाना उचित नहीं है.

कैंसर की कीमोथेरेपी बहुत ही टॉक्सिक होती है, पर उससे हजारों जानें बचती हैं. सिंपल से वैक्सीनेशन से लाखों बच्चे गंभीर बीमारियों से बचते हैं.

पर आप यूट्यूब देखेंगे तो आपको ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जो लोगों को अपने बच्चों को वैक्सीन देने से मना करते हैं क्योंकि किसी एक को कोई रिएक्शन हो गया था.

और आपको जान कर आश्चर्य होगा, गाहे बगाहे ऐसे बुद्धिमान लोगों से पाला पड़ता है जो चाहे कुछ हो जाये, अपने बच्चों को वैक्सीन नहीं दिलाएंगे.

मैंने ऐसे एक बच्चे को डिप्थीरिया से लगभग मरते हुए देखा जिसकी माँ एक बच्चे की जान जोखिम में डाल कर भी दूसरे बच्चे को वैक्सीन दिलाने को तैयार नहीं थी.

मेरा लिखा है तो घूम फिर के पॉलिटिक्स पर तो आऊंगा ही.

मोदी को अगर हम देश की बीमारियों की दवा मानें तो आज डॉक्टर लोगों को भारी कंफ्यूज़न है. कुछ को दवा कड़वी लग रही है, कुछ को साइड इफेक्ट्स दिखाई दे रहे हैं. कुछ कह रहे हैं कि दवाई काम ही नहीं कर रही. कुछ सरकारी हस्पताल से निकाल के नुक्कड़ वाले डॉक्टर गुप्ता जी के नर्सिंग होम में ले जाने की सलाह दे रहे हैं, तो कुछ गाँव वाले ओझाजी से एकबार दिखाने में हर्ज नहीं समझते.

मोदी को चुनने का जो मूल साइड इफ़ेक्ट राष्ट्रवादी बंधुओं को दिखाई देता है, वह यह कि मोदीजी की जो माइंडसेट है उसमें वे अगर जीत कर दुबारा आ गए तो इसे वे फिर से विकास की जीत घोषित कर देंगे और फिर धूमधाम से ‘सबका साथ, सबका विकास’ में लग जाएंगे. उनके इस ‘सबका विकास’ की कीमत कौन चुकाएगा, इसकी उन्हें कुछ खास चिंता नहीं है.

वहीं अगर मोदीजी नहीं जीते तो उन्हें एक बड़ा सबक मिलेगा.

पर अगर मोदीजी हार गए तो इस सबक का वे करेंगे क्या? और यह सबक किसके काम आएगा?

काँग्रेस या उनके साथी लुच्चे लपाड़े अगर आये तो वे तो ये सबक लेने से रहे. बल्कि उल्टे ऐसा सबक सिखाएंगे कि हम फिर किसी को कोई सबक देने की अवस्था में नहीं रहेंगे.

भाजपा के अंदर बहुत ही बड़ा वर्ग है जो विभिन्न कारणों से चाहता है कि मोदीजी हार जाएँ. अगर पार्टी के अंदर ऐसी सहमति है तो भाजपा हिम्मत करे और मोदीजी का एक विकल्प घोषित कर दे.

वरना अगर आज विकल्प नहीं घोषित कर सकते तो 2024 में कहीं से विकल्प निकल आएगा इसकी उम्मीद हम कैसे करें?

अगर विकल्प निकलेगा तो सत्ता हाथ में रखकर ही निकलेगा. सत्ता हाथ से गई तो अस्तित्व रक्षा के ही लाले पड़ जाएंगे, विकल्प कहाँ से निकलेगा?

मुझे लोग पेंडुलम कहते हैं. खुद ही महसूस होता है कि पेंडुलम हो गया हूँ. यथार्थ का एक ओवरव्यू भी रहे और गुरुत्वकेन्द्र के नजदीक भी बना रहूँ, इसका एक ही उपाय दिखता है कि एक छोर से उस छोर तक को कवर करूं. किसी एक ध्रुव पर जड़ होकर ना तो सत्य का केंद्र दिखेगा, ना वस्तुस्थिति की परिधि ही दिखेगी.

मोदीजी का नए आवरण वाला भगवा-सेक्युलरवाद मुझे बहुत चुभता है. लोग कहते हैं, यह सेक्युलरवाद दिखावे का है… पर मुझे लगता है वही मूल है, यह भगवा कलेवर ही दिखावे का है.

पर इसके बावजूद कहूँगा, कैंसर की कीमोथेरेपी बहुत ही टॉक्सिक, बहुत ही साइड इफेक्ट्स वाली होती है. फिलहाल तो कीमोथेरेपी देनी होगी. साइड इफेक्ट्स से फिर निबटा जाएगा. मरीज़ जियेगा तब ना साइड इफेक्ट्स की सोचेंगे.

अगर काँग्रेस आएगी तो देश ही नहीं रहेगा. फिर आप हिन्दू राष्ट्र किसे बनाएंगे और विकास किसका करेंगे? अगर आप सोचते हैं कि ऐसे ही चुनाव जीते-हारे जाते रहेंगे और देश चलता रहेगा तो आपको शत्रुओं के इरादों की भनक भी नहीं है. मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान से सिर्फ एक ही बार जीता था. अगर हम इस बार हारे तो यह तंत्र ही जीवित नहीं बचेगा.

अगर बहुत भी नाराजगियाँ हैं, शिकायतें है… तो भी एक ही उपाय है. लड़ें, और मिल कर लड़ें. आज जियेंगे तो कल फिर लड़ेंगे… Live to fight another day…

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