कर्नाटक चुनाव परिणाम : भाग-1

अरविंद केजरीवाल और उनके आठवीं फेल गुरू द्वारा देश को दी गयी अराजक राजनीतिक सौगात दिन प्रतिदिन भयानक होती जा रही है. जानिए कैसे…

कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर आजमाए जा रहे अराजनैतिक, अनैतिक हथकण्डों का नंगा नाच शुरू हो चुका है. इसका मूल कारण किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलना ही है.

कर्नाटक की जनता के जनादेश को खण्डित करने का सबसे बड़ा अपराधी नोटा (NOTA) नाम का वह कानून बना है जिसे केजरीवाल और उनके आठवीं फेल ट्रक ड्राइवर गुरू किशन बाबू राव हज़ारे उर्फ अन्ना ने देश के लोकतंत्र की पीठ पर जबरदस्ती लदवा दिया था.

आज आये कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणामों को जितना देख पाया हूं उस हिसाब से मेरे अनुसार NOTA ने लगभग 2 दर्जन सीटों पर हार जीत का समीकरण बदल दिया है. लगभग हर दल के प्रत्याशी इसका शिकार बने हैं. भाजपा इसकी सबसे बड़ी शिकार बनी है.

अपने गृह जनपद स्थित अपने राजनीतिक गढ़ चामुंडेश्वरी सीट पर 36,000 से अधिक वोट से हारे निवर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धरमैय्या को दूसरी सीट बदामी से केवल 1696 मतों से जीत मिली है. जबकि बदामी सीट पर NOTA के तहत डाले गए वोटों की संख्या 2007 है.

मेरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि किसी दिन किसी सीट पर नोटा का बटन दबा कर डाले गए वोटों की संख्या उस सीट पर किसी भी प्रत्याशी को मिले वोटों से अधिक हुई तो चुनाव आयोग क्या फैसला करेगा?

ध्यान रहे कि केजरीवाल और उनके तत्कालीन राजनीतिक गुरू, आठवीं फेल ट्रक ड्राइवर किशन बाबू राव हज़ारे उर्फ़ अन्ना ने 2011 में पहले जन्तर-मन्तर, फिर रामलीला मैदान में कई दिनों तक किये गए जनलोकपाली नंगनाच के दौरान ही देश को राजनीतिक अराजकता की भट्ठी में झोंक देने वाले NOTA और राइट टू रिकॉल सरीखे तुगलकी कानूनों को लागू करने की मांग जोरशोर से की थी, जिसके बाद NOTA कानून बना था.

धीरे धीरे इस कानून का भयानक चेहरा और चरित्र उजागर होता जा रहा है. कर्नाटक में आज उत्पन्न हुई राजनीतिक अनिश्चितता अस्थिरता ऐसा ही एक उदाहरण है. भविष्य में ऐसे भयानक उदाहरनों की श्रृंखला लम्बी ही होती जाएगी.

रही बात कांग्रेस द्वारा जेडी एस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिशों की, तो उसके खिलाफ किसी भी प्रकार का विधवा विलाप उचित नहीं है. कांग्रेस की स्थिति में यदि भाजपा होती तो वो भी यही कर रही होती. निकट अतीत में वो ऐसा कर भी चुकी है.

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