जी हाँ, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री साहब इतने गज़ब के दूरदर्शी थे कि उन्होंने रूस के तानाशाह स्टालिन को नाप दिया था…
रूस की खुफिया एजेंसी KGB को ये भान था कि उनके एजेंट बहुत हैं भारत में और वो जल्द ही भारत के कई टुकड़े करा देगा…
कश्मीर में शेख अब्दुल्लाह को KGB ने बड़ी रकम दी थी… जिसके चलते वो धारा 370 के लिए दबाव बनाने में कामयाब रहा…
सिर्फ पैसे से बात बनती नहीं, तो इसके लिए KGB ने अपने जासूस छोड़ रखे थे… ये जासूस भारत के कम्युनिस्ट, मीडिया कर्मी और कई कांग्रेसी भी थे…
कुछ नाम बता सकता हूँ…
तबके CPI (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया) के जनरल सेक्रेटरी, अजय घोष (Ajoy Ghosh) ने रूस के एक कोड नाम आदमी DED के साथ जासूसी के बदले पैसे लिए.
पैसे पाने के लिए एक कंपनी खोली जिसका काम एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट दिखाया… इससे CPI को प्रति तिमाही 3 million रुपये का प्रॉफिट दिखाया…
टैक्स बचाने के लिए सब पैसे पार्टी फण्ड को दान दे देता था… रूस के मीडिया पब्लिशिंग हाउस Novosti ने भारत के मीडिया हाउस और पत्रकारों को अपने अनुसार खबर छपने के लिए पैसे दिए.
उस समय भारत के Intelligence Branch (IB) के नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में मुखिया थे बी एन मलिक, लेकिन ऑपरेट ब्रिटिश कण्ट्रोल से ही होता था.
उन दिनों मास्को से भारत के CPI दफ्तर में आने वाले ख़ुफ़िया संदेशों को उन्होने इंटरसेप्ट किया… इन संदेशों को उन्होंने नेहरू को बताया..
नेहरू ने हंस के जवाब दिया कि स्टालिन को पता नहीं कि इधर कौन बैठा है…
नेहरू ने इस पर ये रणनीति बनाई कि ये भारत के कम्युनिष्ट सिर्फ पैसाखोर हैं… इनको भारत में एडजस्ट करो और इनके मुँह को पोस्टिंग, पैसा आदि से भर दो… बदले में जैसे चाहो इनसे कराओ…
फिर नेहरू ने CPI से डील की कि हमको above the earth टाइप दिखाओ और माल बनाओ…
बदले में भारत के के कम्युनिस्टों ने मास्को के आदेश पर HRD में पोस्टिंग, पाठ्यक्रम पर अधिकार, साहित्य, कला आदि पर कण्ट्रोल मांग लिया… डील के अनुसार मंत्री कॉंग्रेस का लेकिन सोच और कर्म कम्युनिस्टों के चलेंगे…
[अपने ही संस्थापक का खात्मा चाहते थे भारत के कम्युनिस्ट, क्योंकि वो राष्ट्रवादी निकला]
1959 में बंगाल कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव प्रमोद दास गुप्ता को KGB ने अपने पे-रोल पर ले लिया और उससे भारत के इंटेलिजेंस के खूब राज चोरी करा के मंगाए..
भारत के कम्युनिस्ट पैसे नेहरू सरकार से लेते और काम सोवियत संघ का करते – डबल मुनाफा पैकेज…
जैसे कि 1956 के एंग्लो – फ्रेंच सेना द्वारा Egypt के invasion के खिलाफ भारत के कम्युनिस्टों ने बहुत बवाल मचाया… लेकिन जब सोवियत संघ ने हंगरी में बर्बरता की तो उस पर चुप्पी साधे रहे.
एक थे कृष्णा मेनन (KM), जिसको 1960 में रूसियों ने बहुत मज़े कराए और उनको पे-रोल पर लिया… ख्रुश्चेव ने दिल्ली स्थित KGB को कहा कि सबको खरीद लो और कृष्णा मेनन को दिल्ली में मजबूत करो…
कृष्णा मेनन जिन्होंने जीवन का अधिकतर समय भारत के बाहर बिताया था वो आश्चर्यजनक तरीके से भारत के रक्षा मंत्री बने… और भारत का सारा रक्षा खरीद सोवियत संघ की तरफ करा दिया…
लेकिन चीन से हुई हार ने कृष्णा मेनन के राजनैतिक भविष्य पर कुछ समय के लिए ताला लगा दिया… नेहरू को उन्हें निकालना पड़ा… लेकिन अल्प समय में कृष्णा मेनन वो कर गए जो सोवियत संघ की चाह थी.
मज़ेदार बात है कि उसके बाद कृष्ण मेनन कांग्रेस से निष्कासित होने पर मुंबई से निर्दलीय चुनाव लड़े और हारे… लेकिन KGB अपने आदमी को भारत के संसद में देखना चाहती थी…
फिर उन्होंने अपने दलालों और जासूसों का सहारा लिया… भारत के कम्युनिस्टों ने कृष्णा मेनन को बंगाल से निर्दलीय जिता कर संसद भेजा… उसके बाद KM ने सोवियत संघ के लिए अपने कांटेक्ट से कई नौकरशाहों को खरीदा और KGB की घुसपैठ PMO तक करा दी.
इतने intelligent थे हमारे प्रथम प्रधानमंत्री… अभी बहुत कुछ है … आगे बतांएगे… एक शानदार वीडियो है जिसमे KGB का जासूस भारत में वर्षों रहा और उसने भारतीय कम्युनिस्टों और कोंग्रेसियों का भंड़ा फोड़ किया… जल्द ही वीडियो देखने का सुअवसर सबको प्राप्त होगा.