बच्चा मां के पास जो बढ़ता है गति से, उसका कारण है मां का ध्यान. वह चाहे दूर हो, चाहे वह दूसरे कमरे में हो, लेकिन ध्यान उसका बच्चे की तरफ लगा है. वह चाहे सैकड़ों मील दूर चली गई हो, वह हजार काम में उलझी हो, लेकिन भीतर उसके ध्यान अपने बच्चे में लगा है. रात वह सो रही है, तो भी ध्यान उसका बच्चे में लगा है. आकाश में बादल गरजते रहें, तो भी उसकी नींद नहीं टूटती; लेकिन बच्चा जरा सा कुनमुना दे, और उसकी नींद टूट जाती है! उसका ध्यान बच्चे में लगा है.
वैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चे की बढ़ती में मां का दूध जितना जरूरी है, उससे भी ज्यादा जरूरी उसका ध्यान है. इसलिए अनाथालय में भी बच्चे बड़े होते हैं; दूध उनको शायद मां के दूध से भी अच्छा मिल सकता है, वह कोई अड़चन की बात नहीं है; सेवा उनको प्रशिक्षित नर्सों की मिल सकती है; मां उतनी अच्छी सेवा नहीं कर सकती, क्योंकि उसका कोई प्रशिक्षण नहीं है.
उनको वस्त्र, दवा, सारा इंतजाम अच्छा मिलता है, लेकिन न मालूम क्या है कि उनके भीतर बढ़ती नहीं होती मालूम पड़ती है. सब सूखा-सूखा लगता है. कोई एक चीज कमी हो रही है. ध्यान नहीं मिल रहा है.
हम प्रेम के लिए इतने आतुर होते हैं. तुम्हें पता नहीं होगा कि क्यों? क्योंकि प्रेम के बिना ध्यान नहीं मिलता. प्रेम की तलाश वस्तुत: ध्यान की तलाश है. कोई तुम पर ध्यान दे, तो तुम्हारे भीतर जीवन का फूल खिलता है, बढ़ता है. कोई ध्यान न दे, कुम्हला जाता है.
इसलिए प्रेम की प्यास कि कोई प्रेम करे, वस्तुत: प्रेम की नहीं है. कोई ध्यान दे, कोई तुम्हारी तरफ देखे, कोई तुम्हारी तरफ देख कर प्रसन्न हो, आनंदित हो, तो तुम बढ़ते हो..
– ओशो
साधना सूत्र, प्रवचन – 12