पुनः अपने दोहराए जाने का इंतज़ार कर रहा है इतिहास

मेरा यह लेख राजनैतिक न हो कर सामाजिक है, इसलिये इसको राजनीति के लिये नहीं बल्कि समाज के लिये पढ़िये.

भारत के लिये जिन्नाह वो नासूर है जो जब तब बहने लगता है, लेकिन यह भारत के हिन्दुओ के लिये अच्छा है.

मैं इसको अच्छा इसलिये कहता हूँ क्योंकि शताब्दियों की गुलामी और उस पर गांधी की अहिंसा व कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की वैचारिक बेड़ियों में बंधा हिन्दू, इतना भीरू और समझौतावादी हो गया है कि जब तक उसको उसकी अस्मिता के हुये बलात्कार और हत्या के रक्तिम इतिहास को याद नहीं दिलाया जाता है तब तक, वह उससे अपना मुंह ही छुपाये रहता है.

यदि हिंदुओं की नस्ल को अपने इतिहास में दिलचस्पी होती या उससे सीखता होता तो आज का भारत ऐसा कभी नहीं होता.

आज कल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में, भारत के बंटवारे के प्रमुख खलनायकों में से एक जिन्नाह (मैं अकेला उसको दोषी नहीं मानता हूँ) की फोटो को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है.

उसके फोटो को हटाने को लेकर जहां मुस्लिम वर्ग बड़ा आक्रोशित है, वही हिंदुओं का भी एक वर्ग है जो मुसलमानों के आक्रोश के समर्थन में खड़ा है. इन सबको जिन्नाह प्रिय है.

इस जिन्नाह की फोटो को लेकर मेरे सामने एक प्रश्न उठ रहा है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कब से जिन्नाह की फोटो लगी है?

मुझे इस बात का पूरी तरह इत्मीनान है कि जिन्नाह की फोटो का अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में लगाया जाना, भारत की स्वतंत्रता के शुरू के काल में बिल्कुल भी नहीं हुआ है.

उस काल की वास्तविकता तो यह थी कि जो मुसलमान पाकिस्तान नहीं जा पाया था जिसमें से खास तौर से यूपी बिहार के वे मुसलमान, जिन पर मुस्लिम लीगी होने का ठप्पा लगा था, उन्होंने कांग्रेसी टोपी पहन कर, जिन्नाह से दूरी बना ली थी. यह दूरी 60 – 70 के दशक तक बराबर बनी रही थी.

लेकिन आज, भारत की धर्मनिरपेक्षता ने वामपंथियों और कट्टर इस्लामियों को इतनी उद्दंडता करने की छूट दी है कि वे भारत के टुकड़े करने वाले और उससे पिछले 70 वर्षों से शत्रुता का रिश्ता निभाने वाले पाकिस्तान के निर्माता जिन्नाह को फिर से भारत में पुनर्स्थापित करने की राष्ट्रद्रोही कार्य करने की हिम्मत कर रहे है.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई इस घटना का सीधे मायने यह है कि जिस अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से भारत के मुसलमानों में भारत को तोड़ने के विचार को फलने फूलने के लिए उर्वरक मिला था और जहां से मुस्लिम लीग को राजनैतिक समर्थन व मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा मुसलमानों का हिन्दुओं के प्रति घृणा को इस्लामिक दर्शन के अनुकूल होने की दीक्षा दी गयी थी, आज उसी स्थान पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सबसे सफल प्रयोग को पुनः स्थापित किया गया है.

मेरे लिये अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में टांगी गयी जिन्नाह की तस्वीर, इस बात का प्रतीक है कि भारत में मुसलमानो के एक वर्ग द्वारा अगले एक दशक में भारत के पुनः बंटवारे की मांग किये जाने के बीज बोये जा चुके है.

आज इसी वर्ग ने पुनः एक बार फिर, उनके कायद ए आज़म जिन्नाह के 19 जुलाई 1946 को दिये गये भाषण को याद करना शुरू कर दिया है और हिन्दुओं के विरुद्ध किये गये, ‘डायरेक्ट एक्शन’ को व्यापकता में करने की मानसिक तैयारी कर ली है.

आज 2018 में हो रही घटनाओं में जहां मुस्लिमों का खास तबका, मुस्लिम लीग की तर्ज पर ‘हमको चाहिये आज़ादी’ का नारा लगा रहा है, वही उनके साथ, 1940 के दशक की तरह वामपंथी आज भी खड़ा है.

जिस तरह 1940 के दशक में सत्ता पर जल्दी से जल्दी आने के लिये, कांग्रेस मुस्लिम लीग का मुकाबला करने की जगह, खुद ही उनको जगह दे रही थी, ठीक वैसे ही आज, सत्ता प्राप्त करने की बेचैनी में कांग्रेस यह सब होने दे रही है.

जिस तरह 1940 के दशक का हिन्दू गांधी के ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ के सहारे मुस्लिम समाज की हलचल को न देख कर इत्मीनान से बैठा हुआ था, वैसे ही आज का हिन्दू भी धर्मनिरपेक्षता के सहारे, हो रही हलचल से बेखबर अपने अपने स्वार्थों में लिप्त इत्मीनान से बैठा है.

इतिहास पुनः अपने दोहराए जाने का इंतज़ार कर रहा है.

यहां बहुत से लोगों ने जिन्नाह के 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन के आह्वान के परिणामस्वरूप कलकत्ता में हुये हिन्दुओं के कत्लेआम और फिर सुदूर नोआखली में 10 अक्टूबर 1946 में हुये हिन्दुओ के कत्लेआम, बलत्कार और धर्मांतरण पर लिखा है.

इसलिये उस पर कुछ नहीं लिखूंगा लेकिन जिन्नाह ने 19 जुलाई 1946 को मुस्लिम लीग द्वारा डायरेक्ट एक्शन डे का रेज़ोल्यूशन पास होने के बाद क्या कहा था, वो जरूर लिखूंगा.

जिन्नाह ने कहा था कि –

“आज जो हमने किया है (डायरेक्ट एक्शन डे का रेज़ोल्यूशन पास करना) वह हमारे इतिहास की सबसे बड़ी घटना है. अपने पूरे मुस्लिम लीग के इतिहास में, हमने कोई भी ऐसा काम नहीं किया है जो संवैधानिक प्रणाली का न हो और उसमे संवैधानिकता का पुट न हो.

लेकिन आज हम बाध्य और मजबूर हो कर इस अवस्था में आकर खड़े हो गये है जहां आज के दिन से हम संवैधानिक प्रणालियों को अलविदा कहते है. अब वह समय आ गया है जब मुस्लिम कौम को सीधी कार्यवाही (डायरेक्ट एक्शन) का सहारा लेना है. मैं नैतिकता को लेकर कोई भी बातचीत करने को तैयार नहीं हूं. हमारे पास पिस्तौल है और हम ऐसी जगह पर हैं जहां से इसका उपयोग कर सकते है.”

आज हर वह मुसलमान जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्नाह की फोटो लगाये जाने के समर्थन में है, वो जिन्नाह के इन्हीं शब्दों को रट रहा है. धर्मनिरपेक्षता तो पहले से ही उनमें संविधान की अवमानना करने की आदत लगा चुकी है अब तो उनको उस जगह का इंतज़ार है जहां से वे पिस्तौल का निर्णायक उपयोग कर सकें.

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