राष्ट्रवादिता ने विभाजन के विचार का विरोध किया. जब ये घटनाएँ घटीं, तब उनकी नाराज़ व खुश करने की शक्ति न थी, इसलिए विभाजन विरोध की घटनाएँ फलहीन थीं, महत्त्वहीन थीं.
राष्ट्रवादिता केवल शाब्दिक या शब्दहीन विरोध कर सकती थी, इसमें सक्रिय विरोध करने की ताकत न थी. अतः इसका विरोध, समर्पण अथवा राष्ट्रीयता की मूलधारा से दूर होने में मिट गया.
मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि क्या देशद्रोही लोग भी कभी इतिहास बनाने में कोई मौलिक भूमिका अदा करते हैं?
भारत से सन्दर्भ में लगता है… ऐसे लोग तिरस्करणीय होते हैं, इसमें कोई संशय नहीं, लेकिन वे क्या महत्त्वपूर्ण लोग हैं, मुझमें इसमें शक है क्योंकि भारत में ऐसा है.
ऐसे देशद्रोहियों के काम अर्थहीन होंगे, यदि उन्हें गुप्त विश्वासघात का सहयोग न मिले. लेकिन भारत में ऐसा हुआ…
इसी तरह काम्युनिस्ट-विश्वासघात ने कोई मौलिक भूमिका अदा नहीं की. इनसे कोई अच्छा नत़ीजा नहीं निकला, नतीजे का कारण अन्यत्र है.
विभाजन के कम्युनिस्ट समर्थन ने पाकिस्तान को बनाया. इसकी भूमिका अण्डा सेने जैसी रही. अब तो कोई यह याद भी नहीं करता, सिवाय कम्युनिज्म विरोधी बासी प्रचार-तर्क के रूप में.
कम्युनिस्ट-विश्वासघात के इस कपटी पहलू को मानता हूँ, लेकिन उनको आज़ाद भारत में पूर्ण अधिकार मिले. लेकिन दूसरे देशद्रोही ऐसे भाग्यशाली नहीं हैं.
अच्छा तो यह होगा कि कम्युनिस्टों की अन्दरूनी जाँच कर के पता लगाया जाए कि जब उन्होंने विभाजन का समर्थन किया तब उसके मन में क्या था.
सम्भवतः भारतीय कम्युनिस्टों ने विभाजन का समर्थन इस आशा से किया था कि नवजात राज्य पाकिस्तान पर उनका प्रभाव रहेगा, भारतीय मुसलमानों में असर रहेगा. और हिन्दू मन की दुर्बलता के कारण उनसे मन फटने का कोई भारी खतरा भी न रहेगा.
लेकिन उनकी योजना गलत सिद्ध हुई, सिवाय थोड़े क्षेत्र को छोड़कर, जहाँ कि उन्होंने भारतीय मुसलमानों में कुछ छिटपुट प्रभाव-स्थल बनाए और हिन्दुओं में अपने लिए क्रोध न उभरने दिया.
इस तरह उन्होंने अपने साथ अधिक धूर्तता नहीं की और साथ ही देश के लिए भी कोई लाभदायक काम नहीं किया.
पाकिस्तान में तो कम्युनिस्टों को बुरी तरह कुचल दिया गया था, मार दिया गया या फिर जेल में डाल दिया गया… कुछ जान बचाकर भारत भाग आए और उनको आश्चर्यजनक रूप से सहभागिता मिली…
ये मैं नहीं कह रहा… समाजवादी श्रेष्ठ आदरणीय डॉ राम मनोहर लोहिया जी ने अपने पुस्तक में विस्तार से लिखा है…
अन्त में कुछ ऐतिहासिक तथ्य ….
मुस्लिम लीग स्थापना 1906, हिन्दू महासभा 1915, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1925
अलीगढ मुस्लिम विवि स्थापना 1875, बनारस हिन्दू विवि स्थापना 1916
भारत विभाजन की माँग 1930 – अल्लामा इकबाल, भारत विभाजन का विरोध – अम्बेडकर, हेडगेवार, सावरकर, बोस
भारत विभाजन के समर्थक – जिन्नाह, नेहरू, गाँधी, कम्युनिस्ट…
भारत विभाजन के विरोधी – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिन्दू महासभा
खिलाफत आंदोलन का समर्थन – जिन्नाह, गाँधी, नेहरू… जिसका नतीजा मोपला में हिन्दू नरसंहार
हिन्दू जवाब – शून्य
डायरेक्ट एक्शन डे 1946 – लाखों हिन्दू मारे गए और स्त्रियों को लूटा गया
डायरेक्ट एक्शन डे का जवाब – 1946… गाँधी द्वारा भूख हड़ताल
भारत विभाजन होने के बाद पाकिस्तान में मुसलमानों ने हिन्दू और सिक्ख मुहल्लों को घेर लिया, लाखों मारे गए और स्त्रियों का शील भांग किया, उनको लूट लिया…
जब बचे हुए हिन्दू और सिक्ख दिल्ली आये, उन्होंने लालकिला और जामा मस्जिद पर डेरा डाला तो गाँधी ने उनको कायर कहा और बोला कि यहाँ क्यों आए…
गाँधी के आदेश पर उन सबको जगह खाली करने को कहा गया… सारे तब्बू तिरपाल आदि रौंद डाले गए…
सब कुछ लुटा कर जीवन की आस में आए हिन्दुओं और सिक्खों को बारिश धूप में छोड़ दिया गया…
हज़ारों महामारी के चलते मर गए… बाद में बिना किसी सहायता के ये अलग अलग जगहों पर पलायन कर गए…