986 ई. गजनी, अफगानिस्तान
भारत के पश्चिमी द्वारपाल, महाराज जयपाल शाही ने सुबुकतिगिन के रूप में भारत पर उमड़ते इस्लामी खतरे से लड़ने के लिये भारत के राजपूत राजाओं से सहायता मांगी है.
राजपूत राजाओं ने भी राष्ट्र की पुकार को अनसुना नहीं किया और दिल्ली के तोमरों से लेकर कालिंजर के चंदेलों तक, क्या प्रतिहार व परमार और क्या चौहान व सोलंकी सभी राजाओं ने सैन्य टुकड़ियां रवाना कर दीं हैं.
वीर खोखरजाट, गुर्जर, कोली भी बिना बुलाये धर्म व राष्ट्र की पुकार पर सुदूर अफगानिस्तान पहुंच गए हैं.
भारत की राष्ट्रीय हिंदू सेना ने सुबकतिगिन को घेर लिया है और अब बस हमले का इंतजार है.
पर हाय रे भारत का दुर्भाग्य!
इन निर्णायक क्षणों में राजपूत सरदारों का अहं जाग उठा है.
हरावल अर्थात अग्रिमदस्ते के रूप में आगे चलने को लेकर राजपूत सरदारों में कलह जाग गई. सभी राजपूत सरदार अपने अपने “कुलों” को श्रेष्ठ मानते हुए ‘हरावल’ में जाने पर अड़े हैं और बेचारे जयपाल टुकुर टुकुर देखने के अलावा कुछ भी कर नहीं पा रहे हैं.
इस विवाद में ही दस कीमती दिन बीत जाते हैं.
इनके अहंकार से क्रुद्ध ईश्वर ने भी मानो इन ‘अहंकारियों’ को उनके वृथा अहंकार के लिये दंडित करने हेतु बर्फीला तूफान भेज दिया जिससे अपरिचित व उत्तर भारत की गर्म जलवायु के अभ्यस्त हजारों सैनिक बर्फ के नीचे दबकर मर जाते हैं और मौके का फायदा उठाकर सुबुकतिन ने भी भयानक हमला कर दिया है.
हिंदू सैन्य की पराजय ही नहीं हुई बल्कि भारत पर इस्लामी शासन व प्रभुत्व की शुरूआत हो गई जिसमें भारत और हिंदू 800 साल तक इस्लामी शासन में पिस गये.
2019 भी हिंदुओं के लिये गजनी जैसा ही निर्णायक संग्राम है और ये आपको तय करना है कि आपका अहंकार जीतेगा या मोदी के रूप में हिंदुत्व?
कुछ योद्धा अपना अहंकार त्याग नहीं पा रहे लेकिन राजपूतों के अहंकार की आलोचना बड़े देशभक्त बनकर करते हैं.
एक पक्ष निरंतर विनम्र होकर सबको साथ लाने का प्रयास कर रहा है पर दूसरे पक्ष की मूँछों की ऐंठ कम नहीं हो रही.
खुद से कुछ करने की औकात नहीं और दूसरा कोई प्रयास कर रहा है तो उसमें मीनमेख जरूर निकालेंगे.
अब समझ आ गया ना सब लोगों को कि राजपूत एक क्यों नहीं हो पाए?
अभी भी ना समझ आया हो तो इनकी ऐंठ देख लीजिये.
इन जैसे लोगों की ऐंठ ही “सोमनाथ विध्वंस” और 800 साल की गुलामी का कारण बनती आई है.
Modi is great! He Is the face for true leadership