उर्दू के मशहूर कहानीकार सआदत हसन मंटो ने 1947 में विभाजन की विभीषिका को अपनी आंखों से बहुत गहराई से देखा था.
अपने ऐसे ही एक अनुभव को उन्होंने अपनी ‘जूता’ नाम की लघु कथा में प्रस्तुत किया था.
लघुकथा यह थी….
हुजूम ने रुख़ बदला और सर गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा. लाठियां बरसाई गईं, ईंटें और पत्थर फेंके गए.
एक ने मुँह पर तारकोल मल दिया. दूसरे ने बहुत से पुराने जूते जमा किए और उन का हार बना कर बुत के गले में डालने के लिए आगे बढ़ा.
मगर पुलिस आ गई और गोलियां चलना शुरू हुईं. जूतों का हार पहनाने वाला ज़ख्मी हो गया. चुनांचे मरहम पट्टी के लिए उसे सर गंगाराम हस्पताल भेज दिया गया.
सआदत हसन मंटो की इस लघुकथा के नायक सर गंगाराम का चित्र ऊपर प्रदर्शित किया गया है.
उनके साथ जिन भव्य भवनों के चित्र हैं उनमें से एक चित्र लाहौर के सर गंगाराम हॉस्पिटल का है जो उन्होंने अपने पैसे से बनवाया था और जो आज भी पाकिस्तान के 5 बड़े अस्पतालों में से एक है.
दूसरा चित्र लाहौर के GPO (जनरल पोस्ट ऑफिस) के भव्य भवन का है. तीसरा चित्र लाहौर म्यूजियम का और चौथा चित्र लाहौर के सबसे बड़े आर्ट्स कॉलेज का है.
यह सारे भव्य भवन सर गंगाराम ने अपने पैसे से बनवाये थे जो आज भी पाकिस्तानियों के काम आ रहे हैं.
लेकिन पाकिस्तान बनते समय गंगाराम अग्रवाल तो जीवित ही नहीं थे लेकिन इसके बावजूद उनकी मूर्ति के साथ पाकिस्तानियों ने क्या सलूक किया था, इसका वर्णन उर्दू के मशहूर पाकिस्तानी कहानीकार सआदत हसन मंटो ने अपनी उपरोक्त लघुकथा में कर दिया है.
आज मंटो की लघुकथा और सर गंगाराम की लाहौर को देन का जिक्र इसलिए ताकि अलीगढ़ यूनिवर्सटी में जिन्ना की फोटो के लिए जान देने को तैयार हो रहे नमकहरामों और उनके समर्थकों को आइना दिखाया जा सके.