आदि शंकराचार्य का नाम आते ही मस्तिष्क में छवि उभरती है एक ऐसे महामानव की जो यदि किसी को शास्त्रार्थ की चुनौती दे दे तो प्रतिपक्षी बिना शास्त्रार्थ किये ही खुद को पराजित स्वीकार कर ले. किसी शास्त्रज्ञ को मृत्यु से शायद इतना भय ना लगता हो जितना शंकराचार्य से असहमत होने से लगता है. अवैदिकों के लिए खौफ का पर्याय थे आदि शंकराचार्य.
किन्तु आजकल देखने में आता है कि कुछ मेमनों को शौक चढ़ा है शेर बनने का.
सोशल मीडिया पर आजकल आदि शंकराचार्य की प्रोफाइल पिक्चर लगाये प्रोफाइल्स और pages की बाढ़ सी आयी हुयी है, अधिकतर प्रोफाइल्स के पीछे धार्मिक अनुष्ठान करवाने वाले कुछ ब्राह्मण मौजूद हैं जिनमें से कुछ जनेऊ पहन और लंबा सा टीका लगा कर youtube पर videos भी पोस्ट कर रहे हैं. सामान्य जन जो वेदांत और शंकराचार्य के बारे में ज्यादा नहीं जानता इनकी बातों में आसानी से फंस जाता है.
जिन प्रोफाइल्स के स्क्रीनशॉट डाले जा रहे हैं ये एक गिरोह की भांति काम करते हुए प्रतीत होते हैं और इनका एक ही काम हैं हिन्दुओं को अलग अलग समुदायों में बांटना.
कभी ये आपको साईं भक्तों का उपहास करते नज़र आयेंगे तो कभी आसाराम और मुरारी बापू के भक्तों का. आर्य समाज और सनातन के बीच के बीच बढ़ती कटुता का मूल कारण भी यही लोग हैं. बड़े ही रहस्यमयी अंदाज में ये लोग जानबूझ कर समाज में विष घोल रहे हैं.
बहुत से मित्र भी चूंकि इन फ्रॉड लोगों से प्रभावित हैं तो उनके लिए भी यही सन्देश है कि अपने विवेक से समझौता ना करें, इन लोगों से कारण पूछें कि ये आदि शंकराचार्य की आड़ में अपना कौन सा प्रयोजन सिद्ध करना चाहते हैं? इनसे पूछिए कि वेदांत दर्शन की शिक्षा इन्होने कहाँ से ली, कौन इनका गुरु है?
मत भूलिए कि 250 वर्षों से यह देश षड्यंत्रों का शिकार है, और रावण हर बार भेस बदल कर ही आता है.
सचेत रहिये और सावधान रहिये.
आपका वर्ण क्या है, जाति क्या है, वर्ण और जाति का निर्धारण कैसे होता है
ऐसा नहीं है कि ये सब सवाल केवल धार्मिक या आध्यात्मिक महत्व के ही हों बल्कि जिस देश में जातीय समुदायों को वोटबैंक के रूप में देखा जाता है वहां इन प्रश्नों के सामाजिक और राजनैतिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता.
यदि वर्ण का निर्धारण जन्म से होता है तो इतिहास के प्रति वामपंथी दृष्टिकोण को बल मिलता है. आपको इतिहास ठीक वैसा ही नज़र आता है जैसा कि आपको भारत के वामपंथी अपनी दुकान चलाये रखने के लिए आपको दिखाना चाहते हैं. वामपंथ का अस्तित्व तब तक ही है जब तक शोषक और शोषित के द्वैत का अस्तित्व है, बेशक वो बुर्जुआ और सर्वहारा के रूप में हो या ब्राह्मण और दलित के रूप में.
भारतीय दर्शन का स्पष्ट मत है कि व्यक्ति का वर्ण सत, रज और तम नामक त्रिगुणों की प्रधानता पर निर्भर करता है. वर्तमान सामाजिक परिवेश में इस तथ्य को समझना थोड़ा कठिन तो ज़रूर हो सकता है किंतु समझ आने पर वर्णाश्रम धर्म की व्यापकता और सार्वभौमिकता का ज्ञान होता है.
और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि वामपंथियों की बनाई झूठ की इमारत भरभरा कर ढह जाती है. क्योंकि इस व्यवस्था में शोषक-शोषित का वर्गीकरण ही संभव नहीं रहता.
तथाकथित ब्राह्मणवाद के नाम पर चल रहे दुष्प्रचार को बौद्धिक स्तर पर केवल इतने से ही प्रमाण से क्षण भर में ध्वस्त किया जा सकता है.
फेसबुक और youtube पर सक्रिय एक “गिरोह” किसी भी कीमत पर यह सिद्ध करना चाहता है कि वर्ण ही जाति है और वर्ण व्यक्ति के जन्म पर निर्भर करता है. ऐसा कर ये वर्तमान political narrative जो कि वामपंथी एकेडेमिया की देन है को ही पुष्ट करते हैं.
यदि ये गिरोह वाक़ई कोई धार्मिक संगठन है जो हिन्दू उत्थान की दिशा में अग्रसर है तो उनको अपने पेज से इस प्रकार का दुष्प्रचार फैलाना बंद करना चाहिए.
वरना उनकी मंशा पर संदेह क्यों ना हो?