मोदी ने ट्विटर पर बधाई क्या दे दी, कट्टर हिन्दुओं और कड़क राष्ट्रवादियों के पेट में मरोड़े उठने लगीं कि ‘ई मोदी उ मोदी नहीं, जिसे हम वोट देकर लाये थे.’
चलिये मान लेते हैं कि मोदी बदल गये.
पिछले गुजरात चुनाव में महीने भर तक, राहुल गांधी रोज़ मंदिर मंदिर जा रहे थे (Temple hopping) लेकिन मजाल है कि किसी भी राहुल-चापलूस या मोमिनों के मन में शक आया हो कि वो बदल गये… क्योंकि उन्हें मालूम है कि यह सब दिखावा है सच नहीं, दिल में तो हिन्दू आतंकवाद है.
और हम… महज़ चार पाँच ट्वीट के बाद ‘हाय मोदी सेकुलर हो गये, हाय मोदी बदल गये!’ अगर कहीं, महीने भर के लिये रोज़ मस्जिद जाते तो हम तो मान चुके होते कि मुसलमान हो गये!
वो इन चीज़ों से कन्फ़्यूज़ नहीं होते और हम… आखिर इतना अविश्वास क्यों है हमें?
उधर इन चार सालों में मोदी विरोधियों और उनके समर्थकों की बात करते हैं, वो नहीं बदले और लगातार सत्ताइस हार के बाद भी उनका भरोसा नही डिगा, न सिर्फ राहुल को सपोर्ट कर रहे हैं बल्कि और भी संगठित हो गये और कट्टर हो गये हैं.
और विडम्बना देखिये वो सारे मिलकर बीजेपी का बहिष्कार करते हैं कि बीजेपी हिन्दू पार्टी है… और कट्टर हिन्दू बीजेपी को सेकुलर बोलकर, हताश और निराश होकर छोड़ना चाहता है. मतलब आखिर में लिबरल, वा-क-ई गिरोह और पाकिस्तान के हाथ मज़बूत कर रहे हैं.
टीवी पर डिबेट देखिये, सारे मोदी विरोधी एक-दूसरे को कभी बुरा नहीं बोलते. सारे ही लोग किस बेशर्मी से एक मंदबुद्धि राहुल का बचाव करते हैं.
क्या उन्हे राहुल से बहुत प्यार है? ना ना…. क्योंकि उन्हे अपने दुश्मन और दोस्त अच्छे से मालूम हैं और उन्हें दुश्मनों को लिस्ट (prioritize) करना अच्छी तरह से आता है.
उन्हे मालूम है आपस में बाद में निपट ही लेंगे. और हम हिन्दू, न हमें अपना दोस्त मालूम है और न ही दुश्मन, और अधीरता इतनी कि बस बिना विकल्प के ही मोदी हटाने को तैयार जाते हैं.
आज पब्लिक फ़ोरम पर बीजेपी ही खुल कर हिंदुओं का पक्ष लेती है बाकी सब बेशर्मी से तुष्टीकरण करने में कम्पीटीशन करते हैं, तो हम बीजेपी reward करने के बजाये, ऐसे लोगो को ले आयें जो खुलेआम हिंदू विरोधी हैं.
माना कि कट्टर हिन्दू बोलते हैं कि बीजेपी तो ख़ाली बात करती है तो मालूम होगा ना बार बार बोले तो झूठ भी सच लगने लगता है और फिर हक़ीक़त हो भी जाता है. इस बार रामनवमी के जुलूस इसका उदाहरण है.
जान लीजिये, लोकतन्त्र मे Absolutely Good कोई नहीं होता, you have to choose best from the worst. और जब सेनापति चुन ही लिया है तो बारात के फूफा की तरह ‘क्षणे रूष्टा-क्षणे तुष्टा’ बनने का कोई मतलब नही है.
हम फिलहाल मोदी का विरोध करके खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी ही मार रहे हैं! अगर आप मोदी में हिन्दू औरंगज़ेब ढूँढ रहे हैं तो ये आपकी समस्या है, क्योंकि वो ख़ुद बनना भी चाहें तो लोग बनने नही देंगे. बरसों पहले हिन्दुत्व के नायक सावरकर को न चुनने की सज़ा हिन्दुओं ने सालों भुगती, अब फिर वही गलती कर रहे हैं.
कांग्रेस और लेफ़्ट लॉबी कितनी ताक़तवर है इसी बात से पता चलता है कि बिना किसी ठोस कारण के, राम मंदिर की सुनवाई रोकने के लिये CJI के खिलाफ महाभियोग ले आई. और सड़कों पर निकलकर हिंसा करने वाले कांग्रेसी वामी और विपक्षी ही हैं.
आज कांग्रेस आतंकवादी PFI का सपोर्ट ले रही है. कांग्रेस ने सार्वजनिक तौर पर सिर्फ गाय नहीं काटी थी, बल्कि ये जताया था कि We care a damn about Hindus and their feelings.
जेहादी दीदी जो पश्चिमी बंगाल को बंगलादेश बनाने पर उतारू हों या मुल्ला मुलायम जो हिंदुओं को मरवाने में शान समझते हैं या चाराचोर लालू या रेपिस्ट को सिलाई मशीन देने वाला केजरी, सब तुष्टीकरण में कांग्रेस के बाप बन गये हैं. लेफ़्ट का तो डीएनए ही हिन्दू विरोधी है.
बात चाहे हिन्दू आतंकवाद की हो, राम मंदिर की, रोहिंग्याओं की, सेना की या लिंगायत के नाम पर हिंदुओं को बाँटने की हो… बहुत मुद्दे हैं, बीजेपी और मोदी को सपोर्ट करने के लिये.
आज मोदी विरोधी ताल ठोक उकसाते हैं कि “मंदिर वहीं बनायेंगे, तारीख़ नहीं बतायेंगे”. क्या आप सोचते है कि वो मंदिर बनाने के लिये ऐसा कह रहे हैं, नहीं वो आपको उकसाकर, उल्लू बना रहे हैं.
याद रखिये Saul Alinsky का चौथा रूल कि “शत्रु को उसके ही बनाये नियमों का पालन करने पर बाध्य करें, वहीं वो फंसेगा” और अनजाने में हिन्दू उन्ही के जाल में फँस रहे हैं.
आनंद राजाध्यक्षजी की इस बात से सहमत हूँ कि हमने विकल्प तैयार करने के लिये कितनी मेहनत की है? एक राजनैतिक विकल्प तैयार करने में बहुत समय, उर्जा और पैसा लगता है.
आज सालों की मेहनत और हज़ारों स्वयंसेवक के बलिदान के पश्चात संघ और बीजेपी ने सरकार बनाई है तो हम नाराज़गी के नाम पर उन्हें हटा दें, बिना ये जाने कि उनकी जगह जो आयेगा वो कितना बड़ा हिन्दुत्व विरोधी होगा.
मोदी को, मोदी के लिये नहीं, आने वाली पीढ़ी के लिये लाना चाहिये. वरना कहीं ऐसा न हो, आधी छोड़ सारी को धावे, सारी मिली न आधी पावे.
आखिर राजनीति में एक इंसान की अहमियत ही क्या है, “फ़क़त एक वोट”, तो हमने इस वोट पावर को संगठित करने के लिये क्या किया? आज साठ पैंसठ प्रतिशत लोग ही वोट करते हैं, जो वोट नही करते वो ज़्यादातर मिडिल क्लास हिन्दू होते हैं. हमने कितने लोग मोबिलाइज़ किया है कि इस बार एक बंदा घर पर नहीं बैठेगा फिर देखिये कैसे सरकार नहीं सुनती!!
अभी मोदी का बहिष्कार करना हिन्दुओं की ‘राजनैतिक आत्महत्या’ करने जैसी होगी और बिना राजनैतिक नेतृत्व के बहुसंख्यक आबादी धिम्मी कैसे बन जाती है ये पश्चिम बंगाल और केरल में तो देख लिया, बाकी देश में भी जल्द देख लीजियेगा.