शत्रु कई रूपों में आएगा, कैसे पहचानेंगे? अपनी और दुश्मन की फौज में फर्क करेंगे कैसे?

लॉर्ड ऑफ द रिंग्ज़ का यह प्रसंग अवश्य देखिये.

एक राजा है थिओडेन, जिसका राज्य और उसकी सेना का साथ, राक्षसी खलनायक सौरोन और उसकी सेना से लड़ने के लिए मनुष्यों के लिए अत्यंत महत्व का है.

उसकी सहायता मांगने उसके दरबार में मनुष्य आर एल्व्ज़ तथा ड्वार्व्ज के प्रतिनिधि आए हैं. उनमें एक है गण्डाल्फ जो योद्धा भी है और सिद्ध भी.

थिओडेन के दरबार में उनका ठंडा स्वागत होता है जो गण्डाल्फ के लिए अजीब बात होती है क्योंकि थिओडेन के उसके संबंध अच्छे रहे हैं.

लेकिन देखता है तो थिओडेन पर एक प्रभाव सवार है जिसके चलते वो अपनी ही प्रजा का हितशत्रु तथा आत्मघाती सा हो गया है.

गण्डाल्फ उस प्रभाव को भाँप लेता है और पहचान जाता है कि यह सवारी सौरोन के नंबर दो के सेनापति सारूमोन की है.

सारूमोन का चेला होता है ग्रिमा जो हमेशा उसके साथ साये जैसा रहता है, उसे अकेला नहीं छोड़ता.

हमेशा उसके कानों में फुसफुसाता रहता है कि क्या करना है और अपनी सीमा से बाहर आ कर लोगों को हड़काता भी है. इसीलिए क्योंकि राजा थिओडेन उसे कुछ नहीं कहता.

अब भी ग्रिमा आगे आ कर गण्डाल्फ को हड़काता है और अपने आदमियों को गण्डाल्फ और मंडली को गिरफ्तार करने का हुक्म देता है. लेकिन गण्डाल्फ इसके लिए तैयार है, वह अपना दंड निकालता है जिसे पहचान कर ग्रिमा डर से दुबक जाता है.

यहाँ गण्डाल्फ के साथी ग्रिमा के हुक्म की तामिली करने वाले राज सेवकों को गिरा देते हैं, और उनमें से एक ग्रिमा पर भी झपटता है. अब गण्डाल्फ बिना व्यत्यय के, राजा की ओर बढ़ता है.

तब राजा के शरीर पर कब्जा किया हुआ सारूमोन उसे चुनौती देता है कि तू कुछ नहीं कर सकता, तेरी शक्तियाँ यहाँ नहीं चलेंगी। लेकिन गण्डाल्फ का सामर्थ्य का उसे अंदाज़ नहीं होता, और गण्डाल्फ, सारूमोन को राजा के शरीर से खदेड़ देता है.

सारूमोन के प्रभाव से मुक्त होते ही राजा थिओडेन में आश्चर्यकारक बदलाव दिखने लगते हैं, वो पहले जैसा दिखने लगता है, गण्डाल्फ को अपने मित्र के तौर पर पहचान लेता है और अपनी तलवार को छूते ही उसमे पुन: शक्ति संचार होता है. फिर ग्रिमा को राज्य से निष्कासित भी किया जाता है.

अगर आप ने यह क्लिप देख ली है तो आप को कम से कम ग्रिमा में सरेशवाला तो दिखाई दिये ही होंगे. बाकी मुझे तो दोनों तरफ थिओडेन और ग्रिमा दिखते हैं.

आम हिन्दू भी थिओडेन ही है जिसे कई ग्रिमा उकसा रहे हैं कि मोदी को चलता कर दे क्योंकि… ये ग्रिमाओं को पहचान नहीं रहा कि ये क्या हैं.

बाकी इनकी बातों में उसके कई सैनिक और सरदार भावुक हुए जा रहे हैं कि लड़ाई उनके हिसाब से नहीं जा रही.

शाओलिन के आइने वाले चेम्बर जैसी स्थिति है जहां आसानी से पता नहीं चलता कि सामने अपना ही भावुक साथी है या शत्रु का धूर्त भितरघाती. साथी को खोना नहीं और शत्रु के धूर्त भितरघाती के जाल में आना नहीं.

दुविधा की स्थिति है जहां collateral damage भयानक होगा. वही बैरम खान वाली स्थिति जहां उसने गोली चलाने का हुक्म यह कहते दिया था कि आखिर मरने वाला तो काफिर ही होगा.

दोनों थिओडेनों को दुष्प्रभाव और ग्रिमाओं से मुक्त करना और सौरोन का मुक़ाबला करना. मुश्किल तो है मगर असंभव नहीं.

और एक बात बताना चाहता हूँ जो शुरू में ही लिखी है – थिओडेन का राज्य और उसकी सेना का साथ, राक्षसी खलनायक सौरोन और उसकी सेना से लड़ने के लिए मनुष्यों के लिए अत्यंत महत्व का है.

यहाँ दोनों थिओडेनों में एक के साथ राज्य है, दूसरे के साथ सेना. और इन दोनों को भी अपने साथ है लेना.

उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।गीता 6.5।।

मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिये और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिये क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है.

बात समझ में आ ही गई होगी, फिर भी बात और स्पष्ट हो सके इसके लिए डॉ राजीव मिश्रा का यह लेख अवश्य पढ़िए.

कैंब्रिज एनालीटिका कैसे काम करता है, मुझे नहीं पता. पर कैसे काम करता होगा, सोच सकता हूँ…

एक है करोड़ी ब्राह्मण ग्रुप… जुड़ते ही सौ ब्राह्मणों को जोड़ें टाइप…

उसमें ब्रह्म-ज्ञान से लबलाबाये एक घनघोर ब्राह्मण बंधु पूछते हैं कि शूद्र माता-पिता से जन्म लिया कोई व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है?

90% लोगों ने जवाब दिया, बन सकता है… ब्राह्मण कर्म से बनता है… वगैरह वगैरह…

अब हमको नहीं पता कि ब्राह्मण कैसे बनता है. हम नहीं बने, नहीं बन पाए तो क्या जानें. पर एक दो विप्र-श्रेष्ठ बहुत देर लोगों को समझाते रहे कि नहीं, इस प्रश्न का यह अर्थ नहीं है… शास्त्र फलाना ढिमकाना कहते हैं… फिर लोगों की अल्पज्ञता पर दुखी होकर, खिसिया के चले गए.

वैसे ही सुबह दूसरी एक पोस्ट पर जमशेदपुर के झाविमो के एक बंधु कह रहे थे कि उन्हें अपने जीवन में मुस्लिम से कभी कोई खतरा नहीं महसूस हुआ… सब भाजपाइयों का खड़ा किया हौवा है…

जब उनकी इस थ्योरी के खरीददार नहीं मिले तो पैंतरा बदल कर यह समझाने लगे कि मोदी ने हिंदुओं को कैसे धोखा दिया है… मोदी को भगवान मानने वाले भक्त ज़रा मोदी के ट्विटर पर जाकर उनकी ट्वीट देख लें…

अरे भाई, जब आपको मुसलमान बिल्कुल कुम्भ में बिछड़े हुए जुड़वाँ लगते हैं तो फिर आपको मोदी के ट्वीट से क्या नाराज़गी हो गई. यह अधिकार तो मूर्ख हिंदूवादियों का छोड़ दीजिए जिन्हें अंधेरे में रस्सी साँप दिख रही है. आपको तो मोदी के ट्वीट पढ़ के पक्का भगत बन जाना चाहिए था… आपके दिल की ही बात कह रहे हैं मोदीजी, आपको क्या शिकायत हो गई?

शत्रु कई रूपों में आएगा. यहाँ ब्राह्मण श्रेष्ठता का मंत्र लेकर आएगा, वहाँ दलित अधिकारों की अलख जगायेगा… पहले गंगा-जमुना का संगम दिखायेगा, दाल नहीं गलेगी तो हिंदुत्व का झंडा भी उठाएगा… कैसे पहचानेंगे? अपनी फौज और दुश्मन की फौज में फर्क करेंगे कैसे?

सतर्क रहें… शत्रु को जाने ना दें, पर अपनी फौज पर फ्रेंडली फायर भी ना झोंकें…

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