मेरी मोदी से शिकायत यह नहीं है कि वे कह क्या रहे हैं. यह भी नहीं कि वे कर क्या रहे हैं. क्योंकि राजनीति में बहुत कुछ मजबूरियाँ होती हैं, और मजबूरी में बहुत कुछ कड़वा-तीता पचाना पड़ता है.
मेरी शिकायत यह है कि वे सोच क्या रहे हैं.
लोग कहते हैं, मोदी क्या सोचते हैं यह समझना आसान नहीं है. पर मैं सहमत नहीं हूँ. उनकी सोच का पता लगता है.
बहुत कुछ जो वे कह रहे हैं, वह कहने की कोई मजबूरी नहीं है. और कहने का कोई फायदा भी नहीं है.
फिर भी वे कह रहे हैं, तो वह सिर्फ कहने की बात नहीं है. बिना मजबूरी, या बिना फायदे के कही गयी बात का सिर्फ एक कारण हो सकता है कि वह उनकी अपनी सोच से निकला है. वे सिर्फ कह नहीं रहे, जो कह रहे हैं उसपर सचमुच विश्वास करते हैं.
यह सिर्फ अप्रैल महीने की ‘मन की बात’ और मोहम्मद साहब के गुणगान तक की बात नहीं है.
किसी को याद हो, 2015 में एक बार मोदीजी का एक ट्वीट आया था, जब उन्होंने कहा था कि एक बहुत अच्छी खबर देने वाले हैं. थोड़ी देर बाद दूसरा ट्वीट आया कि अफगानिस्तान से किसी फादर जॉन को छुड़ा लिया गया है.
मुझे बहुत जोर से गुस्सा आया, यह क्या ड्रामा है? छुड़ा लिया गया है, ठीक है. इसका प्रचार करना है, अपने प्रचार तंत्र का प्रयोग कीजिये. पर आपके दो-दो ट्वीट बताते हैं, आप अपनी इस सफलता पर मुग्ध हैं. खूब रस लेकर बता रहे हैं.
उस समय किसी तरह खुद को समझाया, कोई कूटनीति होगी. पर धीरे धीरे यह पैटर्न स्पष्ट होने लगा.
वैसे ही, प्रशांत पुजारी पर चुप रहे… कहा नहीं, मान लिया कोई कूटनीति थी. पर कुछ किया भी तो नहीं. पर लालकिले से 15 अगस्त को आपको गौ-गुंडों के बारे में बोलना याद रह गया. तब भी चुप रह सकते थे.
मनोविज्ञान में एक शब्द प्रयोग होता है, Freudian slip… यानि अंतर्मन की बात अनायास मुँह पर आ जाना.
मुझे अब मोदीजी के ये वक्तव्य कुछ ऐसे ही महसूस होते हैं. जब वे कहते हैं कि मुसलमान युवकों के एक हाथ में क़ुरान और दूसरे में कंप्यूटर देखना चाहते हैं, तो वे सचमुच यह चाहते हैं.
उन्हें लगता है कि इस्लामिक आतंकवाद अनपढ़ और पिछड़े मुस्लिमों की वजह से है. वे सचमुच मानते हैं कि पढ़ा लिखा और सक्षम मुस्लिम वर्ग देश के हित में है…
मुसलमान अगर पढ़-लिख के आईएएस बन जायेगा तो व्यवस्था के भीतर रहकर वह देशभक्त हो जाएगा. ऐसे जितने क्लीशे बाजार में घूम रहे हैं, मोदीजी ने सबको सब्सक्राइब कर रखा है.
अपने जीवन में कुछ ऐसे लोगों, गुरुजनों, अग्रजों से, जिन्हें मैं सबसे समझदार और आदर्श मानता था, जब मैंने बात की तो पाया कि वे सभी इन सारे क्लीशे को सब्सक्राइब किये बैठे थे.
मुझे एक क्षण के लिए विश्वास नहीं हुआ… पर शायद इसपर विश्वास करना एक सुखद सुरक्षा का भाव देता है. एक उम्मीद जगाता है कि समस्या का समाधान बिना हिंसा और संघर्ष के निकल सकता है…
मुस्लिम युवाओं को पढ़ा लिखा दो, आधुनिक शिक्षा दे दो… समस्या का समाधान हो जाएगा. इस सरल उपाय की इच्छा उन्हें वह विश्वास करवाती है जो उनकी तर्क-बुद्धि के विपरीत है.
जैसे कि कैंसर के मरीज को लगता है, किसी जड़ी-बूटी से ठीक हो जाएगा… ऑपरेशन, केमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी नहीं देना पड़ेगा. यह इच्छा और विश्वास आपकी तर्क-बुद्धि का स्थान ले लेता है.
मोदीजी के आसपास जो लोग हैं, जिन्होंने उन्हें घेर रखा है और उन्हें इस सुखद विश्वास में लपेट रखा है… हम आप जो सुन रहे हैं वह उसी की प्रतिध्वनियाँ हैं. इस व्यवस्था ने जिस मोदीजी का निर्माण किया है, वह एक नहीं, पाँच टर्म में भी हमें कोई समाधान, कोई सुरक्षा नहीं दे सकती.
मुझे नहीं पता, यह रास्ता निकलेगा कैसे, पर यही एक रास्ता है. अगर किसी तरह संभव हो तो मोदीजी के करीबी इस रिंग को तोड़कर कोई उनके पास तक पहुँचने का प्रयास करें. मोदी को चुनें, समर्थन करें… पर उसके पहले ज़रूरी है कि मोदी को salvage करें.