संघ की कार्यप्रणाली में एक सर्वाधिक ठोस कार्यक्रम रहा करता था/ है, वो था/ है ‘सह भोज’ और इसके कार्यक्रमों में आये भागीदारों के लिए किये जाने वाला ‘भोजन पैकिट संकलन’.
यह संयोग ही था कि 1973 संघ में मेरा प्रवेश ही एक सहभोज कार्यक्रम से हुआ. मैं तब मथुरा पढता था, और वहाँ हनुमान टीला पर रहता था.
वहीं पास कंस किले पर लगने वाली दुर्ग शाखा के स्वयंसेवक मुझे शाखा के सहभोज कार्यक्रम में ले गये…
वहां सारे स्वयंसेवक अपने घरों से भोजन के पैकिट लाये थे, सारे स्वयंसेवक मंडल बना कर बैठे थे और भोजन बीच में रखा हुया था…
किसी स्वयंसेवक को एक दूसरे की जाति का पता नहीं था… ना ही कोई छोटा बड़ा था… उन पैकिटों से रोटी, परांठे या पूड़ी निकाल कर एक स्थान पर, सब्जी अचार आदि निकाल कर अलग रख लिए गये थे…
जब वो पल याद आ गया ही है तो ये भी बता दूं कि उस कार्यक्रम में मौजूद एक अधिकारी वर्तमान में भाजपा में द्वितीय स्थान और एक अधिकारी संघ में तीसरे स्थान पर तो तीसरे अधिकारी VHP में अति वरिष्ठ दायित्व पर हैं
खैर साब ‘ॐ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु…’ मन्त्र के साथ भोजन शुरू हुआ…
सारे स्वयंसेवक अपनी भूख से दूना तिगुना भोजन लाये थे पर मुझे खूब ध्यान है उस आनंददायी वातावरण में सारे स्वयंसेवक ही भूखे रह गये थे…
कुछ दिनों बाद रकाब गंज आगरा में तत्कालीन सर संघ चालक मा. बाला साब देवरस जी के कार्यक्रम में आया… ये वे ही सरसंघ चालक थे जिन्होंने अपने पहले ही बौद्धिक में छुआछूत पर प्रहार करते हुए कहा था “यदि हिन्दू समाज अस्पर्श्यता अपराध नहीं है तो यहाँ कुछ भी अपराध नहीं है.”
यहाँ देखा कि भिन्न भिन्न प्रकार के भोजन के पैकिट थे जो कि आगुन्तक स्वयंसेवकों को दिए गये थे…
उत्सुकता हमेशा रहती थी… सो पूछताछ में मालूम हुआ कि वे भोजन के पैकिट शहर के घर-घर से एकत्रित किये… और घरों के बारे में कोई भी निर्देश नहीं था कि वो घर किस जाति का है या किस पार्टी या संगठन का समर्थक है…
स्वयंसेवक घरों में गए, गृह स्वामिनी को प्रणाम कर कार्यक्रम की सूचना देकर भोजन के पैकिट बनाने का आग्रह कर, कार्यक्रम की सुबह जिस घर से जैसे मिले एक-दो-चार उतने पैकिट ले आये और कार्यक्रम के अतिथि स्वयंसेवकों को बिना संकोच, प्रेमपूर्वक वे पैकिट दिए…
और स्वयंसेवक भी बड़े अजीब हो जाते हैं… पट्ठे ये तो सोचते नहीं कि पैकिट ना जाने किस जाति के हैं, और उपर से पैकिट देख कर भूख बढ़ जाती है वो अलग…
अब साहब शीत शिविर में गए वहां तो वे ही एकत्रित पैकिट मिलते थे… लेकिन संघ के बने भोजन का साक्षातकार सबसे पहले ITC में हुआ…
यह ITC रूटीन वाली यानी गरमी की ना होकर शीतकालीन, पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश स्तर की थी… सो यहाँ एक तो ये बड़ी बात कोई भी स्वयंसेवक एक दूसरे की जाति नहीं पूछ सकता था… और ऊपर से भोजन वितरण के समय आदेश हुआ…
‘प्रथम पंक्ति में अमुक जिला परोसेगा… दूसरी में वो जिला…’
अब पता नहीं जिले में कितनी जातियों के स्वयंसेवक थे… कथित अछूत जाति के दो स्वयंसेवक तो हमारे ही साथ थे…
उस शिविर में चतुर्थ सर संघ चालक मा. रज्जू भईया हम स्वयंसेवकों के साथ ही भोजन करने बैठे… कोई स्पेशल रोटी या दाल उनको नहीं परोसी गयी.
तो ये है संघ की भोजन पद्धति या कहिये सहभोज कार्यक्रम… इस भोजन पद्धति के अनुभव से गुजरा हुआ टीन एजर स्वयंसेवक जीवन पर्यन्त हिन्दू मात्र ही रहता…
ये ही वो भोजन मॉडल है जिसके द्वारा रा.स्व.संघ वर्ग भेद, जात-पात या ऊंच-नीच को ध्वस्त कर सामाजिक समरसता के भाव के साथ हिन्दू समाज को संगठित करता आ रहा है…
1980 के दशक में मीनाक्षीपुरम में हुए धर्मांतरण की घटना के बाद संघ ने ‘विराट हिन्दू सम्मलेन’ के तत्वावधान में इसी मॉडल का प्रयोग दलित बस्तियों में हुए सहभोज कार्यक्रमों में किया…
उस कार्यक्रम के मेजबान होते थे दलित, जो कि या तो घर-घर से भोजन एकत्र करके लाते… या फिर एक जगह भोजन बनता तो उसे भी दलित बंधु ही बनाते थे…
और अतिथि होते थे सवर्ण घरों के स्वयंसेवक साथ में कई हिन्दू संत… ये अतिथि बस्ती के ही दलितों के साथ जमीन पर टाट पट्टी पर बैठ कर भोजन करते थे… और बताने की ज़रुरत नहीं कि परोसने वाले दलित या वंचित बंधु होते थे…
ये ही कार्यक्रम था जिसने काँग्रेस का कट्टर वोट बैंक ‘वाल्मीकि’ जिनको कि सरकारी ब्राह्मण और सूअर को काँग्रेसी गाय कहा जाता था, को भाजपा ने काँग्रेस से परमानेंटली छीन लिया था…
लेकिन अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जी के दलित के यहाँ भोजन के समाचार आते हैं तो उस भोजन और घर की चमक दमक देख को देख सवर्ण ही सोचने लगे कि क्या इनको ही वंचित शोषित कहते हैं…
नरेंद्र मोदी जी जब भाजपा नेता, पदाधिकारी, मंत्री, सांसद और विधायकों को दलितों के साथ भोजन और रात्रि विश्राम करने को कहते हैं तो…
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के दयाराम की बजाय आसाराम के यहाँ पहुँचने और ठाकुर मंत्री स्वाति सिंह द्वारा रोटी सेंकने के समाचार सुर्खी बनते हैं…
उमा भारती बड़ा अजीब सा धूर्तता भरा बयान दे कर दलित के यहाँ भोजन करने से इनकार कर देती हैं.
मंत्री सुरेश राणा होटल के भोजन को मात देने वाले लजीज़ भोजन को करके, दलित की बजाय एसी वाले सामुदायिक भवन के गद्दों पर रात्रि प्रवास करते हैं.
आखिर क्या मोदी जी को श्यामा प्रसाद जी मुखर्जी या दीनदयाल जी उपाध्याय की कोई वसीयत मिल गयी थी, जिसमें दलित के यहाँ भोज के कार्यक्रम का कोई निर्देश दिया हुआ हो जो उन्होंने पार्टी को विवादित बनाने वाला ये टास्क दे दिया…
यदि मोदी जी ने वाकई समाजिक समरसता लाने हेतु ये कार्यक्रम हाथ में लिया ही है तो इन मंत्री, नेता, सांसद, विधायकों को ‘विराट हिन्दू सम्मेलन’ के सहभोज वाली थीम पर ही दलित बस्तियों में जाने के निर्देश दें… अन्यथा इस कार्यक्रम से कुछ मिलना तो दूर उलटे खोना बहुत कुछ निश्चित है.