फेसबुक के सकारात्मक उपयोग से मिला सम्मान

फेसबुक बहुत काम की चीज है भाई, थोड़ा ध्यान दिया करो. कई पेजेस, ग्रुप्स, कम्युनिटी और आप जिस विधा में माहिर हैं. उससे जुड़े तमाम धुरंधरो से जुड़ने का मौका देता है.

यह दुनिया भर के 220 करोड़ लोगों का एक ऐसा परिवार है जहाँ आप अपनी मन माफिक एक नयी दुनिया बसा सकते हैं. एक ऐसी कम्युनिटी डेवलप कर सकते हैं जो खुशियाँ बांटने का काम करे और इस ब्रह्माण्ड में ज़िंदगी की नयी संभावनाओं को तलाशने में मदद करे. जब जब मैं ऐसा कहता तो लोग मजाक में उड़ा देते थे.

फिर सुमित फाउंडेशन “जीवनदीप” की शुरुआत हुई, ज़्यादा नहीं सिर्फ एक दिन में 14 से 19 घंटे ब्रेक ले लेकर लैपटॉप पर बैठ फेसबुक-फेसबुक खेलता रहता था. कहीं से जोड़ तोड़ कर फिर ज़िंदगी बचाने का एक तरीका इजाद कर लिया मैंने.

फेसबुक से कुछ ऐसे दोस्त मिले जो बचपन के दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बढ़कर निकले. उनसे वो मदद और सीख मिली जो शायद लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी नहीं मिलती.

आज जीवनदीप के इस परिवार में देश दुनिया के 1,16,000 से ज़्यादा लोग जुड़ चुके हैं. इस साल के अंत तक इसे 10 लाख सदस्यों वाला परिवार बनाने की ख्वाहिश है. फेसबुक पहले इस्तेमाल करता था, फिर फेसबुक के साथ जीना शुरू कर दिया मैंने. इतना ज़्यादा लगाव हो गया कि बात मेरे सर्वाइकल प्रॉब्लम तक आ गयी.

फिर एक दिन ऐसा आया जब फेसबुक के साउथ एशिया प्रोग्रामिंग हेड रजत अरोरा सर जो फेसबुक में 8 देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं, से रायपुर में मुलाकात हुई. उन्होंने हम सबके द्वारा सही दिशा में किये जा रहे फेसबुक के इस्तेमाल को दिल से सराहा.

रायपुर के उस इंडोर स्टेडियम में कई हजार लोगों की भीड़ थी उस दिन, जब रजत सर ने कहा आइये आपको छत्तीसगढ़ के उन दो लोगों से मिलवाता हूँ जो फेसबुक का अपने आप में बेहतरीन इस्तेमाल करते हैं.

मैंने और मेरी सहयोगी स्मिता टंडी जी ने वहां लोगों के बीच अपने अनुभव साझा किये. पूरा स्टेज नीली और सफ़ेद रौशनी से फेस्बुकमय हो चुका था. फेसबुक इस्तेमाल करना और फेसबुक के किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के अधिकारी के साथ मंच साझा करना ..सच में यकीन नहीं हो रहा था.. बहुत अच्छा लगा उस दिन राज्य का उस मंच पर प्रतिनिधित्व करके.. पर जिस दिन लोगों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल के सही मायने और तरीके सिखा दूंगा, तब असल बात बनेगी..

रजत सर के कहे एक एक शब्द मेरे कानों में अभी तक गूंज रहे हैं. मैंने अपनी स्पीच के अंत में यह ज़रुर कहा कि अगर मैं भारत की एजुकेशनल पॉलिसी बनाता तो फेसबुक भारतीय पाठ्यक्रमो में आठवां विषय जरुर होता. उम्मीद है अपने कहे हुए शब्दों को एक दिन जल्दी ही सच कर दिखाऊंगा. प्रयास जारी है हर आखिरी हद तक, क्योंकि परिवर्तन आम इंसान ही लाया करते हैं.

पता नहीं ये बंजारा कहाँ कहाँ जायेगा, एक मंजिल मिलती नहीं कि दूसरी इतंजार में खड़ी रहती है. बस मुझे प्यार करते रहिये. आपका प्यार ही मेरी और जीवन दीप की ताकत है.

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