इन्हीं आँखों से और इसी शरीर से, हम भी देखेंगे हिंदुत्व का उत्थान

दिक्कत ये है कि 2014 के बाद से केवल एक व्यक्ति को हिंदुत्व का शलाका पुरुष मान लिया गया है और हरेक चीज़ को उसके गिर्द रखकर मापने और तय करने का फैशन शुरू हो गया है.

आप सबने सारे आयाम केवल और केवल एक व्यक्ति के गिर्द समेट दिए हैं मानो उसकी परिक्रमा न करने वाला हरेक अपराधी और गद्दार है भले ही वो हिंदूवादी ही क्यों न हो.

फेसबुक के इस पांच-छह साल में मैंने इस्लाम, यहूदियत, ईसाईयत से लेकर दलित-विषय और वामपंथ तक पर हिन्दुत्व के लिए लिखा. जातियों के बीच वैमनस्यता दूर करने और प्रांतीयता के झगड़े दूर करने वाले पोस्ट लिखे और कभी अपनी छवि की चिंता नहीं की.

कई मित्र हैं जिनको हिन्दुत्व के लिये लिखने को प्रेरित किया. कभी मठाधीशी और खेमेबंदी के खेल में पड़कर अपनों की आलोचना नहीं की, न उनकी हँसी उड़ाई. मगर मोदी की नीतियों से तकलीफ ज़ाहिर करते ही बहिष्कृत घोषित कर दिया गया.

कुछ कह रहे हैं स्वार्थ पूरा नहीं हुआ इसलिए तकलीफ है, कुछ को कुछ और लगता है तो उनको केवल ये बताना है कि एक राहुल सिंह राठौड़ को छोड़ कर एक भी भाजपाई मेरा दोस्त नहीं है, न तो ज़मीन पर और न ही सोशल मीडिया पर.

मुझे उस पार्टी की न तो राजनीति में रूचि है, न किसी पद में और न ही मेरी ये चाहत है कि बड़े नाम और बड़े चेहरे वालों के साथ बैठकर फोटो खिंचवाऊ और फिर उसका उपयोग करूं.

यहाँ फेसबुक पर जो भी हिंदुत्व के लिये ईमानदार है वो मेरे लिये वन्दनीय है और मैं उसे महसूस कर लेता हूँ कि कौन विचारधारा के लिये ईमानदार है और कौन बरसाती मेढक और अवसरवादी जो भाजपा के इस उत्थान काल में इधर टर्रटराने आ गया है.

जिस काल में सब एक वामपंथी कालनेमि की प्रशंसा में अभिभूत थे, मैं तब उन चंद लोगों में था जिसने सबसे पहले उसे पहचाना था, पर ये सब बेकार हैं क्योंकि मैं आज स्तुति-गान करने वालों में शामिल नहीं हूँ.

यहाँ वो लोग ही आपके लिए हिन्दुत्व के सिपाही हैं जिनकी बेसिक समझ इतनी ही है उनको प्रखर हिंदूवादी लोग ‘कैम्ब्रिज एनालिटिका’ की पैदाइश दिखते हैं. जो व्यक्ति की पहचान नहीं कर सकते वो काहे के हिन्दुवादी और क्यों मैं उनकी सुनूंगा? ऐसे लोग ही या फिर कथित राष्ट्रवादी पार्टी के आईटी सेल के लोगों का युग है ये, जिसमें मेरे जैसे लोग मिसफिट हैं.

मैंने संघ के अपने कई परिचितों को इन सबके बीच कुपित किया, दूसरे मज़हब के अपने कई मित्रों और हित-चिंतकों को खोया, अपनी जिंदगी के व्यस्त घंटों में से अधिकांश घंटे यहाँ बर्बाद किये. अपनी इन गलतियों को अब और नहीं दुहराना चाहता. ‘विचारधारा के लिये मेरी ईमानदारी’ दूसरे खेमे वाले इधर वालों से अधिक बेहतर जानते हैं.

मैं विचारधारा के लिये आया था, उसी के लिये आज भी हूँ. आज ध्यान विनय जी ने बताया कि मेकिंग इंडिया पर अब तक मेरे 184 आलेख हैं, फेसबुक पर सौ-सवा सौ और होंगे. इनमें कई मोदी साहब की भक्ति में भी है पर नाउम्मीद होने के बाद मन मारकर और झूठ लिखकर अपनी नज़रों में नहीं गिरना चाहता. न तो मुझसे झूठी भक्ति होती है न झूठी प्रशंसा.

आगे मेरे लिये खूबसूरत कैरियर है, लिखने के लिये इकबाल, फैज़ और ग़ालिब की शायरियाँ हैं, सीखने के लिये ज्योतिष है. उसमें समय देना और उसपर लिखना शायद फेसबुक पर हिंदुत्व के लिये लिखने से ज्यादा मुनासिब है. जो किताबें हैं वो जब आयेंगी तब उसका उपयोग करने वाले कर ही लेंगे.

हिंदुत्व, राष्ट्रवाद के विषय दिल में लिखे हैं उसे फेसबुक पर लिखने की नादानी अब और नहीं करूँगा. संक्रमण काल है… देश और हम इससे जितनी जल्दी बाहर आये उतना अच्छा है.

प्रोफाइल डीएक्टिवेट नहीं करता क्योंकि ज़िंदगी के कई बेहतरीन लोग यहीं से मिले हैं और शायद आगे भी मिलेंगे पर पोस्ट नहीं लिखूंगा अब हिंदुत्व के लिये.

शायद कुछ बेहतरीन लोगों को ठीक से पढ़ने और शैलेंद्र सिंह, मुदित मित्तल जैसे युवकों को विलक्षण से असाधारण में बदलते देखने की फुर्सत मिल जायेगी. मेरी उम्मीदें इन जैसों से ही हैं जिनके लिये हिंदुत्व पहला और अंतिम प्यार है. राजसत्ता से हासिल कुछ भी नहीं होता, बल्कि ये कदम पीछे धकेलती है.

पूज्य डॉक्टर जी के शब्दों में “इन्हीं आँखों से और इसी शरीर से” हम भी देखेंगें हिंदुत्व का उत्थान… यही कामना सबसे है.

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  1. अभिजीत जी निजी तौर पर कह रहा हूं मुझे आपके लेखों ने हमेशा हीं आंदोलित और अद्वेलित किया है। लेकिन आज आपका लेख पढ़ा जिसमे निराशा ज़्यादा दिखी। लेकिन निराश किससे और क्यों होना ?? जब आपने इस क्रन्तिकारी मार्ग का चयन किया था जिसमें की आप अज्ञानियों में या राह से भटके हुए हम “हिन्दूओं” में अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति एक अलख जगा सकें या उनको एक प्रकाश-स्तम्भ तक लेकर जा सकें। तब आप अकेले हीं थे। किन्तु आज नहीं। फिर आज किससे और क्यों भागना। क्यों न उनका सामना दृढ़ता और निडरता से करते हुए ये बताया जाए की तुम असत्य के सांथ हो तुम गलत हो मैं नहीं। मैं आज अपनी सांस्कृतिक विरासत और अपने धर्म पे गर्व करता हूं तो इसलिए नहीं की इन् लोगों ने मुझे या आपको कोई प्रमाणपत्र दिया है। बल्कि इसीलिए करता हूं की ये मेरा अधिकार है और मेरी ज़िम्मेदारी भी। मैं अपनी ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकता और न हीं इस नई बनी रणभूमि से पीठ दिखा के जा सकता हूं। आशा आप से बीही यही है मेरी तभी लिखा। आप एक सैनिक हैं अपने धर्म की रक्षा के। आपको जाने भी नहीं दिया जायेगा। आपका जाना एक स्थान की एक सैनिक की बहुत बड़ी क्षति होगी। और मुझे आशा है की आप इसकी क्षति नहीं होने देंगे। नैराश्य भाव का समय नहीं है अब। रणभूमि और रंगभूमि तैयार है। ये ज़िम्मेदारी आपकी और हमारी हम सबकी है की अपने लोगों को जागृत कर रणभूमि की ओर ले चलें। उनकी चेतना जागृत करें। कृप्या मेरा अनुरोध मानियेगा ऎसी आशा करता हूं। धन्यवाद
    आपकी कलम का और अपनी संस्कृति की रक्षा का एक सैनिक ??

  2. प्रियांक शेखर जी से पूर्ण-रूपेण सहमत हूँ,
    आपका जो प्रण है वो रण-विजयी ही है।
    प्रज्वलित दीप का एकाकी कार्य रौशनी फैलाने तक सीमित न होकर कोटि-कोटि दीप प्रज्वलित हो सकें ऐसे प्रण से संकल्पित भी होता ही है; और आपने ये किया है और आगे भी आपको करना ही है।
    मेरा निजी मत है हम सब हिन्दु-हित चिंतक/साधक एकाकी दीप मात्र हैं जो रौशनी फैलाने के साथ अपने आस-पास दीप तलाशते हुए उन्हें प्रज्वलित करना है; जिससे ये रौशनी बढ़ती ही जाये और तिमिर दूर हो। रण विशाल है;प्रण भी महा-विशाल ही लगेगा।
    बंधु नैराश्य त्यागे निवेदन।

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