आज से कुछ साल पहले मेरे पैर में फ्रैक्चर हो गया… पंजे में…
पहले तो मैंने उसे मामूली मोच समझ कर उसकी उपेक्षा की. खिलाड़ियों को ऐसी मोच आना आम बात है.
जब एक-डेढ़ महीने तक भी दर्द न गया तो XRay कराया. डॉक्टर ने बताया, जनाब कायदे से टूटी हुई है हड्डी…
प्लास्टर लगा डेढ़ महीने… मने 3 महीने तक मैं लंगड़ा के चला. मित्रों ने ‘लंगड़ा-लंगड़ा’ कह के बुलाना शुरू कर दिया. फिर वो लंगड़ा, तैमूर लंगड़ा हो गया.
धीरे धीरे मेरा नाम ही रख दिया गया तैमूर लंगडा.
ये वो दिन थे जब हम computer illiterate हुआ करते थे यानी कम्प्युटर का क ख ग भी न जानते थे.
मुझे आज भी वो दिन याद है जब हमने जालंधर में काम करना शुरू किया तो एक सहयोगी ने कहा अपना ईमेल देना… हम दोनों मियाँ बीवी भेड़िया बाँय…
तय हुआ कि अब तो email account बनवाना पडेगा. मुझे आज भी याद है, मॉडल टाउन के उस साइबर कैफ़े में एक लड़के ने 30 रूपए लिए थे ईमेल आईडी बनाने के.
और फिर जब मेरी छोटी बहन ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित करना शुरू किया तो उसी ने मेरा ब्लॉग अकाउंट और फेसबुक अकाउंट बनाया.
ये वो दिन थे जब मैं ब्लॉग लिख तो लेता था पर उसे कॉपी-पेस्ट करना नहीं आता था फेसबुक पर…
वो भी बड़ा मशहूर चुटकुला ही बन गया जब मैंने अपने एक कम्पूटर ज्ञाता मित्र से कहा कि भाई मैं महीना-दो महीना तेरे पास लगा ले रिया हूँ… तू मेरे कू ये copy paste करना तो सिखा ही दे.
तो उसी दौर में मेरे उसी मित्र ने मेरा एक Gmail account बनाया… taimur.lang27@gmail.com… ये कमबख्त आज भी मेरा google account है.
ये तो जब इस करीना कपूर के बच्चे के नाम पर चिहाड़ मची तो मुझे मामले की गंभीरता का अहसास हुआ.
मुद्दे की बात ये कि इस से पहले आज तक न मुझे खुद कभी अहसास हुआ और न मैंने कभी खुद सोचा कि मेरे नाम के साथ… चाहे मज़ाक में ही सही… इतने भयानक कातिल का नाम क्यों जुड़ा है?
सच बताऊँ?
हालांकि मैं खुद को पढ़ा लिखा जागरूक जागृत व्यक्ति मानता हूँ पर सच ये है कि मुझे तैमूर लंग और ऐसे ही हज़ारों कातिलों के बारे में कोई जानकारी है ही नहीं…
दोष किसका है?
हमारी शिक्षा व्यवस्था ने secularism के चक्कर में इन इस्लामिक कातिलों की करतूत कभी हमारे सामने आने ही नहीं दी. History को dilute कर दिया गया.
अकबर महान हो गए. औरंगज़ेब सूफी संत… गजनी गोरी महान योद्धा… और बाकी सब सेक्युलर इतिहासकारों की बाजीगरी जादूगरी में गायब कर दिए गए.
एक मित्र ने सवाल उठाया… हॉलीवुड में Holocaust (यहूदियों के विनाश) पर और द्वितीय विश्वयुद्ध पर इतनी फिल्में क्यों बनती हैं? इसलिए बनती हैं कि आत्मा को झकझोरते रहे.
यहूदी, हिटलर को कभी मरने नहीं देंगे. कुछ ज़ख्म ऐसे होने चाहिए कि कभी न भरें… हिन्दुओं ने वो तमाम क़त्लेआम, वो तमाम अत्याचार भुला दिए जो 1400 साल तक उन पर हुए… हिन्दू भूल गए…
भूल गए तैमूर, चंगेज़ खां, गजनी, गोरी और बाबर, हुमायूं, अकबर औरंगज़ेब को… भूल गए चित्तौड़ के जौहर को…
कुछ ज़ख्म कभी भरने नहीं चाहिए.