वो मेरा पुनर्जन्म था
जब तुम मिले
मैं जी चुकी थी एक पूरी ज़िंदगी
उस से ऊपर भी उठ चुकी थी
मेरी रूह निरिक्षण कर रही थी मेरी मृत देह का
कि तुम टकरा गए
अरे, अभी कैसे मर सकती हो तुम
अभी तो मिल बैठेंगे, कुछ बातें करेंगे
मैंने उसी देह में पुनर्जन्म ले लिया
तुमने मेरा हाथ पकड़ा
और सात अँधेरे दरवाज़ों में से
मुझे बाहर उजाले में ले आए
मेरा चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा
मेरी आँखों में झाँका
तुम्हारी आँखों से दिव्य रोशनियाँ
मेरी आँखों की पुतलियों में उतरने लगीं
तुमने धीरे से मेरे माथे पे एक बोसा दिया
मैं हरिद्वार में शाम को होती
गंगा की आरती जैसी हो गई
मैं जन्म चुकी थी फिर से
इस बार वापिस अधूरा न जाने की मेरी दुआ सुन ली गई थी….