कश्मीर में हो रही और होने वाली राजनीतिक उथल पुथल का मूल त्रिपुरा के चुनावी परिणाम हैं.
15 साल पहले (2003) भाजपा नागालैंड, मिज़ोरम, त्रिपुरा जैसे स्टेट में चुनाव लड़ रही तो मुझे लगता नही था कि इन ईसाई बहुल राज्यों में, जहां चर्च का ज़बरदस्त दखल है, वहां भाजपा अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा सकेगी, जीत तो दूर की बात थी.
बालू से तेल निकालना जैसा काम था. तब असम सहित सेवेन सिस्टर राज्यों में से भाजपा सिर्फ असम में होल्ड बना पायी थी।
भाजपा ने हाथ आयी सत्ता जाने दिया, मतलब असम गण परिसद से व्यर्थ का गठबंधन कर भाजपा की सम्भावनाओं को कुचल दिया.
आज त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश (तख्तापलट) में भाजपा अपने दम पर संख्याबल के साथ बहुमत और गठबंधन सरकार चला रही है। 5 साल पहले इसकी कल्पना मुश्किल थी.
जब कश्मीर में भाजपा ने सरकार बनाई तो मैंने भी और बहुत सारे राष्ट्र्वादी मित्र इसके खिलाफ लिखा था. तब अंदाजा ही नही था कि आरएसएस बहुत पहले से इन सब जगहों पर अपना संवाद बना रही है.
कश्मीरी दोगले नेता ज्यादातर सुन्नी हैं और कश्मीर का सारा ग्रांट यही लोग हड़पते हैं. सरकारी नौकरी भी इन सुन्नी मुसलमानों को ही मिलती है. इनके इलाकों को ही ज्यादा विकसित किया जाता है. भारी भ्रस्टाचार भी यही लोग करते हैं.
मतलब सरकार, प्रशासन, कश्मीर की राजनीति में सुन्नी समाज का होल्ड है. बाकी लोगों की एक बड़ी जमात है जिसको ये कश्मीरी दोगले नेता अलगाववादी (मुफ़्ती, अब्दुल्ला और जिलानी गैंग) दबाए रहते हैं. सिर्फ दक्षिण कश्मीर के 4 जिले अशांत रहते है जिसकीं रिपोर्टिंग समस्त दुनिया मे होती है.
कश्मीर में इस्लाम का विक्टिम कार्ड बढ़िया से चलता है. कश्मीर में और भी बड़े समूह हैं जो हाशिये पर हैं. जैसे गुज्जर, डोगरा, बकरवाल (सभी मुस्लिम), जम्मू में हिन्दू को अलग थलग पहले से ही कर रखा है.
2008 में जब भाजपा 10 सीट (जम्मू रीजन में) पहली बार जीती थी तो उमर अब्दुल्ला का बयान आया था कि कश्मीर में साम्प्रदायिक माहौल बिगड़ेगा. 2014 में भाजपा 29 सीट जीत गई.
जम्मू को भारत की शरणार्थी राजधानी कह सकते हैं. यहां पाकिस्तान से आये 10 लाख से ज्यादा हिन्दू बसे हुए हैं जो लोकसभा में वोट कर सकते हैं लेकिन विधानसभा में वोट नही कर सकते हैं. मतलब वे जम्मू कश्मीर के नागरिक नहीं हैं.
जम्मू कश्मीर में हिन्दू समाज के लिए आज भी बहुत सारी समस्या है. कश्मीर से हिन्दू भगाए गए है उनके धन संपत्ति पर सुन्नियों का कब्जा है लेकिन वे डॉक्युमेंटेशन से आज भी कश्मीर के नागरिक हैं.
कश्मीर से विस्थापित ये हिन्दू दिल्ली और देश की दूसरी जगहों में रहते हैं. लगभग 28 हजार कश्मीरी हिन्दू दिल्ली में रहते हैं. लेकिन ये वोट नही करते हैं.
अगर ये वोट करें तो 7 सीट भाजपा कश्मीर घाटी में जीत जाये. ऐसा जम्मू कश्मीर के जानकार और धारा 370, 35A के विरोध में काम करने वाले हिन्दू एक्टिविस्ट मानते-कहते हैं. शायद कश्मीरी हिन्दू दिल्ली में वोट न करने के पैसे कश्मीरी दोगले नेताओ से लेते होंगे.
तो भाजपा जम्मू से निकलकर कश्मीर में पैठ बनाने का प्रयास कर रही है. इससे कश्मीरी नेता बेचैन हैं. कश्मीर में बड़े इलाके ऐसे हैं जिसमें शिया, बकरवाल और डोगरा मुस्लिम रहते हैं.
यह भी तय मानिए कि भाजपा कश्मीर की सरकार से न खुद हटेगी और न महबूबा को भागने देगी. कुल मिलाकर त्रिपुरा, नॉर्थ ईस्ट में भाजपा का उदभव कश्मीरी सुन्नी नेताओं को बेचैन किये हुए है.