सरकारी कर्मचारी की औसत सर्विस 35 साल होती है. याद है तो बताएं आप को गत 35 सालों में कितने प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी में केवल देशसेवा के लिए जॉइन करते मिले हैं? बाकी मंजूनाथ, रवि आदि लोगों की बलि राजनेता ही लेते हैं या सिस्टम भी?
सही रिप्लेसमेंट उपलब्ध हो तभी किसी को निकालना काम आता है. प्राइवेट में भी यही चलता है जहां आदमी को बिना ज्यादा झंझट के निकाल दिया जा सकता है, सरकारी नौकरों की बात करें तो यह महाकठिन काम होता है.
सिस्टम का सफाया महाकठिन है. बिना सबूत के भ्रष्टाचार के आरोप लगाना भी खतरा मोल लेना है, सरकारी कर्मचारियों के तथा विधिपालिका के लोगों के पास ऐसे अधिकार हैं कि उन पर आरोप करना खेल नहीं.
उनके कवच कुंडल क्या होते हैं यह भी अक्सर लोगों को पता नहीं होता. बस यूं समझिए कि किसी के खिलाफ अभियोग चलाने को भी उसके वरिष्ठ की अनुमति चाहिए, और वो अक्सर मिलने से रही. इसीलिए आरोप नहीं करते. बाकी आप कितनों को दूध के धुले होने का प्रमाणपत्र दे सकेंगे?
अक्सर लोगों को लिखते देखता हूँ कि मोदी जी प्रशासन की सफाई क्यों नहीं कर रहे? प्रशासन एक पेचीदा व्यवस्था है और उसकी सफाई जो करने की सोचे उसके सामने पेंच खड़े करने में माहिर है.
शरीर में रक्त बदला जाता है तब शरीर को जीवित रखने की सिस्टम्स विज्ञान ने विकसित की हैं. प्रशासन एक झटके में रिप्लेस होगा नहीं, और ना हो सकता है. और हाँ, उसमें काम करने वाले लोग हम में से ही आते हैं.
हमारे शत्रुओं ने अपने लोग और पक्ष चुन लिए हैं जिन्हें वे मोदी जी और भाजपा की जगह लाना चाहते हैं लेकिन हमने उन लोगों से ही बचने के लिए मोदी जी को वोट दिया था. अब आप की शिकायत यह है कि वे आप की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं.
मैं भी आप से सहमत हूँ, मेरी भी कई अपेक्षाएँ थी. वे उन पर खरे नहीं उतरे. लेकिन विकल्प के विकास के लिए मैं कुछ कर नहीं पाया. कई कल्पनाएँ कई लोगों से डिस्कस की, हर कोई प्रभावित हुआ कि देश की यह ज़रूरत है, इसे मोदी जी को देना चाहिए या फलाना ढिमकाना नेता को देना चाहिए.
सहमत. लेकिन मेरा ना मोदी जी से संपर्क हैं ना बाकी नेता लोगों से. ये प्रभावित लोगों में से भी किसी ने संपर्क करा दिया नहीं. बाकी बहुत छोटा आदमी हूँ, केवल समय और विचार दे सकता हूँ. कुछ तथाकथित नेता भी मिले जिनके कहने का निचोड़ यह था कि आप अपने खर्च से एक संगठन बनाएँ, काम करें, कुछ बन के दिखाएँ फिर हमारे पीछे आ जाएँ.
बाकी मोदी जी से नाराज राष्ट्रवादियों की भावना या उनकी देशभक्ति पर मैं कोई संदेह नहीं करूंगा. लेकिन काश, कोई ठोस और व्यवहारिक विकल्प भी खोज लेते. चार साल मोदी जी ने बर्बाद तो नहीं किए, फिर भी चलिये, उनकी कोई तारीफ नहीं करनी. लेकिन चार साल आप ने भी उनकी भक्ति तो की नहीं, तो विकल्प तो विकसित करते?
मेरी बात करें तो मुझे एक नेता में विकल्प की आशंका नज़र आई थी जिसके बारे में मैंने कुछ मित्रों से चर्चा की थी कि इस नेता पर नज़र रखते हैं. दुर्भाग्य से आशा की निराशा हुई है. नेता या मित्रों का नाम नहीं देना. नेता तो मुझे पढ़ते नहीं, लेकिन मित्र पढ़ते हैं, उतना काफी है. मित्रों की ईमानदारी पर भी कोई शक नहीं.
आज अगर निजी निराशा से आप नकारात्मकता फैलाएँ कि कोई भी आए लेकिन मोदी जाएँ तो कृपया यह भी सोचिए कि अगर आप एक ओपिनियन मेकर माने जाते हैं तो आपकी समाज और देश के प्रति कोई मानसिक ज़िम्मेदारी भी बनती है.
मोदी जा कर “कोई भी” आया जो आप के पसंद का नहीं होगा फिर भी उसके सत्तारूढ़ होने के जिम्मेदार आप भी होंगे. अगर उसकी करनी का फल आप को भुगतना पड़े तो आप के साथ आप से प्रभावित होने वालों को भी भुगतना पड़ेगा. उनके कष्टों की नैतिक ज़िम्मेदारी भी आप की होगी.
वैसे एक बात देख रहा हूँ कि राष्ट्रवादी या हिन्दुत्ववादी खेमे के जो भी मोदी जी के प्रखर से प्रखर आलोचक हैं, उनकी मोदी जी के कारण कोई अपूरणीय क्षति तो नहीं हुई है. बस आप जो अपेक्षाएँ रखते थे वे पूरी नहीं हुई तो आपको गुस्सा है.
और यह सुनना आप को गवारा नहीं होगा कि उन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए आप ने सरकार पर कोई सक्रिय दबाव नहीं बनाया.
भाजपा के सांसदों से नित्य संपर्क रखकर उनसे आप के प्रश्नों पर कोई एक्शन कैसे करवाया जाये, इस पर दो साल तक मैं लिखता रहा, दो साल से लिखना बंद किया, किसी को कोई रस नहीं था. सांसदों की बुराई तक सभी सहमत थे बाकी अपनी तरफ से कुछ करने के लिए हर किसी के पास समय का अभाव था.
असुरक्षा पर लगातार चिंतित पोस्ट्स डालने वालों ने अपने पड़ोसियों से कितनी नेटवर्किंग की और कितनी अपनी सुरक्षा की व्यवस्था की, यह भी खोज का विषय होगा
आज मोदी जी को दुबारा चुनना मजबूरी है ताकि विकल्प विकसित करने का अवसर मिले. मैं इस बात के लिए उनका समर्थन करता हूँ. बाकी उनके हटाने के लिए जो खड़े हैं, वो आप की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का क्या हाल करेंगे आप देख चुके होंगे. तो, बकबक करने की आज़ादी के लिए मोदी.
गुस्से को ठंडा कीजिये, कुछ रचनात्मक कीजिये. 2024 में विकल्प होना चाहिए, मोदी जी भी अमर नहीं हैं. और हाँ, अपना या भाजपा का आपकी पसंद का विकल्प खोजना मोदी जी की ज़िम्मेदारी नहीं है.
2019 अब आ गया, अब समय नहीं है. इतने समय में काँग्रेस और उसके साथी क्या क्या करेंगे कह नहीं सकते. और ऐसे ही उनको अरेस्ट भी नहीं किया जा सकता. इसलिए फिर एक बार मोदी.