सन 2004 के लोकसभा चुनाव का समय था. मुझे संगठन की ओर से जबलपुर लोकसभा के समन्वय का काम दिया गया था.
भाजपा से कौन प्रत्याशी होगा, इसकी जानकारी मुझे नहीं थी. और ना ही चिंता थी. वो मेरा विषय ही नहीं था.
प्रत्याशी घोषित हुए – राकेश सिंह. मेरा उनसे कोई ख़ास पुराना परिचय नहीं था. बस, वो एक बार गोविन्दाचार्य जी को लेकर घर पर आए थे.
चुनाव के समय ध्यान में आया, यह व्यक्ति अलग हैं. अलग पद्धति से सोचता हैं. खैर. चुनाव जीत गए. एक लाख से ज्यादा वोटों से जीते. मेरी भूमिका समाप्त हुई.
राजनीति मेरी तासीर में नहीं हैं. इसलिए राकेश जी से व्यापक संपर्क रखना आदि मेरे लिए संभव नहीं था. मैं अपने पुराने काम में लौट गया.
किन्तु हमारा संपर्क बना रहा. मैं राकेश जी को करीब से देखने लगा, और मेरा सुखद भ्रमनिरास हुआ.
राकेश जी राजनैतिक व्यक्ति जरूर हैं. लेकिन ‘टिपिकल राजनेता’ जैसे कदापि नहीं. अत्यंत सरल हैं. सहज हैं. सात्विक हैं.
बाकी आदतें तो दूर की बात, प्याज, लहसुन भी नहीं खाते. (विदेश दौरों में भी इस पर अडिग रहते हैं). अध्ययनशील हैं. ये सारे बातें, मुझे उनसे जोड़ती गईं, और हमारा संपर्क, मित्रता में बदल गया.
बाद के दोनों चुनावों में भी, संयोग से, मैं ही प्रभारी था. चुनाव और चुनावेतर अनेक कामों में, अभियानों में, मोर्चों में और आंदोलनों में, मैंने राकेश जी को निकट से देखा. पारदर्शिता, प्रामाणिकता और दबंगता का अद्भुत मिश्रण राकेश जी में मुझे दिखा. यह सब एक व्यक्ति में रहना, असंभव सा लगता हैं.
जबलपुर – गोंदिया ब्रॉडगेज के लिए जिस प्रकार से उन्होंने सतत मिशन समझकर काम किया, उसके परिणाम अब दिख रहे हैं. हल्ला बोल रैली, रेल महापंचायत, बैलगाड़ी मोर्चा, काले गुब्बारों से विरोध… आंदोलनों में भी ऐसा नवाचार जबलपुर ने पहली बार देखा था.
अक्सर हमारा मीडिया लिखता हैं, ‘जबलपुर में राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी हैं’. ऐसा क्यूं लिखा जाता हैं, मुझे नहीं मालूम. शायद आदतन होगा.
एक छोटा सा उदाहरण – जबलपुर को दी गयी एक रेल गाडी निकाल कर उसे इलाहाबाद मंडल को देने का रेल मंत्रालय ने निर्णय लिया. तब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे.
राकेश जी ने सभी प्रकार से, रेल मंत्रालय के सामने, जबलपुर से रेल गाड़ी ना छिनने के बारे में अपनी बात रखी. किन्तु फिर भी जब निर्णय नहीं बदल रहा, ऐसा दिखा, तो जबलपुर के रेलवे स्टेशन पर अभूतपूर्व आंदोलन किया.
आंदोलन हिंसक रहा. दमदारी के साथ राकेश जी ने उसकी जिम्मेवारी ली. नतीजा – रेल गाड़ी जबलपुर मंडल की पास ही रही, उलटे जबलपुर – मुंबई के लिए एक नई ट्रेन ‘गरीब रथ’ मिल गयी. ये थी राजनीतिक इच्छाशक्ति..!
उन राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी का रोना रोने वालों को मैं उदाहारण देता हूँ, महाराष्ट्र के सोलापुर का. पिछले कार्यकाल में वहां से सांसद थे, तत्कालीन गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे. सोलापुर ग्रामीण से सांसद थे, कृषिमंत्री शरद पवार.
दोनों के प्रयासों के बावजूद, सोलापुर जैसे बड़े शहर में आज भी हवाई सेवा नहीं हैं. और जबलपुर में..? राकेश जी के प्रयासों से जबलपुर आज देश के हवाई नक़्शे में महत्वपूर्ण स्थान बन गया हैं..! और फिर भी हम कहते रहेंगे, ‘हमारे यहां राजनैतिक इच्छाशक्ति नहीं हैं..?’
राकेश जी के पास एक विज़न हैं. आज से छह / सात वर्ष पूर्व, जब देश में पानी की समस्या पर इतना शोर नहीं था, तब राकेश जी ने मई की चिलचिलाती धूप में ‘जल रक्षा यात्रा’ निकाली थी. पूरे देश में किया गया वह अनूठा प्रयास था. जैविक खेती पर, आज से आठ वर्ष पूर्व की गयी विस्तृत कार्यशाला आज भी कई लोगों को स्मरण होगी.
जबलपुर के मुद्दे उनके लिए बेहद संवेदनशील होते हैं. फ्लाई ओवर के पीछे, पिछले ढाई साल से, वे जिस प्रकार से पड़े हैं, वह एक उपन्यास का विषय हो सकता हैं. केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के स्वीकृती देने के बाद, उसमें अनेक अड़चने थी. किन्तु नितिन जी से अनेकों बार संपर्क कर, सी एस आर की मद से फ्लाई ओवर की स्वीकृति उन्होंने प्राप्त की.
राकेश जी मूलतः संगठन के व्यक्ति हैं. संगठन की बारीकियां समझते हैं. ‘शुद्ध सात्विक प्रेम अपने कार्य का आधार हैं…’ यह उनकी मान्यता हैं. कार्यकर्ता उनके लिए ईश्वर समान हैं. कार्यकर्ताओं की खूब चिंता करते हैं.
एक जबरदस्त मेहनती, प्रामाणिक, सात्विक, अध्ययनशील और दमदार व्यक्ति मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बना हैं. भाजपा के लिए यह सुखद परिवर्तन हैं…! राकेश जी को आत्मीय, मंगलमय बधाई..!!