कठुआ रेप व मर्डर केस : 3, क्यों ज़रूरी है सीबीआई जांच

देश तोड़क, देश द्रोही अलगाववादियों और सेक्युलर कौमनष्टों को पता चला कि पीड़िता बक्करवाल गुर्जर है तो उनकी बाछें खिल गईं…

बक्करवाल गुर्जर की लड़की की लाश उनके एजेंडा में फिट बैठती है…

क्यों???

इसे जानने के लिए थोड़ा इतिहास में जाना पड़ेगा.

बक्करवाल गुर्जर असल मे वो मुसलमान हैं जिन्हें पुराने जमाने मे धोखे से हिन्दू से मुसलमान बना लिया गया था.

गुर्जर हमेशा से ही कृषक/ पशुपालक रहे हैं और अपने पशुओं के साथ जंगलों चरागाहों में विचरण करते सैकड़ों हज़ारों मील तक की यात्रा कर लेते हैं.

मुगल काल मे जब इन्हें ज़बरदस्ती या धोखे से मुसलमान बना लिया गया और हिंदुओं ने इन्हें वापस अपने धर्म मे लेने से मना कर दिया तो इन्होंने उस ज़माने में विरोध के तौर पर अपनी दाढ़ी को मेहंदी लगा के लाल रंग से रंगना शुरू कर दिया…

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इस समुदाय की एक अन्य खासियत ये है कि ये कभी भी मुसलमानों वाली जालीदार तुर्की टोपी नहीं पहनते बल्कि अपनी सदियों पुरानी पारंपरिक पगड़ी ही बांधते हैं.

जब इन्हें ज़बरदस्ती/ धोखे से मुसलमान बना लिया गया और हिंदुओं ने इन्हें अपने धर्म मे वापस लेने से मना कर दिया, तो इन्होंने विरोध स्वरूप गांव ज़मीन कृषि छोड़ दी और अपने पशुओं के साथ चले गए और तब से आज तक घुमंतू जीवन ही जीते हैं…

इनके पशु आमतौर पर गाय, भैंस, भेड़, बकरियां और घोड़े खच्चर होते हैं…

पंजाब में ये ज़्यादातर भैंसें पालते हैं, राजस्थान में गाय भैंस, और कश्मीर में भेड़ें… चूंकि ये घुमंतू होते हैं इसलिए इन्हें देख के इनकी आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता…

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एक बार मैं अपने एक मित्र के साथ श्रीनगर से सोनमर्ग जा रहा था. रास्ते मे एक बक्करवाल गुर्जर परिवार अपनी भेड़ों का रेवड़ लिये जा रहा था…

मित्र ने मुझसे कहा… इस बक्करवाल की शक्लो सूरत देखो… क्या हैसियत होगी?

मैंने गाड़ी रुकवाई और सरसरी तौर पर उसके रेवड़ की भेड़ों की संख्या का अंदाज़ा लगाया… उसमें 400 से ज़्यादा भेंड़ थी…

एक बड़े नर भेंड़ में 40 से 50 किलोग्राम वज़न होता है और उन दिनों कश्मीर में मटन 450 रुपे प्रति किलोग्राम था…

अब आप एक भेड़ का और 400 भेड़ के रेवड़ की कीमत का अंदाज़ा स्वयं लगा लीजिये. फिर मुझे ये भी बताया गया कि एक-एक बक्करवाल के पास 3 या 4 रेवड़ भी हो सकते हैं.

इनकी शक्लो सूरत पर मत जाइए… कश्मीर के बक्करवाल गूजर करोड़ों पति होते हैं.

***

कश्मीरी अलगाववादियों के आंख में ये समुदाय हमेशा खटकता है क्योंकि ये कभी भी कट्टर Radical मुसलमान नहीं बने.

इनका रहन-सहन, खान-पान आज भी हिंदुओं जैसा है, इनकी हज़ारों रिश्तेदारियां आज भी हिंदुओं में है. इसके अलावा ये कभी भी पाकिस्तान परस्त नही हुए, हमेशा Pro India, Pro हिन्दू, राष्ट्रवादी ही रहे.

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठिये मुजाहिदीन के भेस में चोटियों पर बैठे थे.

आम कश्मीरी मुसलमान, आतंकी मुजाहिदीन को देख के बिरयानी परोस देता है पर जब बक्करवाल ने कारगिल की चोटियों पर मुजाहिदीन देखे तो वो समझ गए कि ये तो पाकिस्तानी सेना है, और इसकी सूचना उन्होंने तुरंत भारतीय सेना को दी.

इसके अलावा सबसे बड़ा तथ्य ये है कि आज कश्मीर का ये बक्करवाल गूजर समाज भारतीय सेना और खुफिया विभाग का सबसे बड़ा मुखबिर informer है.

ये आज कश्मीर में भारत सरकार और भारतीय सेना के आंख कान बने हुए हैं. अलगाववादी इस तथ्य को जानते हुए भी लाचार हैं और इस (बक्करवाल) समस्या का कोई हल इनके पास नहीं है.

इनको रिझाने और अपने मे मिलाने के लिये इधर जम्मू-कश्मीर सरकार ने कुछ योजनाएं निकाली हैं. उनमें प्रमुख ये है कि इनको जम्मू क्षेत्र में स्थायी बसा दिया जाए.

इसके लिए कश्मीर की Ministry of Tribal Affairs ने एक आदेश निकाला कि किसी भी सरकारी ज़मीन पर यदि बक्करवाल गूजर समाज के लोग बैठे हों/ काबिज हों तो उन्हें वहां से न हटाया/ बेदखल किया जाए.

इसकी आड़ में बक्करवाल समाज पिछले कुछ समय से जम्मू रीजन में सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रहा था.

इसके अलावा कश्मीरियों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से रोहंगिया मुसलमानों को भी जम्मू रीजन में बसा के इस हिन्दू बहुल क्षेत्र की demography बदलने की साज़िश चल रही है जिसका आमतौर पर हिन्दू जनसंख्या में विरोध/ आक्रोश है.

मुसलमानों और अलगाववादियों द्वारा बक्करवालों को हिन्दू समाज के खिलाफ भड़का कर अपनी तरफ मिलाने का प्रयास लंबे समय से चल रहा है.

इसीलिये इस कठुआ कांड को वहां का वकील समुदाय शक़ की निगाह से देख रहा है और जिस तरीके से इस केस को क़ानून और व्यवस्था की समस्या नहीं बल्कि हिन्दू मुस्लिम समस्या बनाया गया और पूरे देश की सेक्यूलर बिरादरी और प्रेस इसमें हिन्दू bashing कर रही है, इसमें घटना स्थल जिस प्रकार देवी स्थानम दिखाया जा रहा है उसे देख के इस पूरे कांड में साज़िश की बू आती है.

इन सभी रहस्यों से पर्दा सिर्फ CBI जांच ही उठा सकती है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि 8 साल की मासूम आसिफा अलगाववादियों और पाकिस्तानियों की किसी गहरी साज़िश का शिकार हो गयी???

CBI जांच ज़रूरी है.

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