सौ से ज़्यादा बच्चियों के बलात्कारी ‘चिश्ती’ के नाम पर क्या घिग्घी बंध गई थी सेक्यूलरों!

जब से कांग्रेस-वामी गैंग ने अपने मीडियाई दल्लों के जरिये हिन्दुओं, और उसी परिप्रेक्ष्य में मोदी सरकार को बदनाम करने के लिये, आसिफा के तथाकथित बलात्कार और हत्या को हिंदुत्व के विरुद्ध घृणा फैलाने के एक नए प्रतीक के रूप में खड़ा किया है…

तब से हिन्दुओं से अपनी घृणा को सेक्युलरता में छुपाने वाले, अपने को लिबरल बताने वाले, बड़ी बिंदी के पीछे भारतीय संस्कृति को डुबाने वाले, नारीवाद की राजनीती करने वाले, अंग्रेज़ी कॉन्वेंट में पढ़ मॉडर्न बनने वाले और दिमागी तौर से दिवालिये अपने को बुद्धिजीवी दिखाने के लिये ‘I Am Hindustan’ की तख्ती टांगे घूम रहे हैं.

यह जो वर्ग तख्ती गले मे टांगे आसिफा की लाश को बेच रहा है, वह भारत और हिन्दुओं का जहां सबसे बड़ा शत्रु है, वहीं वह नैसर्गिक रूप से एक धिम्मी हिन्दू है और कल को धर्मांतरण कर मक्का को सज़दा और ईसा का क्रॉस चूमने वाला है. ये सब नरपिशाच हैं जो अपनी आत्मा बेच चुके हैं.

[सौ बलात्कारों के लिए दस साल की सज़ा काफी है न!]

यह जो आज घृणा फैला रहे हैं वो तब कहाँ थे, जब ‘सुहैल ग़नी चिश्ती’ ने 15 फरवरी 2018 को अजमेर की अदालत में 26 वर्ष बाद आत्मसमर्पण किया था?

क्या इन निकृष्ट लोगों ने तब भारत की जनता को बताया था कि यह चिश्ती 26 वर्ष तक किस केस से भागा हुआ था और उसका क्या अपराध था?

तब क्या रवीश, अर्नब अभिसार, प्रसून को नहीं मालूम था कि वह कौन है? क्या तब बड़ी बिंदी गैंग, नारीवाद की नेत्रियों और बॉलीवुड के फ़र्ज़ी बुद्धिजीवियों को नहीं मालूम था कि वह क्या है?

ऐसा नही है. इन सबको सब कुछ मालूम था लेकिन ‘अजमेर सीरियल बलात्कार और ब्लैकमेल’ की घटना को भारत की जनता से यह सब छुपा लेना चाहते थे.

28 – 29 वर्ष पूर्व अजमेर में 100 से ज्यादा छात्राओं और बच्चियों के साथ हुये बलात्कार और ब्लैकमेल की घटना को भारत की याददाश्त से हटा देना चाहते थे.

और यह इस लिये क्योंकि वो लड़कियां हिन्दू थीं और उनको बलात्कार करने वाले सभी न सिर्फ मुसलमान थे बल्कि उनमें से ज्यादातर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह की देखरेख करने वाले प्रभावशाली खादिम परिवार के थे, जो ख्वाजा के शुरू के अनुयायियों के वंशज हैं.

अजमेर का यह काला भयावह सच अप्रैल 1992 को पहली बार तब सामने आया जब एक स्थानीय पत्रकार दीपक गुप्ता ने कई लड़कियों की आपत्तिजनक नग्न, अर्धनग्न फोटो छापी और बताया कि अजमेर की स्कूल जाती बच्चियों से अजमेर के प्रभावशाली लोगों द्वारा पिछले वर्षों से बलात्कार किया जा रहा है और फिर उनकी नग्न फोटो खींच कर उन्हें अपनी सहेलियों और स्कूल की सहपाठिनियों को उनके फार्महाउस और घरों में लाने के लिये ब्लैकमेल किया जाता है.

इस रिपोर्ट के आधार पर 8 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी, बाद में जांच के उपरांत पुलिस ने कुल 18 लोग अभियुक्त बनाये था. यह सभी मुसलमान थे और उनमें ज्यादातर ख़्वाजा चिश्ती की दरगाह की व्यवस्था देखने वाले प्रभावशाली खादिम परिवार के लोग थे.

पुलिस ने अपनी जांच में कहा था कि यह लोग लड़कियों को, जिनमें ज्यादातर स्थानीय स्कूल की हिन्दू छात्राएं थी, उठा ले जाकर बलात्कार करते थे, फिर उनकी आपत्तिजनक हालत में फोटो खींच कर उनकी सहेलियों और स्कूल की सहपाठियों को को बुलाने के लिये ब्लैकमेल करते थे.

इस तरह से बलात्कार व ब्लैकमेल की चेन बन गई, जिसमें 100 के करीब स्थानीय लड़कियां थीं. पुलिस ने शुरू में तेज़ी दिखाई लेकिन मामला खादिम परिवार का था जिसको कांग्रेस के नेताओं का समर्थन मिला हुआ था और उसके स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के सहयोग से ही यह बलात्कार और ब्लैकमेल का रैकेट चल रहा था.

यह 28 साल से चल रहा मुकदमा अभी खत्म नहीं हुआ है. अदालतों ने इतना समय ले लिया कि कम से कम 6 लड़कियां आत्महत्या कर चुकी हैं और कई अन्य, समाज और स्थानीय पत्रकारों और अखबारों के ब्लैकमेल से परेशान होकर गवाह के तौर पर पलट गई.

इस पूरे दौर में आसिफा पर रोने वालों में से किसी ने भी #JusticeForAjmerGirls की कोई भी बात नहीं की और न ही कैंडल मार्च निकाला है.

जो 18 अभियुक्त थे उनमें से एक ने आत्महत्या कर ली थी और एक फारूक चिश्ती जो कि युवा कांग्रेस का नेता था उसको पागल करार दे दिया गया.

1998 में अजमेर की सेशन कोर्ट ने 8 लोगों को आजीवन कारावास दिया, राजस्थान हाइकोर्ट ने उनमें से 4 लोगों को छोड़ दिया. फिर 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बचे 4 मोइजुल्लाह, इशरत अली, अनवर चिश्ती और शमसुद्दीन की सजा, आजीवन कैद से घटा कर 10 साल कर दी थी.

इस वक्त 6 लोगों पर अभी भी मुकदमा अदालत में लंबित है और अब सुहैल चिश्ती के आत्मसमर्पण के बाद एक अभियुक्त अलमास, अभी भी कानून की गिरफ्त से बाहर है.

आज की तारीख में सलीम चिश्ती, जिसने 2012 को आत्मसमर्पण किया था और सुहैल जिसने इस साल आत्मसमर्पण किया है, ही जेल में बंद हैं और बाकी अभियुक्तों को अदालतों ने बेल दे रक्खी है और वे आज़ाद घूम रहे हैं.

मेरे लिये यह सब लिखना निश्चित रूप से पुराने घावों को कुरेदना है लेकिन इसकी ज़रूरत थी क्योंकि आसिफा की लाश पर घड़ियाली आंसू बहाने वाला, वह वर्ग जो सेक्युलरता की आड़ में हिन्दुओं के प्रति अपनी घृणा को छुपाता है, अपने आप को लिबरल कहता है, बड़ी बिंदी लगा कर नारियों के सम्मान की झूठी बात करता है, नारी सशक्तिकरण के नाम पर भारतीय संस्कृति को तार तार करता है, मैकाले की शिक्षा व नन-फादर के शिक्षातन्त्र से अपने को मॉर्डन कहता है और जो ग्लैमर की दुनिया में नित्य नये बिस्तर बदल कर बुद्धिजीवी बनता है, वो इस पर कभी भी कुछ नहीं कहेगा.

जानते हैं क्यों नहीं कहेगा/ लिखेगा? क्योंकि उनके भाईजान-अब्बाजान अभियुक्त थे और उनके बलात्कार और ब्लैकमेल की शिकार हिन्दू लड़कियां हुई थी.

अजमेर की लड़कियों का बलात्कार सिर्फ उन 18 मुसलमानों ने ही नहीं किया था. उनका बलात्कार स्थानीय ब्लैकमेलर पत्रकारों, कांग्रेसी नेताओं, अदालतों, वामपंथ की सड़ांध से पैदा हुये दिल्ली के मीडिया, नारीवाद की दुहाई देने वाली औरतों, लिबरल बुद्धिजीवी और मॉर्डन बने अंग्रेजी में गिटपिट करने वाले वर्ग ने किया है.

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