अच्छा, एक बात बताएं…
ऐसा कितनी बार हो चुका है कि आपने कोई खबर सुनी देखी है मीडिया पर, तीन दिन हल्ला हंगामा हुआ है, आपने नथुने फुलाये हैं, गर्म साँसें छोड़ी हैं, पसीने से भीगे, मुट्ठी भींचे दनादन अपना आक्रोश और क्षोभ व्यक्त करने वाले स्टेटस डाले हैं…
और तीन दिन बाद पता चला है कि खबर फर्जी या तोड़ी-मरोड़ी थी…
तब जिस मीडिया की खबर से आप इतने उत्तेजित हो रहे थे, वह कभी यह बताने नहीं आता कि उसकी पिछली खबर फ़र्ज़ी थी…
आप सोशल मीडिया पर उसी न्यूज़ चैनल के प्रेस्टिट्यूट्स को गालियाँ निकाल रहे होते हैं, उधर वे न्यूज़ चैनल अगले विषवमन के लिए जहर जमा कर रहे होते हैं.
हमने सोशल मीडिया को न्यूज़ चैनल का विकल्प माना था. आज वह एडवांटेज हम खो चुके हैं. आज सोशल मीडिया भी मेन स्ट्रीम मीडिया के हाथ में खिलौना बन चुकी है.
वे एक झूठ निकाल कर मार्केट में छोड़ते हैं, हम उसे ‘आग की तरह फैला दो’ के नारे के साथ फॉरवर्ड करने लगते हैं.
उन्होंने पकड़ लिया है कि कौन सी नब्ज दबानी है. रेप की खबर निकालो, महिलाएँ उद्वेलित होंगी… सभी उद्वेलित होते हैं, पर उनका टारगेट महिलाओं को विशेष रूप से आक्रोशित करना होगा.
उसमें से दलित के रेप की खबर चलाओ… दलित अलग से आक्रोशित होंगे… और आपने एक पैटर्न नोटिस किया होगा… अब वे मुस्लिम के साथ अत्याचार की खबर नहीं चलाते. उसे हमेशा दलित के साथ अत्याचार की खबर के साथ मार्किट में छोड़ते हैं.
अगर तत्काल कोई ऐसी खबर नहीं मिलती तो इंतज़ार करते हैं. नहीं तो खबर प्रायोजित करते हैं. खोजते हैं जो जाकर ऐसा कुछ करे. नहीं मिले तो निर्मित करते हैं…
पर उद्देश्य है दलित और मुस्लिम को एक साथ पीड़ित की भूमिका में दिखाना… और अन्य हिंदुओं को अत्याचारी की तरह चिन्हित करना.
और किसी तरह के अपराध, अन्याय, अत्याचार में उन्हें कोई रुचि नहीं है जो उनके इस समीकरण के काम ना आये.
और इसमें सोशल मीडिया का उत्साह उनके काम को आसान ही करता है… उन्हें लाखों एम्पलीफायर और लाउडस्पीकर देता है.