पिछले दिनों जब कि हिजड़ों नचनियों भाण्डों को पूजने वाला देश भारत जब अपने फ़र्ज़ी फिल्मी टाइगर के ग़म में ग़मज़दा ज़ार ज़ार आंसू बहा रहा था…
और जब कि देश की सभी प्रेश्याएँ presstitutes ये देखने मे व्यस्त थीं कि फ़र्ज़ी फिल्मी टाइगर ज़िंदा है या मर गया…
उधर बंगलुरू में एक असली… सचमुच का टाइगर… कारगिल का हीरो… तोलोलिंग की पहाड़ियों का शेर… कर्नल एम बी रविन्द्रनाथ हमारे बीच नहीं रहा…
पाकिस्तान की एलएमजी की गोलियां जिसका बाल बांका न कर सकीं उन एम बी रविन्द्रनाथ का पिछले सप्ताह हृदयाघात के बाद निधन हो गया.
एम बी रविन्द्रनाथ की कहानी उस दिन शुरू हुई जब कि मई 1999 के आखिरी हफ्ते में द्रास आर्टिलरी ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर लखिन्दर सिंह ने उन्हें वायरलेस पर मैसेज भेजा… Ravindra where are you? I want you here on the Tololing Top…
Yes Sir…
उधर कारगिल में पिछले दो हफ्ते से नागा, गढ़वाल और 18 ग्रेनेडियर्स तोलोलिंग की पहाड़ियों को जीतने का असफल प्रयास कर रही थीं…
कारगिल युद्ध को विश्व सैन्य इतिहास का सबसे भीषण युद्ध माना जाता है क्योंकि इसमें दो सेनाएं आमने सामने नहीं बल्कि ऊपर नीचे थीं.
पाकिस्तानी जहां ऊपर RCC के Fortified Bunkers में जमे हुए थे वहीं भारतीय सैनिक नंगे पहाड़ पर, -5 से -11° की ठंड में, 5000 मीटर से ज़्यादा की ऊंचाई पर रस्सियों के सहारे नीचे से ऊपर चढ़ रहे थे…
वो भी रात के अंधेरे में क्योंकि उस पहाड़ पर कहीं छुपने की कोई जगह न थी… और पाकिस्तानी ऊपर बैठे सब कुछ देख रहे थे… ऐसे में भारतीय सेना रात के अंधेरे में पर्वतारोहण करके हथियारों और गोला-बारूद के साथ ऊपर चढ़ रही थी…
मुकाबला इतना uneven था, इतना असमान था कि पाकिस्तानी सेना को तो अपना गोलाबारूद भी खर्च नहीं करना पड़ रहा था… वो तो सिर्फ ऊपर से पत्थर लुढ़का देते थे और भारतीय सैनिक मारे जाते थे…
नागा, गढ़वाल और 18 ग्रेनेडियर्स 3 हफ्ते से लड़ रही थीं पर सफलता नहीं मिली थी… ऐसे में ब्रिगेडियर लखिन्दर सिंह ने 2 राजपुताना राइफल्स को बुलाया…
राजपुताना राइफल्स उन दिनों कुपवाड़ा में insurgency duty कर रही थी और युद्ध के लिए प्रशिक्षित और तैयार नहीं थी… उन्हें कहा गया कि 14 दिन कारगिल के आसपास की पहाड़ियों पर चढ़ने लड़ने की ट्रेनिंग करें और ऊंचाई के लिए खुद को ढालें…
उधर 2 जून की रात 18 ग्रेनेडियर्स ने तोलोलिंग पर कब्ज़े का एक और प्रयास किया जिसमें उनके 2ic लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन और उनकी पूरी प्लाटून की शहादत हुई…
तब अंततः ब्रिगेडियर लखिन्दर सिंह ने 2 राजपुताना राइफल्स को युद्ध क्षेत्र में उतारा… योजना बनी कि पैदल टुकड़ी की चढ़ाई से पहले तोलोलिंग की पहाड़ियों पर 155mm बोफ़ोर्स तोपों से बमबारी कर कवर दिया जाए.
बोफ़ोर्स की बमबारी के कारण पाकिस्तानियों को बंकर में दुबक के बैठना पड़ेगा और इधर मौका पा के हमारे सैनिक चढ़ जाएंगे.
7 जून तक कुल बोफ़ोर्स की 155mm और 130mm की 120 तोपें वहां तैनात हो गयी थीं.
तय हुआ कि 12 जून की रात हमला होगा… कमांडिंग ऑफिसर थे कर्नल एम बी रविन्द्रनाथ… उन्होंने 7 जून की शाम roll call ली…
12 जून…. कौन जाएगा…
मेजर विवेक गुप्ता ने कहा मैं जाऊंगा…
और साथ में कौन कौन जाएगा…
कुल 90 जांबाज़ छांटे गए… ब्रिगेडियर लखिन्दर सिंह ने पूछा… इसमें से तोमर कितने हैं?
उन 90 में से 11 तोमर थे…
अब आप सोच रहे होंगे कि ये तोमर का क्या चक्कर है… राजपूताना राइफल्स का एक इतिहास है… इसमे पीढ़ी दर पीढ़ी योद्धा भर्ती होते हैं … बाकायदे खानदानी भर्ती होती है…
आज भी इस रेजिमेंट में 5वीं और 6वीं पीढ़ी सैनिक हैं… मने ऐसे लड़ाके जिनका परदादा का भी पिता इसी रेजिमेंट में लड़ा था…
यूं समझिए कि इस रेजिमेंट में एक तोमर कबीला है… तोमरों का नारा है… Do or Die… कोई तोमर कभी लड़ाई हार के ज़िंदा नहीं लौटा…
ब्रिगेडियर ने पूछा, तोमर कितने हैं?
11 हुज़ूर…
तभी सूबेदार भंवर सिंह तोमर ने ललकारा… 11 तोमर तो बहुत होते हैं जी…
उन 11 में एक था 23 वर्षीय परमवीर सिंह तोमर और एक था हवलदार यशवीर सिंह तोमर…
अंततः 12 जून की शाम सब एकत्र हुए… सूबेदार भंवर सिंह ने कर्नल एम बी रविन्द्रनाथ से कहा… कल सुबह टॉप पे मिलते हैं सर…
12 जून शाम 6:30 बजे… 120 बोफ़ोर्स तोपें एक साथ गरजने लगीं… और उस रात फिर जो युद्ध हुआ उसे विश्व सैन्य इतिहास का सबसे भीषण युद्ध माना जाता है…
क्रमश:…