पाकिस्तान तो तबाही की कगार पर, अब विदेश व रक्षा नीति के केंद्र में चीन

आप जब किसी राष्ट्र की विदेश नीति और उसकी रक्षा व सुरक्षा नीति पर नज़र रखते हैं तो कुछ मौके ऐसे आते हैं जब उसको लेकर किया गया आपका आंकलन पूरी तरह गलत साबित हो जाता है.

यहाँ मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि 2014 के बाद से पाकिस्तान को लेकर मोदी सरकार की विदेश और रक्षा व सुरक्षा नीति में, जिन परिणामों को प्राप्त करने के लिए रणनीति बनाई थी, उस के कुछ महत्वपूर्ण तत्वों को पढ़ने में मैंने भूल की है.

इस भूल का सबसे बड़ा कारण यह था कि जिस तरह से पाकिस्तान की पूरी राष्ट्रीय रक्षा नीति भारत को केन्द्रवत रख कर बनती रही है, उसी तरह भारत की भी रक्षा व सुरक्षा नीति पाकिस्तान केन्द्रित बनती रही हैं.

भारत ने 2014 तक कश्मीर की घाटी और भारत के अंदर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिये, भारतीय सेना को अपना मूलाधार बनाया हुआ था.

इसी मानसिकता के कारण, भारतीय सेना का पठानकोट और उरी पर हुए आतंकवादी हमलों और पाकिस्तान समर्थित हुर्रियत द्वारा घाटी में अराजकता फ़ैलाने के बाद भी भारत द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध सीमा पार कोई कार्यवाही नहीं किये जाने पर जहां विपक्ष, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की चुटकी लेता रहा है वहीं उग्र राष्ट्रवादियों का व्यक्तिगत रोष भी सामने आया है.

इसी आधार पर लोगों ने यह धारणा भी बना ली है कि भारत की वर्तमान सरकार, पाकिस्तान के विरुद्ध, आक्रामकता दिखाने में विफल रही है और पिछले 2 वर्षो में कई मौकों के बाद पाकिस्तान से युद्ध न कर के, मोदी जी की सरकार ने भीरुता और अकर्मण्यता का परिचय दिया है.

उस वक्त जब पूरा भारत और राष्ट्रवादियों का यह समूह युद्ध उन्माद में था तब भी मैं यही कहता था कि मोदी जी कुछ भी ऐसा नहीं करेंगे और जो होना भी होगा वह उनके काल के चौथे व पांचवे वर्ष में ही होगा.

वह तब तक वह वैश्विक कूटनीति कर के अपने मोहरे बिछायेंगे और विश्व की शक्तियों को धंधे व सामरिक संधियों से बांध कर पाकिस्तान को अलग थलग कर देंगे ताकि जब वो पाकिस्तान पर आक्रमकता दिखाये तब चीन के अलावा कोई भी वैश्विक शक्ति, भारत को न रोके और न ही पाकिस्तान के प्रत्यक्ष समर्थन में खड़ी दिखाई दे.

आज जब मैं पिछले एक वर्ष की घटनाओं को देखता हूँ तो जिन परिणामों को प्राप्त करने के लिये भारत की विदेश और रक्षा व सुरक्षा नीति में रणनीति का प्रयोग किया है वह बिल्कुल अलग दृष्टि देती हैं.

मैं आज यह विश्वास से कह सकता हूँ कि भारत की विदेश और रक्षा व सुरक्षा नीति में मई 2014 से ही मूलभूत परिवर्तन हो चुका था. आज यह स्पष्ट है कि भारत की नीतियों में पाकिस्तान का कोई स्थान नही है.

आज, भारत का पूरा फोकस चीन पर है और उसी के दृष्टिगत उसने पाकिस्तान को नेपथ्य में ढकेल दिया है. आज भारत जो भी सैन्य सशक्तिकरण कर रहा है वो चीन को संभालने के लिये कर रहा है.

मुझे अब यह लगता है कि पाकिस्तान को छिन्न भिन्न करने के लिये, मोदी जी ने युद्ध के चयन को अपनी रणनीति से बाहर रखा हुआ है.

उनके भाषणों और वक्तव्यों से यही आभास मिलता रहा है कि वो पाकिस्तान को सबक सिखायेंगे और बलूचिस्तान को पाकिस्तान से अलग कर देंगे. उनके तेवर देख कर लोगों को यही लगता था क्योंकि यह सिर्फ युद्ध से ही संभव है, इसलिये पाकिस्तान से युद्ध निश्चित ही होगा. लेकिन मोदी जी ने पाकिस्तान से सीधे आर पार का युद्ध कर के विजय प्राप्त करने वाला विकल्प त्याग दिया है.

आज जब भारत आर्थिक प्रगति की राह पर है और 2030 में विश्व की पांचवी व 2050 में तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने का इरादा रखता है तब पाकिस्तान की सीमा पर आज पूर्ण विजय के लिये किया गया युद्ध उसको 5 वर्ष पीछे धकेल देगा, जिसके लिये, आज की सरकार बिल्कुल भी तैयार नहीं है.

युद्ध के विकल्प में मोदी जी की सरकार ने पाकिस्तान को आर्थिक रूप से अपंग व राजनैतिक रूप से पृथक कर के उसको छिन्न भिन्न करने की रणनीति पर काम किया है.

इसके लिये उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध विश्व में प्रचार, उसकी रीजनल उपेक्षा, बाहर से पाकिस्तान को आने वाले आर्थिक स्रोतों का परोक्ष रूप से दमन व आंतरिक आर्थिक अवस्थाओं को अवरुद्ध करने के लिये काम किया है. जिसे आज के युग मे 4th और 5th जेनेरेशन का युद्ध कहा जाता है, जिसमें राष्ट्र का आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना पहली शर्त होती है.

इस रणनीति के तहत पिछले 3-4 वर्षो में किये गये काम का परिणाम सामने आने लगा है. पिछले दो वर्षों से एलओसी पर लगातार गोलीबारी व जान माल के नुकसान ने पाकिस्तान की सीमा की सुरक्षा की लागत इतनी बढा दी है कि आज उसका असर उसकी आर्थिक हालात पर पड़ने लगा है. अभी तक आधिकारिक रूप से पाकिस्तान की सरकार 1600 लोगो के भारतीय सेना द्वारा मारे जाने को स्वीकार कर चुकी है.

भारत आज पाकिस्तान को आतंकवाद का शरणस्थल सिद्ध करने में भी सफल हो चुका है और एफएटीएफ उसको जून 2018 में ब्लैक लिस्ट में डाल देगा, जो उसकी आज की आर्थिक स्थिति में उसके एक्सपोर्ट के लिए घातक होगा.

आज पाकिस्तान 100 बिलयन डॉलर के कर्ज में है और उसका फॉरेन एक्सचेंज रिज़र्व 12 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है जो 2% की दर से हर हफ्ते गिरता जा रहा है. रिज़र्व में यह कमी सीधे तौर पर मिडिल ईस्ट में काम कर रहे पाकिस्तानियों की छटनी और एक्सपोर्ट में गिरावट है.

यह छटनी पाकिस्तानियों को सऊदी अरेबिया, कतर, ओमान व यूएई से वर्क परमिट कम मिलने के कारण है. यहां इन देशों में भारत ने अपने लोगों को भेज कर उस कमी को पूरा किया है. यह विशुद्ध रूप से मिडिल ईस्ट में भारतीय कूटनीति की सफलता है.

आर्थिक रूप से हर तरफ से घिरे हुये पाकिस्तान के लिये 20 मार्च 2018 को एक बुरी खबर लगी है जब कि पाकिस्तानी रुपये का डॉलर के सापेक्ष कोर्स करेक्शन किया गया था.

20 मॉर्च 2018 तक जो डॉलर 110 रुपये पाकिस्तानी के बराबर था, वह 21 मॉर्च को 5 रुपये बढ़ कर 115 रुपये हो गया है जिससे पाकिस्तान के एक्सटर्नल डेब्ट के साथ इम्पोर्ट जिसमें पेट्रोल, मशीनरी, केमिकल, खाने का तेल, कार, चाय, गेंहू, फर्टिलाइजर, प्लास्टिक व फार्मास्यूटिकल उत्पाद शामिल हैं, जिनकी पाकिस्तान की जनता की रोजाना की ज़िंदगी में खपत है, वह एक झटके में महंगे हो गये है.

पाकिस्तान में जो आर्थिक संकट का दौर और दिवालिया होने की स्थिति आयी है, उसमें आगे शायद वर्ल्ड बैंक और अमेरिका अपनी शर्ते मनवाकर पाकिस्तान को मरने नही देंगे लेकिन भारत 2016 से जिस को लेकर तैयारी कर रहा था, वह आज पाकिस्तान के लिये एक भयानक सत्य बन कर सामने आ गया है.

जब से नरेंद्र मोदी सरकार आयी, वह कई बार रिवर लिंकेज प्रोजेक्ट और साथ में भारत पाकिस्तान के बीच 1960 में हुयी ‘इंडस वाटर ट्रीटी’ को लेकर इशारा करते रहे है. यहां भारत के लोगों को तो यह शायद कम ही समझ में आया था लेकिन पाकिस्तान में लोगों को 2016 से थोड़ा थोड़ा समझ में आ गया था.

और 2017 में तो पूरा समझ में आ गया जब उरी पर आतंकवादी हमले के बाद मोदी जी के पाकिस्तान के शासकों की तरफ इशारा करते हुये कहा था कि ‘खून और पानी, दोनों एक साथ नहीं बह सकते हैं’ और पाकिस्तान को धमकी दी थी कि भारत पाकिस्तान को बून्द-बून्द के लिये तरसा देगा.

जिनको उस वक्त यह मोदी जी का बड़बोलापन लग रहा था, वही आज पानी के लिये युद्ध से लेकर 2025 तक सिंध व बलावल की जमीन बंजर होने के ख़ौफ़ के साये में जी रहे हैं.

1960 में हुई यह ‘इंडस वाटर ट्रीटी’ दरअसल वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐसी सन्धि है जिसमें इंडस यानी सिंधु नदी प्रणाली की उन 6 नदियों का बंटवारा था जो तिब्बत के पलटू से निकल भारत होते हुये पाकिस्तान में जाती है.

सन्धि में अनुसार पूर्वी हिस्से की तीन नदियों रावि, व्यास और सतलज नदी और उसके जल पर पूर्ण नियंत्रण भारत का है और पश्चिम की तीन नदियों इंडस (सिंधु), चेनाब और झेलम के पानी पर पाकिस्तान का नियंत्रण है.

इसमें एक दिक्कत यह थी कि पाकिस्तान को 136 MAF (मीन एवरेज फ्लो) का पानी मिल रहा था और भारत को उससे बहुत कम 33 MAF पानी, इसलिये यह तय हुआ कि पाकिस्तान के नियंत्रण में आने वाली नदियों सिंधु, चेनाब और झेलम का 20% पानी सिंचाई, बिजली बनाने और जलमार्ग के लिए उपयोग करने को मिलेगा.

यह ट्रीटी इतनी मज़बूत मानी जाती है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होने के बाद भी इसपर कोई असर नही पड़ा है लेकिन मामला गर्मा गया और उसका कारण यह है कि पहले तो भारत ने अपने हिस्से में आई नदियों पर तेजी से बांध बना कर पाकिस्तान को जाते पानी को लगभग रोक दिया है और जो जा रहा है उसका फ्लो इतना कम है जो पाकिस्तान की सिंधु नदी के बेसिन को कमजोर कर रहा है.

भारत का इरादा अपने हिस्से के 100% पानी को सिंचाई के लिये उपयोग में लाना है. जो पाकिस्तान के लिये बुरी खबर है क्योंकि कालांतर में पाकिस्तान की कृषि भूमि जहां बंजर होगी वही पर सिंधु नदी में पानी की आवक कम होने के कारण समुद्र का खारा पानी ऊपर चढ़ आयेगा और अच्छी जमीन को कृषि के लिये अनुपयोगी बना देगा.

यही नहीं, भारत ने पाकिस्तान के नियंत्रण की सिंधु, चेनाब और झेलम नदी के अपने हिस्से के पूरे 20% पानी का उपयोग करने का निर्णय किया है. अभी तक भारत सिर्फ लगभग 8% पानी का उपयोग करता रहा है और शेष 12% पिछले 58 वर्षों से पाकिस्तान जाता रहा है.

मामला सिर्फ इतना ही नहीं है, भारत ने इससे आगे जाकर सिंधु, चेनाब, झेलम और रावि नदी को ‘राष्ट्रीय जलमार्ग’ घोषित कर दिया जो जल द्वारा ट्रांसपोर्ट और टूरिज्म को बढ़ावा देगा. इसमें नदियों के पानी को पूरा तो रोका नहीं, पर जगह जगह रोका जायेगा, जिससे उसका प्रवाह मंद हो जायेगा जो पाकिस्तान स्थित सिंधु नदी प्रणाली को कमजोर करेगा.

यह मोदी सरकार का एक महत्वाकांक्षी मास्टरस्ट्रोक है, जो जहां पाकिस्तान के कृषि उद्योग के लिये घातक होगा, वही उसके आंतरिक आर्थिक विकास के स्रोतों को एक दशक में ही तोड़ कर रख देगा.

यहां यह भी बताना महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान को भारत से बर्बाद होते आ रहे पानी की इतनी आदत लग चुकी थी कि उसने 1976 से कोई भी बड़ा बांध नहीं बनाया है और मोदी जी ने पाकिस्तान की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर इंडस रिवर ट्रीटी से मिले अपने हक को पूरा लेने के लिये सारी परियोजनाओं पर युद्धस्तर पर काम करना शुरू कर दिया है.

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