1- हम बीस साल तक कोर्ट आए, कभी नागा नहीं किया.
एक व्यक्ति हाईकोर्ट में पैंतीस साल से आता है. बिना नागा आता है. सिटी बस से पसीना पोंछते हुए आता है. सुनवाई से पहले कोर्ट की सख्त ठंडी लकड़ी की बेंच पर बैठता है. तारीख बढ़वाने के लिए तीन घंटे कतार में लगा रहता है.
आप बीस साल तक कोर्ट आए तो महान कार्य कर लिए! इस हिसाब से क्या उस वृद्ध को राष्ट्रपति पुरस्कार नहीं देना चाहिए, जो बरसों से न्याय के लिए लड़ रहा है.
2- जज का ट्रांसफर हो गया. सलमान की जमानत अटक गई है. पहले तो ऐसा नहीं होता था.
देश ने देखा था कि हीरो के माथे का पसीना सूखने से पहले वह बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया था. एक धारणा बन गई थी कि बीइंग ह्यूमन एक फरिश्ता है और न्याय व्यवस्था को उठाकर पटक देने का वरदान वह साथ लेकर आया है.
न्याय व्यवस्था ने एसटीएससी और अब सलमान खान के मामले में जिस ढंग से राजदंड उठाया है, वह संकेत दे रहा है कि न्यायालय कालिख से मुक्त हो रहा है.
अब कई बातें ऐसी होने जा रही है, जो पहले नहीं हुई थी. सलमान की माँ को उससे बात करने के लिए जेल में एसटीडी कॉल के पैसे जमा करने पड़े. सच है पहले ऐसा तो नहीं होता था.
3- उसने इतनी चैरिटी की है, तो रिहा कर देना चाहिए था. शर्मनाक तर्क देते न्यूज़ चैनल, सलमान के वकील और एक महिला राज्यसभा सांसद.
जब कृष्णमृग के छौने की माँ को कोई घमंडी सितारा गोली मार देता है तो विश्नोई समाज की महिलाएं छौनों को अपना दूध पिलाती हैं. राज्यसभा सांसद ने एक फ़िल्म की थी ‘हज़ार चौरासी की माँ’. कृपया सांसद अपना किरदार याद करें और तय करें कि एक छौने से उसकी माँ को छीन लेने वाले सितारे की दानशीलता कितनी महान है.
4- कुछ माननीय लोगों को अचानक न्यायालय बहुत क्रूर नज़र आने लगा है. एक दानवीर को बेवजह जेल में डाल दिया गया.
आधी रात को कोर्ट खुलवाने वाले हैरत में हैं. जब वह सफेद रंग की कार से कोर्ट रूम जाने के लिए उतरा था तो उसकी भुजाएं फड़क रहीं थी, सीना तना हुआ था. घर बोलकर आया था कि शाम तक लौट आऊंगा, घर की बात है.
बस उसे ये नहीं मालूम था कि न्यायालय अब बदल चुका है. उसका दानवीर होना काम नहीं आया, वकीलों की फौज काम नहीं आई. तुम इसे क्रूरता मानो, हम इसे आशावाद की शुभ्र किरण की तरह देखते हैं. दिल थामकर बैठिये साहब, न्याय के अखाड़े में मिश्रा जी की ये पहली हुंकार है.