हम अपने जीवन में घटने वाली घटनाओं के प्रति सजग हो कर विचार करें तो दो प्रकार की घटनाओं को घटित होते हुए देखते हैं. एक जिनके बारे में हमने योजना बनाई प्रयास किया तब घटती हैं. दूसरी जिनके बारे में हमने सोचा ही नहीं, कल्पना भी नहीं की, फिर भी घट जाती हैं.
कुछ लोगों के जीवन में अधिकतर घटनाएँ योजना और प्रयास के बाद घटती हैं, तो वे कर्म पर विश्वास करने लगते हैं. ऐसे लोग कर्मवादी कहे जाते हैं.
कुछ लोगों के जीवन में ज्यादातर घटनाएंअनियोजित रूप से घटती रहती हैं. जैसा सोचते विचार करते हैं तदनुसार प्रयास भी करते हैं फिर भी वैसा नहीँ हो पाता जैसा चाहते हैं. तो ऐसे लोग भाग्य वादी हो जाते हैं.
शत प्रतिशत घटनाएं नियोजित रूप से कर्मवादियों के जीवन में भी नहीं घटतीं. कुछ घटनाएं उनके जीवन में भी अनियोजित अकल्पनीय घट जाती हैं.
भाग्य वादियों के जीवन में भी सभी घटनायें अकल्पनीय अनियोजित नहीँ घटतीं, कुछ नियोजित कल्पना के अनुसार भी घटतीं हैं.
हमारी सोच धारणा के विपरीत जब कुछ होता है, तो मन में संशय का जन्म होता है.प्रश्न उठते हैं कि ऐसा क्यों होता है?
ऐसे कई गूढ़ प्रश्न सभी के मन में उठते हैं .पर साधारण मनुष्य ऐसे प्रश्नों की उपेक्षा कर देता है. बहुत कम जिज्ञासु प्रवृति वाले लोग ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजते हैं. वही सही अर्थों में अध्यात्म जगत में प्रवेश के अधिकारी होते हैं.
ऋषियों ने गूढ़ प्रश्नों के उत्तर खोजे, लोकहित में जिज्ञासुओं को अपने निष्कर्षों से अवगत कराया.
पातंजलि, ने अपने योग शास्त्र में ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजने की वैज्ञानिक विधियां बताईं हैं.
कुछ ऋषियों ने विशेष कारणों से अपने निष्कर्ष सूत्रों को कूट भाषा में, सांकेतिक भाषा में व्यक्त किया, तथा उन्हें गोपनीयता की शर्त में बाँध दिया.
इस क्षेत्र के जिज्ञासु को स्वयं ही उत्तर खोजने होते हैं. पूर्व में ऋषियों द्वारा खोजे गये उत्तर काम नहीं आते. अतः ऋषियों ने भी उत्तर खोजने की विधियों पर जोर दिया.
दूसरों के द्वारा खोजे गये उत्तर ठीक वैसे ही हैं. जैसे कोई रसगुल्ला खा कर प्राप्त आनंद ऐसे व्यक्ति के सामने वर्णन करे, जिसने रसगुल्ला देखा ही न हो, तो कितने ही अच्छे तरीके से व्याख्या विश्लेषण करके समझाया जाये, जिसे रसगुल्ले का पता भी नहीं वो उसके स्वाद को आनंद को नहीँ जान सकता. बिना प्रयोग के सुने हुये ज्ञान वाले व्यक्ति जन्मजन्मान्तर तक रसगुल्ले खाने वाले की कथा का पाठ करते रहें, मिठास से वंचित ही रहेंगे.
महावीर स्वामी ने इस सम्बन्ध में अद्भुत प्रयोग किये थे. वे विचित्र निर्णय कर लेते थे कि यदि ऐसा होगा, ऐसी स्थितियां होंगी, तभी भोजन करूँगा और आश्चर्यजनक रूप से वैसी ही स्थितियां निर्मित भी हो जाती थीं.
महावीर स्वामी मन कर्म की निष्कामता की बात कहते थे. उनका कहना था कि मन में विचार आया तो वह फलित जरूर होगा. विचार ही बन्धन हो जाएगा.
कुछ घटनाओं के प्रति हम सजग रहते हैं, तो उनके कारणों को जानते हैं. कुछ घटनाओं के प्रति सजग नहीँ रहते तो उनके कारणों को नहीँ जान पाते.
खेल संकल्प विकल्प का ही है. जाने अनजाने यही काम करते रहते हैं.
– शत्रुघ्न सिँह