मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है

मैं रोटी सही नहीं बना पाती तो जिस दिन मेड नहीं आती सब्जी बनाकर बगल के दुकान से रोटी पैक करवाने जाती हूँ. दो होटलों के बीच जद्दोजहत से जबरदस्ती घुसी एक छोटी सी ढाबानुमा दुकान है.

पर सिविल सर्विस की तैयारी करने आये बच्चों की कृपा से हमेशा गुलज़ार रहती है. यहाँ पाये जाने वाले अनगिनत लाइब्रेरियों के आगे पानीपुरी, चोले या तंदूरी रोटी ठुसकर अभी से जनता को रोजगार दिलाने के सतत प्रयास करते इन भविष्य के IAS को देखकर मैं खुश रहती हूँ.

तो खैर, जब इस रविवार रोटी बनने का इंतजार करते हुये स्टूल पर जम गयी तो एक सुंदर, मॉडर्न सी दिखने वाली लड़की सामने कोचिंग से निकलकर आयी और अपनी सफेद, लम्बी-लम्बी उंगलियों को नचाते हुये थाली और बाकि आइटम का नाम पूछने लगी. अंग्रेजी में.

हालांकि इस एरिया में रह रहे दक्षिण भारतीय बच्चे भी ठेलेवालों और दुकानदारों से टूटी-फूटी हिंदी बोलकर आराम से काम चला लेते हैं, जबकि इस लड़की का उच्चारण बता रहा था कि यह उत्तर भारतीय है.

एक गरीब के सामने जानबूझ कर सम्भ्रांतता के इस प्रदर्शन पर मेरे दिल में दबे यूनियन ने हवा में मुक्का उठा कर विरोध किया ही था कि रोटी बेलते दुकानवाले ने उसके आंखों में आंखे डालते हुये एक सांस में आइटम के दाम और उनके गुण गिना दिये. वो भी अंग्रेजी में. फिर एक भौं ऊपर कर मुस्कुराया. लड़की के हाव-भाव से पता चला उसने यह उम्मीद नहीं की थी. मैंने भी नहीं की थी.

फिर मैं बदलते भारत की रोटी लेकर वापस आ गयी.

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