ऐसे फुटपाथिया दुकानदारों को जानता हूँ, जो जूते बेचते हैं, पर बस जूते ही बेचते हैं…

बीते मंगलवार की दोपहर छोटे राजकुमार ने याद दिलाया कि अगले दिन बुधवार है और स्कूल की हाउस ड्रेस के साथ सफ़ेद पीटी शूज़ पहन कर जाने का दिन है…

और पुराने जूते मुझे टाइट हो रहे हैं जिससे पूरे वक़्त पांव के अंगूठे मुड़े रहते हैं… और अब मैं सेकेण्ड क्लास में आ गया हूँ और आपने कहा था कि जब मैं सेकेण्ड में आ जाउंगा तो और बड़ा हो जाउंगा… यानी मैं बड़ा हो गया तो मेरे पांव भी बड़े हो गए होंगे, फिर मुझे पुराने शूज़ कैसे आएँगे…

अपन ने लपक के उनको पास में खींचा और कस के उनका मुंह दबोच लिया, कम बोला कर यार, समझ गया न बात… चलिए अभी के अभी जूते लेके आते हैं.

और चिलचिलाती धूप में निकल पड़े… शहर के अत्यंत व्यस्त इलाके में वो दुकान है, जहां से पिछले चार-पांच सालों से राजकुमारों के जूते ले रहा हूँ… पुराने शहर का ये इलाका इतने अराजक ट्राफिक वाला है कि कोई नियम-कायदे से चलने वाला आदमी तो पक्का मुंह-हाथ तुड़ा कर ही घर पहुंचे.

इसके अलावा, रही सही कसर यहाँ के व्यवसायी पूरी कर देते हैं जो दुकान के सामान को सड़क तक फैलाकर डिस्प्ले के लिए सजा देते हैं, फिर उसके आगे खड़ी गाड़ियां और फिर उनके आगे बैठे सड़क किनारे व्यवसाय करने वाले स्व-रोज़गारी गरीब व्यवसायी.

पूरा सीन अगर आँखों के आगे खिंच गया हो तो ये और बता दूं कि अक्सर ट्राफिक में फंसे होने पर जब कोई पीछे से धक्का मारता है, तो पलट कर देखने पर पता चलता है कि गौ माता है, कभी अकेले तो कभी 3 – 4 के झुण्ड में… साथ ही सांड देवता भी सहज ही विचरण करते मिल जाते हैं.

बस एक बात और, फिर मूल मुद्दे पर लौटते हैं…

ऐसा अति व्यस्त इलाका, जो सब्ज़ी मंडी से शुरू होता है, और सब्ज़ी मंडी ख़त्म होने से पहले ही गल्ला (अनाज) मंडी शुरू हो जाती है और पता ही नहीं चलता कि कब फल मंडी आ गई… फल मंडी और कपड़ा बाज़ार की घिचपिच के बीच ही बर्तन बाज़ार और फिर सराफा… और ऐसे में सड़क तक बने मंदिर…

बड़े महावीर, छोटे महावीर… महावीर मतलब हनुमानजी… इतनी ज़िंदगी यहाँ गुज़ार देने के बाद भी मुझे ये नहीं मालूम कि कौन सा बड़े का और कौन सा छोटे महावीर का मंदिर है क्योंकि अपन तो कभी जाते नहीं… सो जो भी जिसका हो, इनमें से एक सड़क के बीचों-बीच बना हुआ है… असली नाम जो भी हो, अपनी सहूलियत के लिए मैंने नाम रखा हुआ है अतिक्रमण वाले हनुमान जी और किनारे वाले हनुमान जी.

बजरंग बली के भक्त बताएंगे कि हनुमान प्रकटोत्सव के दिन ऐसा कहने-लिखने पर मैं दण्ड का भागी तो नहीं बन गया…

खैर, एक बार एक बुज़ुर्ग ने मेरे मुंह से ‘अतिक्रमण वाले हनुमान’ सुन कर स्पष्टीकरण दिया था कि मंदिर पुराना है और उस ज़माने का है जब यहाँ सिंगल लेन सड़क ही थी, और ऐसी पक्की दुकानें और इतनी गाड़ियां नहीं थीं, तब ये मंदिर भी सड़क किनारे ही था…

जब सड़क चौडीकरण हुआ होगा, तो भक्तों की भक्ति जाग गई होगी, तत्कालीन प्रशासन भी धर्म-भीरू रहा होगा, तो वो मंदिर स्थानांतरित नहीं किया जा सका, और बजरंग बली पूरे ठाठ के साथ आज भी वहीं विराजित हैं…

तो ऐसे इलाके में दोनों राजकुमारों के साथ बाइक पर सरसराते हुए चले जा रहे थे… कि ख्याल आया… गाड़ी बड़े मज़े में चल रही है, न हॉर्न बजाना पड़ रहा है और न बार-बार ब्रेक लगाना पड़ रहा है…

पहले लगा कि शायद तेज़ धूप की वजह से भीड़-भाड़ कम है… फिर ख्याल आया कि अपन यहाँ आए क्यों है??? अरे हाँ, पीटी शूज़ लेने आए हैं…. क्यों??? क्योंकि कल बुधवार को गीतजी को स्कूल पहन कर जाना है…. अच्छा, तो कल बुधवार है… यानी आज मंगलवार है… हे भगवान, मंगलवार को तो ये सारा बाज़ार बंद रहता है… पता नहीं जूतों की वो दुकान खुली होगी या नहीं…

जाकर देखा… आशंका के मुताबिक़ बंद मिली… अब???

गीत बाबू से पूछा, मालिक अब क्या करें? कल ले लें… चलेगा?

मालिक बिफर गए, आज मतलब आज, बल्कि अभिच्च….

जी मालिक…

गाड़ी स्टार्ट की और कुछ दूरी पर सड़क पर लगने वाली दुकान दिखाई दी, जिसके बाहर सस्ते किस्म के स्लिपर्स और सैंडिल्स टंगे थे…. उम्मीद तो नहीं थी, फिर भी राजकुमार का दिल रखने को वहाँ गाड़ी रोक कर, गाड़ी पर बैठे-बैठे ही पीटी शूज़ के बारे में पूछा.

चेहरे पर करीने से तराशी हुई दाढ़ी वाले कमसिन से नौजवान ने सकारात्मक उत्तर दिया तो, गीत बाबू तो इंजन बंद करने से पहले ही बाइक से कूदे और बोले, मेरे नाप के चाहिए, थोड़े बड़े होना चाहिए, जिसमें मेरे अंगूठे न मुड़ें और जब मैं थर्ड क्लास में पहुँच जाऊं तब तक अच्छे से पहन सकूं.

गीत बाबू की चटर-पटर सुनकर पहले तो उस नौजवान ने उन्हें देखा और फिर मेरी तरफ… अपन ने कंधे उचकाए और कहा, जो मालिक कह रहे हैं, पूरा किया जाए…

तीन size try करने के बाद एक pair से संतुष्ट हुए प्रभु, तो अपन ने चेक किए और दाम पूछे… आदत के मुताबिक़ मोलभाव किया… जब वाजिब रेट तक मामला पहुंचा तो उसे पैसे दिए.

दुकानदार ने बकाया पैसे लौटाए और पीठ पर स्टूडेंट्स जैसा एक बैग टांग लिया… तभी मैंने मोज़ों के बारे में पूछा. उसके हाँ, कहने पर वो भी ले लिए… इस बीच वो नौजवान बार-बार घड़ी देखता जा रहा था.

ठीक है दोस्त, अब एक साल बाद मिलेंगे…

उसने जवाब दिया, इंशा अल्लाह ज़रूर मिलेंगे

एक बात बताओ, ऐसा लग रहा है कि ‘तुम’ कहीं जाने की तैयारी और जल्दी में हो?

जी, ईवनिंग कॉलेज…

अच्छा… वेरी गुड़, किस कॉलेज में हैं ‘आप’?

उसने कॉलेज का नाम बताया.

वाह, तो लॉ पढ़ रहे हैं आप, बहुत खूब और अगले साल वकील बन जाएंगे… क्या शुभ नाम है आपका?

शहज़ाद

फिर यहाँ दुकान पर?

जी, शाम को अब्बा आ जाते हैं

बस… इतना सा किस्सा है 🙂

मंगलवार से अब तक मैं दिमाग पर जोर डाल रहा हूँ कि मेरे दायरे में कौन है ऐसा जिगरे वाला जो सड़क किनारे फुटपाथिया दुकान पर जूते बेचे और फिर कॉलेज भी जाए…

दिमाग में पुराने ज़माने की फिल्मों के दृश्य तो आए जिनमें गरीब हीरो ऐसा कुछ करते दिखाए जाते थे, पर यथार्थ में एक भी नाम मैं याद न कर सका.

हमारे यहाँ तो लोग मोदी जी के पकौड़े बेचने वाले बयान का मज़ाक बनाते हैं, ऐसे में कोई उन्हें सड़क किनारे जूते बेचने की सलाह दे तो शायद जूते ही खाएगा.

तीन और ऐसे फुटपाथिया दुकानदारों (हिन्दू) को जानता हूँ, जो जूते बेचते हैं, पर बस जूते ही बेचते हैं…

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