मोदी मिशन 2019 : अभी आवश्यक है दृष्टि को चिड़िया की आँख पर रखना

सिर्फ हिंदुत्व का झंडा गाढ़कर आप मोदीजी को 2019 में वापस नहीं ला सकते… और मोदीजी को लाये बिना आपका हिंदुत्व का झंडा टिक नहीं पाएगा…

कट्टरता और बर्बरता में फर्क समझिये… व्यक्तिगत विचारों का बर्बरता से क़त्ल कीजिये, सामूहिक उद्देश्य के प्रति कट्टर रहिये…

चाहे राजनीति कीजिये, चाहे कूटनीति… दोनों का काम एक ही ऊर्जा स्तर पर हो, और वो है राष्ट्रनीति…

भारत की पुण्य भूमि को हिन्दू राष्ट्र बनाना है कहकर ही आप उसका अपमान कर रहे हैं… हिन्दू राष्ट्र जब आप कहते हैं तो आप इस्लामिक और इसाइयत राष्ट्र होने की संभावना को बल दे रहे हैं. उसके सनातन स्वरूप की पीठ पर हज़ारों सालों की दासता की दास्तान इतनी भारी शब्दों में लिखी गयी है कि आप आज तक उसकी पीठ सीधी नहीं कर पाए हैं…

सबसे पहले हमें आनेवाली नस्ल के DNA में गुलामी के कारण विस्मृत सनातनी परम्पराओं को जागृत करना है. अंग्रेज़ों और मुग़लों के शासन से पहले जो हमारे धार्मिक गुण थे उन्हें फिर से झाड़ पोंछकर चमकाना है… एक बार राष्ट्र ने स्वास्थ्य वापस पा लिया तो सारे रोग अपने आप भाग जाएँगे…

आप कब तक रोग से लड़ते रहेंगे कभी सेक्युलेरिज्म के नाम पर कभी हिन्दुइज़्म के नाम पर… इस्लाम और इसाइयत को मार भगाने के बजाय सनातन धर्म को पूरी तरह अपनाने का साहस दिखाइये…

शिक्षा पद्धति, चिकित्सा पद्धति, न्याय और क़ानून व्यवस्था, मीडिया, सोशल मीडिया तक में हमारी गुलामी के लक्षण आज तक दिखाई देते हैं… और वो तब तक दिखाई देते रहेंगे जब तक आप उससे लड़ते रहेंगे…

विरोध आवश्यक है लेकिन उसके पहले आवश्यक है विरोध के लिए खड़े होने की ज़मीन में अपनी जड़ें इतनी मजबूत करना कि विरोधी अब हमें किसी भी तरह डिगा न सके… यहाँ तो हम आपस में ही बहस और चर्चा के नाम पर ऐसे उलझ जाते हैं कि वास्तविक उद्देश्य ही भूल जाते हैं…

गीता का एक श्लोक है –

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् |
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ||
(भगवद्गीता तीसरा अध्याय पैंतीसवां श्लोक)

सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित पर धर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है..

और सरल शब्दों में कहा जाए तो –
अच्छी प्रकार आचरण में लाये हुए पर धर्म से, गुणरहित स्वधर्म श्रेष्ठ है. स्वधर्म में मरना भी कल्याणकारक है, पर परधर्म तो भय उपजानेवाला है.

व्याख्या : तृतीयोध्याय कर्मयोग में श्री भगवान ने गुण, स्वभाव और अपने धर्म की चर्चा की है. आपका जो गुण, स्वभाव और धर्म है उसी में जीना और मरना श्रेष्ठ है, दूसरे के धर्म में मरना भयावह है.
जो व्यक्ति अपना धर्म छोड़कर दूसरे का धर्म अपनाता है, वह अपने कुलधर्म का नाश कर देता है. कुलधर्म के नाश से आने वाली पीढ़ियों का आध्यात्मिक पतन हो जाता है. इससे उसके समाज का भी पतन हो जाता है. सामाजिक पतन से राष्ट्र का पतन हो जाता है. ऐसा करना इसलिए भयावह नहीं है बल्कि इसलिए भी कि ऐसे व्यक्ति और उसकी पीढ़ियों को मौत के बाद तब तक सद्गति नहीं मिलती जब तक कि उसके कुल को तारने वाला कोई न हो.

उपरोक्त श्लोक में स्पष्ट समझाया गया है कि परधर्म के गुण अवगुणों को देखने से पहले अपने गुणरहित धर्म में रहना अधिक श्रेयस्कर है. यहाँ गुण रहित होने का तात्पर्य निर्गुण की बात भी हो सकती है क्योंकि धर्म निर्गुण होने पर अधिक ज़ोर देता है…

दूसरे के धर्म में मरना भयावह है का तात्पर्य है जो आपके गुण धर्मों के लक्षणों वाला नहीं है… फिर चाहे कितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो… यहाँ अपना गुण धर्मं व्यक्तिगत भी हो सकता है, सामाजिक भी, राष्ट्रीय और वैश्विक भी…

जैसे हमारा वैश्विक धर्म का मुख्य उद्देश्य वसुधैव कुटुम्बकम है… यदि हमारा उद्देश्य वैश्विक पटल पर कार्य करना है तो कई बार हमें व्यक्तिगत गुण धर्मों को त्यागना भी पड़ता है…

इसलिए बार बार कहती हूँ उद्देश्य से विचलित मत होइए… यह समय है जब हमें अपनी नज़र राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर रखनी है जिसके लिए हमने एक सेनापति को नियुक्त किया है… अपने व्यक्तिगत गुणों को त्याग कर जो व्यक्ति सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना झेल रहा है, उसकी दृष्टि अर्जुन की तरह सिर्फ चिड़िया की आँख पर है.

सामाजिक स्तर पर हो रही उथल पुथल की ओर ध्यान भटका कर हम निशाना चूकने की संभावना को बढ़ा रहे हैं.

इसलिए बस अपनी ऊर्जा और दृष्टि सिर्फ और सिर्फ 2019 पर लगाइए… फिलहाल वही आपका स्वधर्म है…. बाकी ऊपर लिखी सारी बातें भूल जाइए…

– माँ जीवन शैफाली

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