कभी कभी किसी संज्ञा को इस तरह बदनाम किया जाता है कि वो अपने आप में गाली बन जाती है.
फिर ये जरूरी नहीं होता कि गाली देनेवाला उसका अर्थ जानता भी हो. बस वह शब्द के उच्चारण का जो भाव है, उसी से हिकारत, तुच्छता, अपमान आदि सभी भावनाएँ ध्वनित होती हैं जिन्हें वो मानसिक स्तर पर अनुभव करता है.
इसीलिए उस भाव के चलते ही वो उस शब्द/ संज्ञा का प्रयोग करता है. इसकी सत्यता आप को समझ आएगी अगर में बच्चों का उदाहरण दूँ.
महिलाओं से संबन्धित वीभत्स गालियां बकते हुए गुस्से से तिलमिलाए तीन – पाँच साल के बच्चे (कभी कभी बच्चियाँ भी) मिलेंगे आप को.
आप को भी पता है उन्हें उन गालियों का अर्थ नहीं पता. अगर मुस्कुरा रहे हैं आप, तो आप की आँखों के सामने कोई ऐसा ही बच्चा आ गया है – याने आप इस बात की सत्यता से पूरी तरह सहमत हैं.
आज एक ऐसी ही दो संज्ञाओं को देखते हैं. ये है Fascist और Fascism. जो Fascism को मानता है, उसके तहत आचरण करता है वो व्यक्ति फासिस्ट.
अब आप को ये पता ही होगा कि हर जगह फासिस्ट शब्द गाली के तौर पर ही प्रयुक्त होता है. और आप ये भी सोच रहे होंगे कि मैंने बच्चों वाला उदाहरण क्यूँ लिया है.
अगर आप ये कहें कि यह गाली देने वाले भी नासमझ बच्चे हैं, तो आप कभी कभी सही भी होंगे.
अक्सर ये शब्द, गाली जैसे कहने वाला आदमी इसका अर्थ नहीं जानता. और जो जानता है और वामपंथी है (होगा ही) तो बेईमान है. वामी है, तो यह गुण भी निहित होना आवश्यक है उसके कैरक्टर में.
ज़रा देखें फासिस्ट और फासीवाद का मतलब क्या होता है – फासीवाद की व्याख्या है – a governmental system led by a dictator having complete power, forcibly suppressing opposition and criticism, regimenting all industry, commerce, etc., and emphasizing an aggressive nationalism and often racism.
याने कि एक तानाशाह के नेतृत्व की सर्वशक्तिमान सरकार जो बलपूर्वक विरोध और आलोचनाओं को कुचल दें, जो सभी उद्योग जगत, व्यापार को अपनी तर्ज पर काम करने को मजबूर करे और एक आक्रमक राष्ट्रवाद का समर्थन करे. ऐसी सरकार नस्लवाद का भी समर्थन करती पायी जा सकती है.
तो ये रहा फासीवाद और इसके तहत चलनेवाले सभी ठहरे फासिस्ट. अब इसका थोड़ा इतिहास देखें. इटली के तानाशाह मुसोलिनी का पक्ष खुद को फासिस्ट कहलाता था. हिटलर की नाज़ी पार्टी भी फासिस्ट थी. साथ में नस्लवादी भी.
आप को ये भी पता ही है कि इन दोनों ने ही दूसरा विश्वयुद्ध शुरू किया. अंत में हार गए, मुसोलिनी को भीड़ ने पकड़ कर बुरी तरह से मार दिया और हिटलर ने आत्महत्या कर ली.
अब जो हारे वो खुद का क्या बचाव करें. कम्युनिस्टों ने उनको ही नहीं लेकिन उनकी विचारधारा को भी इस तरह बदनाम कर दिया कि आज किसी को ये फासिस्ट कह दें तो आदमी खुद ही बचाव के भूमिका में आ जाता है कि क्या कह दिया. और वामी यही गाली ब्रह्मास्त्र जैसे दागते रहते हैं सब पर.
अब जरा कम्युनिस्टों का इतिहास देखें…
रशिया, माओ के समय का चीन, कैस्ट्रो का क्यूबा, पोल पोट का कंबोडिया, उत्तर कोरिया…. फासीवाद से क्या अलग है?
नस्लवाद नहीं तो क्या हुआ, वास्तव में नस्लवाद फासिज़्म का हिस्सा नहीं है, लेकिन हिटलर ने नस्लवाद का समर्थन किया तो साथ में चिपका दिया बदनामी को बढ़ावा देने के लिए.
तो क्या फासीवाद और कम्युनिज्म सिक्के के दो पहलू ही नहीं, तो और क्या है? क्या ये अपनी घिनौनी शक्ल छुपाने के लिए अपने दुश्मनों पर फासीवादी होने का आरोप नहीं लगा रहे?
और हाँ, डॉ गोएबल्स हिटलर का प्रचारमंत्री था. बड़ा ही कुटिल माना जाता है. लेकिन स्टेलिन या माओ उस से कम नहीं निकले. परले दर्जे के कुटिलों के genes या कुंडली के ग्रह कॉमन निकलते होंगे शायद.
वैसे राष्ट्रवाद भी बुरा मानते हैं ये वामी, ये भी जान लेने की बात है. अगर भारतीय कम्युनिस्ट जो रशिया के टुकड़ों पर पलते हैं, रशियावादी होना राष्ट्रवादी होने से श्रेष्ठ समझते हैं तो फिर सोचना पड़ेगा. यहाँ राष्ट्रवादी होना मतलब शरद पवार-वादी नहीं होता.
बस सोचता हूँ, कल ‘देशभक्त’ भी गाली बना देंगे ये वामपंथी – कोई भरोसा नहीं इनका, लश्कर-ए-मीडिया तो पूरा इन्हीं का भरा हुआ है… ठंडक से सोच लीजिये, कर तो सकते हैं ये कुछ भी. इस देश में केवल जन्में हैं ये, इस देश के तो ये हैं नहीं… शायद इसीलिए किसी भी राष्ट्रवादी हिन्दू को, जो हिन्दू होने में शर्म महसूस न करता हो, संघी-फासिस्ट ऐसे जुड़वां शब्दों से नवाज़ते हैं.
चर्चा-शेयर हमेशा की तरह, लेकिन शेयर करने का आग्रह कुछ ज्यादा, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग सच्चाई समझ सकें… और हाँ, ये फासीवाद का समर्थन नहीं बल्कि वामियों की पोल खोल है.