बात ऑरकुट के ज़माने की है मतलब 2006 के आसपास की… इसका एक मतलब और होता है यानी स्वामी ध्यान विनय से परिचय के पहले की…
हम तो शुरू से ही इतनी ही बिंदास रहे हैं जितना आज है… बेफिक्र, बेख़ौफ़… उस ज़माने में भी ऑरकुट जैसे प्लेटफोर्म पर अपनी फोटो शेयर करने में मुझे कभी झिझक नहीं हुई… कारण क्या कि मिसयूज़ करने वाले ज्यादा से ज़्यादा क्या कर लेंगे… फोटो शॉप करके आपके चेहरे को किसी अश्लील फोटो के साथ चेंप देंगे…
उससे क्या होगा… आपकी बदनामी होगी… और क्या होगा लोग हँसेंगे… और? आपकी इमेज खराब होगी… और? मतलब ज्यादा से ज्यादा क्या कर लेगा कोई… मैं तो उससे यही कहूंगी यार फोटोशॉप करना ही था तो ढंग से करता… आजा मैं सिखा देती हूँ… खैर…
बहुत सीधा सा फंडा है जितना आप डरोगे उतना ही वो डर प्रत्यक्ष रूप से आपके सामने प्रकट होगा… मैं कभी नहीं डरी तो मुझे कभी ऐसे अनुभवों का सामना नहीं करना पड़ा…
एक दो लोगों ने प्रयास किया भी… उनको लगा मैं विरोध में उतरूंगी… सोशल मीडिया को मसाला मिल जाएगा… हमने उनकी उम्मीद पर पानी फेर दिया.. उन्होंने इलज़ाम लगाए हमने स्वीकार कर लिए हाँ हम तो ऐसे हैं भैया.. अब क्या कर लोगे… बेचारे क्या करते अपना सा मुंह लिए लौट गए…
ध्यान बाबा कहते हैं जो आपको हराने आए उसे कहो हम तो पहले से ही हारे हुए हैं … तुम और कितना हराओगे… बेचारा खुद ही हेरा जाएगा…
तो किस्सा 2006 का सुना रही थी… आप लोग इधर उधर की बातों में बहुत उलझा देते हो मुझको… तो मेरी एक सहेली मेरे साथ काम करती थी… जब हम लोग स्कूल में बच्चों के एडमिशन लेने का काम करते थे… वो बेचारी इन्टरनेट का इ भी न जानती थी… बहुत डरती थी … यही मिसयूज़ की बातें बताकर …
फिर एक दिन वो मेरे पास देर रात घर आई… किसी ने उसका फोन नम्बर लेकर उसके नाम और फोन नंबर के साथ ऑरकुट पर एक अश्लील फोटो के साथ चिपका दिया था….
हें!! क्या कह रही है? किससे दुश्मनी मोल ली?
तुझे तो पता है यार मैं किससे दुश्मनी करूंगी… मुझे तो पहले ही बहुत डर लगता है इन सब झमेलों से… लेकिन फिर भी फंस गयी देखो.. दिन रात लोग फोन कर कर के गंदी बातें करते है… परेशान हो गयी… पति से अलग डांट खा रही….
अब उस ज़माने में ज्यादा अपने को भी पता नहीं था तो उसको बोला ये फोन बंद करके नया नंबर ले… बाकी सब भूल जा और डरना बंद कर… जब तूने कुछ किया नहीं तो डरना क्यों…
खैर मामला जैसे तैसे ख़त्म हुआ…
बस इतना ही कहना है… बन्दर के बारे में नहीं सोचना है ऐसा सोच सोच कर ही हम बन्दर को आमंत्रित कर लेते हैं… .
अस्तित्व नकारात्मंक बातें नहीं समझता… सकारात्मक सोचिये… जब तक आप नहीं चाहेंगे कोई आपका बाल तक बांका नहीं कर सकता… क्योंकि डर के आगे जीत है…
फोटो लगाना ही चाहते हैं तो ऐसी लगाइए जो आकर्षित करे आमंत्रित नहीं. बाकी आपकी मर्ज़ी… प्रकृति आकर्षण के नियम पर चलती है तो आमंत्रण के नियम पर भी उतनी ही तीव्रता से चलती है…
बाकी मैं बता दूं यहाँ मेरी फोटो का भी लोगों ने उपयोग किया है लेकिन मैं उसे मिसयूज़ नहीं कहती, नीम करोली बाबा और ज़ुकरबर्ग के साथ लगी मेरी इस फोटो को लोग अपनी प्रोफाइल फोटो बनाए हुए हैं…
नोट : हर किसी को ये आध्यात्मिक नियम हजम हो ही ज़रूरी नहीं है, जितना आपको भोग कर जाना है वो तो तय है ही.. बाकी मैं हमेशा से कहती आई हूँ हर युग की आध्यात्मिकता उसकी भौतिकता से जुड़ जाती है….
– माँ जीवन शैफाली