क्या IMA जैसी चिकित्सकीय संस्थाएं ऐसे फर्ज़ी दावे करने वालों को जानबूझ कर खुला छोड़ देती हैं?

भारतीय लोग और सरकारें इस तथ्य से हमेशा मुँह मोड़े और मुँह छुपाये रहते हैं कि भारत दुनिया के सर्वाधिक कुपोषित, और बीमार लोगों का देश है.

यहां आज भी ग़रीब अफ्रीकन देशों से अधिक शिशु मरते हैं. दुनिया के सर्वाधिक diabetes के मरीज हैं. दुनिया की सर्वाधिक संक्रामक बीमारियां हैं. टीबी जैसी पुरानी बीमारियों में हम नंबर 1 हैं.

इसका प्रमुख कारण भारतीय समाज में अवैज्ञानिक धारणाओं, स्वास्थ्य को लेकर चमत्कारिक शॉर्ट कट्स के प्रति बेहद लगाव होना है.

कुछ बरसों पहले तक नाखून रगड़ कर बाल उगाने की कोशिश करने वाले लोग अब कोई तेल चुपड़ रहे हैं.

आज मैं यह क्यों लिख रहा हूँ.

यूट्यूब पर एक-दो वीडियो देखे और उन वीडियो में लोगों के कमेंट देखे. वीडियो 20 लाख से अधिक लोग देख कर वायरल भी कर चुके हैं और कमेंट्स में, एक फ़र्ज़ी डॉक्टर जिसने वीडियो बनाया है, की बेहद वाहवाही है.

इससे मुझे आपत्ति नहीं, लेकिन बहुत से कमेंट थे कि आज से मैं दवा लेना बंद कर रहा हूँ. जो कि भारत के ख़राब स्वास्थ्य आंकड़ों के मूलभूत कारण को ही दर्शाता है.

तो बात यह है कि डॉ विश्वरूप नाम के एक शख्स ने ऐसे वीडियो बनाए और किताबें लिखी हैं जिसमें यह साबित किया गया है कि diabetes पर आप जितनी भी दवाएं, जांचें इत्यादि सुनते हैं वह एक scam है. अर्थात पैसों के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिकों, देशों की एक साज़िश है. दरअसल diabetes मात्र दो दिन में जड़ से खत्म हो जाता है. कैसे?.. रोज़ फल खाने से.

मैं दंग था… कोई डॉक्टर कैसे ऐसी बातें कर सकता है.

फिर जब qualification तलाशा तो पता चला ये एक nutritionist है जो कि एक correspondence phd जैसी कोई डॉक्टरेट डिग्री लेकर स्वयं को diabetes का डॉक्टर घोषित कर चुका है.

जब कोई अमेरिका return हो, english बोलता हो, टाई लगाता हो तब देश के लोग स्वतः ही उसे बुद्धिमान, वैज्ञानिक सोच वाला मान लेते हैं. ठीक वैसे ही जब किसी सन्यासी के कपड़े पहनने पर आयुर्वेद का ज्ञाता.

तो भारत में मूर्खों की फ़ौज मिलते ही इनकी गाड़ी चल पड़ी.

शुगर metabolism पर उनकी जो हास्यास्पद understanding है, वह सर पीट लेने वाली है. जिस पर लोग वाह-वाह कर किताबें खरीद रहे हैं और दवाएं छोड़ रहे हैं.

किसी भी सच्ची वैज्ञानिक बात को न सुनने वाला देश तुरंत किसी भी चमत्कारिक दावे पर अभिभूत हो जाता है. ऐसे में सरकारें भी कहाँ तक करेंगी इस तरह की जनता के लिए.

दूसरा वीडियो और देखा जिसमें वे कह रहे हैं HIV जैसा कोई वायरस ही नहीं होता. न ही यह रक्त से, न ही यौन संबंधों से फैलता है. बल्कि HIV, एड्स की दवा देने से हो जाता है.

इस पर भी लोग वाह वाह कर रहे हैं… कुछ कह रहे हैं कल ही बैंकॉक जाता हूँ… कुछ कह रहे हैं कंडोम इंडस्ट्री को फ़ायदा पंहुचाने यह अफवाह फैलाई गई.

एक ओर बिल गेट्स, यूनिसेफ, भारत सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन HIV का प्रकोप कम करने जागरूकता लाने अरबों रुपये खर्च रहे हैं, दूसरी ओर मोबाइल फोन पर बैठी पढ़ी लिखी जनता के कुछ लाख लोग इन ऊलजुलूल दावों पर भरोसा कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य मात्र सस्ती लोकप्रियता पाना और किताबों को बेचना है.

आपको बता दूं कि HIV के मरीजों की कुल संख्या में sub-Saharan अफ्रीका के बाद भारत का स्थान दूसरा है.

बहुत लोग conspiracy theory के मानसिक रोग से ग्रसित होते हैं. जिसमें वे अपनी सुविधानुसार कोई भी काल्पनिक explanation किसी भी संस्था, प्रोफेशन, धर्म, देश के ख़िलाफ़ बना लेते हैं.

लेकिन स्वास्थ्य पर ऐसा करेंगे तब पहले से बीमार देश ICU में पहुंच जाएगा.

मैं एक आम चिकित्सक हूँ, जो बहुत बड़े स्तर पर प्रसिद्ध नहीं. मैं उतनी ही आवाज़ दे सकता था जितना सामर्थ्य है, तो यह लिख दिया.

लेकिन सरकारों को अविलंब ऐसे लोगों को प्रतिबंधित कर जेल में डालना चाहिए जो भारत के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हों.

मैं पूरी ज़िम्मेदारी के साथ कह रहा हूँ, एक मेडिकल कॉलेज में associate professor होने के नाते, मेरे शोध पत्रों के दुनिया के श्रेष्ठ वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित होने के नाते (google कर देख लें) कि उनकी सभी बातें बेहद अवैज्ञानिक, अतार्किक, pseudoscience पर आधारित हैं.

Pseudoscience का अर्थ होता है जहां हम वैज्ञानिक शब्दों जैसे nitric oxide, quantum, fructose, Atp इत्यादि का इस्तेमाल कर कुछ भी ऊलजुलूल थ्योरी उन लोगों को सुना देते हैं जो विज्ञान से अनभिज्ञ हैं. ऐसे में वे उस बेसिर-पैर की बात को सत्य मान लेते हैं.

यह अपमान भी है उन महान वैज्ञानिकों का, जिन्होंने दिन रात कार्य कर मेडिकल साइंस को आज यहां तक पहुंचाया जहां हम इंसानों के औसत जीवन में इज़ाफ़ा कर पाए हैं. कितनी ही पीड़ाओं से निजात दिलवा पाए हैं.

सोच रहा हूँ इस सबंध में यूट्यूब पर वीडियो भी अपलोड करूँ.

लोग तुरंत सोचने लगते हैं कि अब तो ‘लुटेरी मेडिकल इंडस्ट्री’ खत्म हो जाएगी. सब दवाएं बंद. अच्छा सबक मिलेगा.

लेकिन…

सच तो यह है कि लोग जितना अवैज्ञानिक होंगे दवा कंपनियों को, अस्पतालों को, मॉडर्न मेडिसिन के डॉक्टरों को उतना ही अधिक आर्थिक लाभ होगा.

आज आप अपने diabetologist को गाली दें, लुटेरा कह दवाएं बंद कर दें.

कुछ माह बाद आपको nephrologist, opthalmologist, cardiologist, ICU, operation theatre के चक्कर लगना अवश्यम्भावी होगा.

विश्वास न हो तो बिना चिकित्सकीय परामर्श के दवाएं बंद कर सांसें अंदर बाहर करते लोगों के स्ट्रोक के आंकड़े निकाल लीजिएगा. पिछले कुछ बरसों में मेरे neurologist दोस्तों के पास stroke के केसेज़ में काफी इज़ाफा मिला था.

शायद इसलिए भी IMA जैसी चिकित्सकीय संस्थाएं इस तरह के लोगों को खुला छोड़ देती हैं?

जिससे ऐसी किताबें लिखने और वीडियो बनाने वालों का भी फायदा, चिकित्सकों का भी फायदा, अस्पतालों का भी फ़ायदा हो.

और जनता तो वही पाती है जो वह deserve करती है. फिर वह नेता हो या स्वास्थ्य.

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